एक सन्यासी की सन्यास यात्रा :-

चित्र में सबसे दाईं ओर कोट पहने खड़े हैं आज के स्वामी भैरवानंद सरस्वती, अवसर था  शिवपुरी महाविद्यालय में विद्यार्थी परिषद् की विजय का  (विजई छात्र संघ अध्यक्ष गोपाल डंडौतिया व पूर्व अध्यक्ष गोपाल सिंहल भी साथ में हैं )


१९७४ मैं गुजरात से प्रारंभ हुए नौजवानों के नविनर्माण आन्दोलन के मार्ग दर्शक बने ८० वर्षीय जयप्रकाश नारायण | एसे मैं इलाहबाद उच्च न्यायलय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी का चुनाव ही अवैध घोिषत कर दिया | अपनी कुर्सी खतरे मैं देखकर श्रीमती गाँधी ने २५ जून १९७५ की अर्धरात्रि मैं देश पर आपातकाल लगा दिया और विरोधी नेताओं को जेल मैं ठूंस दिया, जिनकी संख्या लाखों मैं थी | भय का यह आलम था कि सामान्य व्यक्ति मीसावंदीयों के परिवारों की छाया से भी दूर रहने मैं अपनी भलाई समझने लगा | 

एसे निराशापूर्ण माहौल मैं संघ ने १४ नवम्बर से आन्दोलन की योजना बनाई | शिवपुरी जिले मैं मुझे आन्दोलन का संयोजक बनाया गया | सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ | पहले जत्थे मैं जो पांच कार्यकर्ता शामिल थे उनमें से ही एक थे, मेरे आज के इस कथानक के नायक लक्ष्मीनारायण गुप्ता | इस २३ वर्षीय नौजवान की अगले ही दिन सगाई होने वाली थी | एसे माहौल मैं जब यह भी न पता हो कि गिरफ्तार होने के बाद कब छूटेंगे, छूटेंगे भी या नहीं, यों सत्याग्रह के लिए स्वयं को प्रस्तुत करना बड़ी हिम्मत और साहस का काम था | जैसा कि पहले से अनुमान था सभी सत्याग्रिहियों को मीसा मैं निरुद्ध किया गया | किन्तु इसके बाद भी संघ स्वयंसेवकों की हिम्मत नहीं टूटी और जत्थे निकलते रहे | तीन जत्थों मैं कुल १२ स्वयंसेवकों ने गिरफ़्तारी दी | अंततः मैं भी पकड़ा गया और मीसा के साथ साथ मुझ पर DIR का मुक़दमा भी लादा गया |

यूं तो श्री लक्ष्मीनारायण गुप्ता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे | किन्तु जेल मैं ही उन्होंने सम्पूर्ण गीता कंठस्थ कर ली | उनकी स्मरण  शक्ति विलक्षण थी | साथ ही वे स्वभाव से भी विनोदी थे |ग्वालियर जेल मैं ही लक्ष्मीनारायण गुप्ता का हर्निया का ओपरेशन हुआ | ओपरेशन के बाद विश्राम की दृष्टि से उन्हें वरिष्ठ जनों वाली बैरक मैं आरामदेह बिस्तर पर रखा गया | कुछ स्वस्थ होने पर वे अक्सर हम लोंगो की बैरक मैं आ जाया करते थे | एक दिन जब वे हम लोगों से ऊंचे स्वर मैं हंसी मजाक कर रहे थे, ठहाके लगा रहे थे, तब बैरक मैं सो रहे एक अन्य वन्धु नाराज हो गए व बोले मेरी नींद ख़राब कर दी, चला जा नहीं तो लात दूंगा | श्री गुप्ता ने उनकी बात को मजाक मैं लिया और बोले सुबह के ९ बज चुके हैं , यह कोई सोने का समय थोड़े ही है, और लात क्या केवल तुम्हारे पास है | दूसरे साथी आपा खो बैठे व उनको मारने दौड़े | बमुश्किल हम लोग उन्हें रोक पाए |

उस दिन शिवपुरी के कार्यकर्ताओं का भोजन परोसने का क्रम था | जब सब लोग भोजन करने या कराने मैं व्यस्त थे तभी कुछा लोगों ने लक्ष्मीनारायण गुप्ता जी के साथ निर्मम मारपीट कर दी | हाल ही ओपरेशन से उठे श्री गुप्ता को पेट मैं भी मुक्के मारे गए | उन्हें भीषण शारीरिक व मानिसक कष्ट हुआ | इस घटना से आहत लक्ष्मीनारायण जी ने भोजन करने से मना कर दिया | सभी वरिष्ठ नेता उनको समझा कर हार गए, किन्तु वे भोजन करने को तैयार नहीं हुए व बिस्तर पर बैठकर आंसू बहाते रहे | 

भोजन परोसने की जिम्मेदारी से मुक्त होकर मैं उनके पास पहुँचा व उनसे कहा भैया यह जेल है तथा यहाँ सभी प्रकार के लोग हैं | जब भी तुम्हारी इच्छा हो मुझे बता देना अपन साथ मैं ही भोजन करेंगे | इसके बाद मैं नल पर जाकर हाथ मुंह धोने लगा | तभी लक्ष्मीनारायण जी खुद के साथ मेरी भी थाली कटोरी लेकर वहां पहुँच गए और बोले चलो भोजन करते हैं | वे भूल चुके थे अपनी सारी पीड़ा , सारा अपमान, अपना दुःख | उन्हें याद था तो केवल इतना कि मेरे भोजन न करने पर हरिहर भी भूखा रहेगा | मेरी आँखों मैं आंसू छलछला आये | आज भी वह प्रसंग मुझे द्रवित करता है | जेल से छूटने के बाद लक्ष्मीनारायण गुप्ता सन्यासी हो गए | वे आज स्वामी भैरवानंद सरस्वती के नाम से जाने जाते हैं तथा वर्तमान मैं कांगड़ा के पास उनका आश्रम है, पर कब तक ? पता नहीं ! बहता पानी, रमता जोगी !!

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