पूर्व में भी नष्ट हो चुका है पूरा पाकिस्तान !



आज हम आये दिन देखते ही है कि गाहे बगाहे पाकिस्तान के रक्षा विशेषज्ञ और परमाणु संस्थान के वैज्ञानिक देश और दुनिया के तमाम टीवी चैनलों पर यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि यदि भारत और पाकिस्तान के मध्य भविष्य में युद्ध हुआ तो निश्चित ही पाकिस्तान के द्वारा पहला हमला परमाणु बम का ही होगा। वैसे तो पाकिस्तान के द्वारा इस तरह के फिजूल के बयान देना कोई नयी और अनोखी बात नहीं है, परन्तु हमारे भारतीय विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि भारत ने जवाब में सिर्फ एक ही परमाणु बम छोड़ दिया तो पाकिस्तान का वजूद ही मिट जाएगा। 




तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम।

सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम।

चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।। महाभारत ।। 8-10-14 ।।

अर्थात : जब ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है तब वायु भयंकर तमाचे मारने लगी। मानो जैसे सहस्रावधि उल्का आकाश से गिरने लगे, भूतमात्र को भयंकर महाभय उत्पन्न हो गया, आकाश में बड़ा शब्द हुआ, आकाश जलने लगा हो, पर्वत, अरण्य, वृक्षों के साथ पृथ्वी हिल गई हो।
विगत कुछ समय पूर्व गुजरात के द्वारिका क्षेत्र में 32 हजार वर्ष पुराने एक प्राचीन नगर को ढूंढ लिया गया है। यह काल महाभारत का काल था जबकि भारत अपने ज्ञान और विज्ञान के चरम पर था। 

महाभारत का युद्ध आज से लगभग 5,300 वर्ष पूर्व हुआ था। उस दौरान गुरु द्रोण के पुत्र अश्‍वत्थामा ने जो की अपने पिता के मारे जाने की खबर से बदले की आग में जलते हुए भगवान कृष्ण के लाख मना करने के बावजूद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर बैठा। पांडवों का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा लिए क्रोधित अश्‍वत्थामा गुपचुप तरीके से पांडवों के शिविर में जा पहुंचा और कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से उसने पांडवों के बचे हुए वीर महारथियों को मार डाला। केवल यही नहीं, उसने पांडवों के पांचों पुत्रों के सिर भी काट डाले। अंत में अर्जुन की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की उसे याद आई।

पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगी। अर्जुन ने जब यह भयंकर दृश्य देखा तो उसका भी दिल दहल गया। उसने अश्वत्थामा के सिर को काटने की प्रतिज्ञा ली। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर अश्वत्थामा वहां से भाग निकला। श्रीकृष्ण को सारथी बनाकर अर्जुन ने उसका पीछा किया। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो अंत में उसने ऐषिका (अस्त्र छोड़ने का उपकरण) लेकर अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलाना तो जानता था, पर उसे लौटाना नहीं जानता था।

उस अतिप्रचंड तेजोमय अग्नि को अपनी ओर आता देख अर्जुन ने उसने श्रीकृष्ण से विनती की। श्रीकृष्ण अर्जुन से बोले, 'है अर्जुन! तुम्हारे भय से व्याकुल होकर अश्वत्थामा ने यह ब्रह्मास्त्र तुम पर छोड़ा है। इस ब्रह्मास्त्र से तुम्हारे प्राण घोर संकट में हैं। इससे बचने के लिए तुम्हें भी अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा, क्योंकि अन्य किसी अस्त्र से इसका निवारण नहीं हो सकता।'

अततः अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ा। अश्वत्थामा ने जहाँ ब्रह्मास्त्र पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था वहीँ अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। दोनों द्वारा छोड़े गए इस ब्रह्मास्त्र के कारण लाखों लोगों की जान चली गई थी।

आज जिस हिस्से को पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है, महाभारतकाल में इसे पांचाल, गांधार, मद्र, कुरु और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तान का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र होता था, जहां यह युद्ध हुआ। उस काल में कुरुक्षेत्र बहुत बड़ा क्षेत्र होता था। कहा जाता है कि आज यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।

उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कुरु रहते थे। यहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे।

सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। मोहन जोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।

जब पुरातत्वशास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे, मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था।

उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।

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