माओवाद का संकट और केरल उच्च न्यायालय का विवादास्पद निर्णय |

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आज केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ए मुहम्मद मुस्ताक ने फैसला दिया कि माओवादी होना कोई अपराध नहीं है | पुलिस किसी को केवल माओवादी होने के आधार पर गिरफ्तार नहीं कर सकती | गिरफ्तारी केवल तब की जाए, जब कोई गैरकानूनी कृत्य किया जाए | यह निर्णय केरल पुलिस की स्पेशल स्क्वाड द्वारा श्याम बालासुंदरम की गिरफ्तारी को लेकर दिया गया | प्राप्त समाचार के अनुसार श्याम बालासुंदरम एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के सुपुत्र (?) बताये जाते हैं |

राज्य की ओर से न्यायालय के समक्ष तर्क रखा गया था कि विगत डेढ़ वर्षों से पूरे केरल प्रांत में माओवादी गतिविधियों में भारी इजाफा हुआ है | विशेष रूप से वायनाड, कोझीकोड, मल्लापुरम और कन्नूर जिले माओवाद की चपेट में हैं | माओवादी विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की बस्तियों में जाते है, वहां उत्तेजक भाषण देते हैं, और उन लोगों को हिंसक बारदात अंजाम देने के लिए हथियार मुहैया करवाते हैं | इन लोगों ने एक प्रकार से भारत सरकार के विरुद्ध अघोषित युद्ध छेड़ रखा है |

ऐसे में केरल उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय की व्यापक समीक्षा आवश्यक है | क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम संभव है तथा यह मुद्दा राष्ट्र की सुरक्षा व संप्रभुता से जुदा हुआ है | नक्सलबाड़ी बंगाल से शुरू होकर नक्सलवाद १९८० में आंध्र, महाराष्ट्र, छात्तीसगढ़ तक आया ! इनके रैतकुली संगम, किसान मजदूर सम्मिलन की बदौलत मजदूरी १० रु. से ४० रु. हो गई, तेंदूपता ५ रु. से बढकर २० रु. हो गया ! किन्तु इनका वास्तविक उद्देश्य प्रशासनिक व्यवस्था ठप्प करना था ! महाराष्ट्र में ६ जिलों की १३ तहसीलें इनके प्रभाव में आ चुकी हैं ! ६ तहसीलें तो एसी हैं जहां सभी पञ्च सरपंचों ने त्यागपत्र दे दिए हैं ! ४० प्रतिशत तहसीलदार इनके भय से काम पर नहीं हैं ! 

नेपाल से केरल तक इनका फैलाव है ! जहां राज्यों की सीमाओं पर नदी या जंगल है बहां नक्सलवादी रेड कारपेट बनाया गया है ! पशुपति से तिरुपति तक, जंगल से मंत्रालय तक इनके संपर्क हैं ! नक्सलवादियों ने स्वयं को दो भागों में विभक्त किया है - संघम और दलम ! दलम अर्थात फील्ड वर्क और संघम अर्थात बौद्धिक आधार ! इसे यूं समझा जा सकता है कि पेम्पलेट बांटेंगे दलम के लोग, उसका मजमून तैयार करेंगे संघम से जुड़े लोग | भारतीय सैन्य बालों और पुलिस पर हमले करेंगे दलम वाले, अपने विरोधियों और मुखबिरों को ठिकाने लगायेंगे दल वाले, किन्तु उनका कोर्ट में बचाव से लेकर समाज में उन्हें हीरो के रूप में प्रस्तुत करने तक का मोर्चा संभालेंगे संघम के समाज मान्य महानुभाव | मिनिस्ट्री में भी इनके लोग हैं, तो न्यायपालिका में भी | पढेलिखे वकील भी उनके समर्थक हैं | कुछ मन से उनके साथ हैं तो कुछ वेतन भोगी हैं ! आदिवासी हित के नाम पर प्रतिदिन समस्या, चुनौती निर्माण करना उनका लक्ष्य ! 

केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय एक प्रकार से संघम से जुड़े नक्सलियों को सुरक्षा देने वाला है | क्योंकि वे मैदानी गतिविधि में भाग नहीं लेते | वे योजनाकार हैं, उनकी योजना को जमीनी हकीकत में बदलने वाले ही अब अपराधी माने जायेंगे, वे नहीं | इन नृशंस हत्यारों के कारण अब तक हजारों निर्दोष लोगों की जाने जा चुकी हैं | आशा की जाना चाहिए कि इस न्यायालयीन निर्णय को जल्द ही चुनौती दी जायेगी और इसके कारण व्यापक राष्ट्रीय हित प्रभावित नहीं होने दिए जायेंगे | आधे अधूरे मन से लड़ाई नहीं जीती जातीं | जो अराजक तत्व देश के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए हैं, उनके साथ किसी भी प्रकार की नर्मी नहीं बरती जानी चाहिए | इस निर्णय ने तो पुलिस प्रशासन की हालत ऐसी कर दी है जैसे किसी के हाथ पैर बाँध कर कुए में धकेल दिया जाए और कहा जाए कि अब तैरो |

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