इजराईल की अमर शौर्यगाथा - ओपरेशन थंडरवोल्ट |

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मध्यपूर्व में चारों तरफ से इस्लामिक देशों से घिर छोटे से राष्ट्र इज़रायल के लिए अपना अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती हर समय बनी रहती है. इस देश की आबादी काफी कम है और इसलिए उनके लिए अपने हर नागरिक के जीवन की कीमत भी काफी अधिक है.

इज़रायल अपने नागरिकों पर आने वाले किसी भी संकट का मूँह तोड़ जवाब देता है और ऑपरेशन एंटाबी या ऑपरेशन थंडरबॉल्ट ऐसा ही एक करारा जवाब था. ऑपरेशन एंटाबी के दौरान इजरायली कमांडो और सेना ने एक दूसरे देश के हवाई अड्डे में बिना अनुमति के घुस कर अपहृत किए गए अपने नागरिकों को छुड़वा लिया था. आज भी दुनिया के सबसे बड़े नागरिक सुरक्षा अभियानों में ऑपरेशन एंटाबी का नाम सबसे ऊपर आता है. 

विमान अपहरण:
27 जून 1976 का दिन. एयर फ्रांस की फ्लाइट 139 ने तेल अवीव से उडान भरी. इस विमान में विमान चालक दल के 12 लोग और 248 यात्री सवार थे. विमान थोडी देर बाद इजिप्त की राजधानी एथेंस पहुँचा और वहाँ लैंडिग की. इसके बाद इसने पेरिस के लिए उडान भरी. जिस समय विमान इजिप्त से बाहर निकल रहा था तब दोपहर के 12:30 बज रहे थे. अचानक दो यात्री खड़े हुए और केबिन की तरफ जाने लगे. आगे की सीट पर बैठे दो अन्य लोग भी उनके साथ हो लिए. 

जल्द ही विमान अपहृत कर लिया गया. जिन चार लोगों ने इस विमान को अपहृत किया उनमें दो फिलिस्तीनी थे और दो जर्मन. फिलिस्तीनी नागरिक पोपुलर फ्रंट फोर द लिबरल पेलेस्टाइन से सबंध रखते थे और जर्मन नागरिक जर्मन रिवोल्युशनरी सेल के थे. अपहरण के बाद अपहरणकर्ता विमान को लीबिया के शहर बेंगाजी ले गए जहाँ विमान में ईंधन भरा गया. यहाँ एक महिला यात्री को छोड़ दिया गया जो प्रसवपीड़ा का ढोंग कर रही थी. 

इसके बाद विमान युगांडा की तरफ ले जाया गया जहाँ दोपहर 3:15 मिनट पर विमान ने एंटाबी शहर के हवाई अड्डे पर लैंडिंग की. यहाँ 4 अन्य लोग अपहरणकर्ताओं से मिल गए और इस तरह से उनकी संख्या 8 हो गई. यह सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हो रहा था और अपहरणकर्ताओं को युगांडा के तानाशाह इदी अमीन का खुला समर्थन हासिल था. 

मांग:
अपहरणकर्ताओं ने अपहृत किए गए लोगों को छोड़ने की ऐवज में इज़रायल की जेलों में बंद 40 फिलिस्तिनी नागरिकों को छोडने की मांग की. इसके अलावा पश्चिम जर्मनी, केन्या, फ्रान्स और स्विट्ज़रलैंड में कैद 13 अन्य लोगों को भी छोडने की मांग की गई.

अपहरणकर्ताओं ने धमकी दी कि यदि उनकी मांगे ना मानी गई तो वे 1 जुलाई 1976 के बाद एक एक कर सभी अपहृत लोगों को मारना शुरू कर देंगे. इन लोगों को एयरपोर्ट की पुरानी टर्मिनल बिल्डिंग में कैद कर रखा गया. एक सप्ताह के बाद अपहरणकर्ताओं ने 105 यहूदी लोगों को छोड़कर बाकी कैदियों को रिहा कर दिया.

अपहरणकर्ताओं ने विमान चालक दल को भी जाने को कहा. परंतु विमान के कैप्टन माइकल बोकोस ने इंकार कर दिया. उन्होनें कहा कि सभी यात्रियों की जिम्मेदारी उनकी बनती है और इसलिए वे किसी भी यात्री को छोड़कर नहीं जाएंगे. चालक दल के बाकी सदस्यों ने भी उनका समर्थन किया और वे कैप्टन के साथ डटे रहे. बाकी लोगों को फ्रांस से आए एक विशेष विमान में बिठा कर रवाना कर दिया गया. 

उधर इज़रायल में इस घटना से गुस्से का माहौल था. सरकार किसी सख्त कार्रवाही के लिए दबाव में थी और उसके ऊपर अपने 100 से अधिक नागरिकों को जीवित बचाने का दबाव भी था. 

इज़रायल सरकार ने अपहरणकर्ताओं से बातचीत की और उन्हें उलझाए रखा. सरकार हर प्रकार के विकल्प तलाश रही थी. इसमें सैन्य विकल्प भी शामिल था और बातचीत के जरिए मामला सुलझाने लेने का विकल्प भी. इज़रायली सेना के एक रिटायर्ड अफसर बारूक बारलेव ने युगान्डा के तानाशाह इदी अमीन से कई बार बात की. इदी अमीन के साथ उसके अच्छे रिश्ते थे. इदी अमीन ने उसकी बात सुनी परंतु कोई आश्वासन नहीं दिया.

उधर सरकार के पास काफी कम समय बचा था. कुछ रिपोर्टों के अनुसार इज़रायल ने एक बार फिलिस्तिनी कैदियों को छोडने का मन भी बना लिया था क्योंकि उसके अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा था. परंतु इजरायली सेना ने दबाव बनाया कि उसके कमांडो युगांडा तक जाकर अपहरण किए गए लोगों को छुडा सकते हैं. अंत में सरकार ने इस ऑपरेशन को मंजूरी दे दी. 

पूर्व तैयारी:
इज़रायल ने इस ऑपरेशन को ऑपरेशन एंटाबी नाम दिया. इस ऑपरेशन के लिए व्यापक तैयारियाँ की गई. समय कम था फिर भी इजरायली सेना तथा कई नागरिकों एवं कम्पनियों ने इस पूर्व तैयारी में जाने अनजाने भाग लिया. इज़रायल की गुप्तचर संस्था मोसाद अपने काम में जुटी हुई थी. मोसाद के एजेंटो ने फ्रांस में अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छूट कर लौटे लोगों से व्यापक बातचीत की. उन्होनें यह जानने का प्रयास किया कि कुल कितने अपहरणकर्ता हैं और उन्होनें लोगों को कहाँ बंधक बनाकर रखा है. यह भी पता लगाया गया कि एंटाबी हवाई अड्डे के आसपास सुरक्षा के क्या इंतजाम किए गए हैं. 

मोसाद के सौभाग्य से उन्हें पता चला कि छूट चुके लोगों में एक यहूदी नागरिक भी शामिल है जिसने झूठ बोला था कि वह फ्रेंच है. दूसरा सौभाग्य यह कि उसे सैन्य साजो सामान की पूरी जानकारी थी. उसने मोसाद के एजेंटो को बताया कि अपहरणकर्ताओं के पास कैसे हथियार हैं और वे कहाँ कहाँ छिपे मिलेंगे. 

मोसाद द्वारा प्राप्त की गई यह जानकारी ऑपरेशन एंटाबी के लिए काफी उपयोगी साबित होने वाली थी. उधर इज़रायल में भी तैयारियाँ जोर शोर से जारी थी. एक तरफ सरकार इस प्रकार का माहौल बना रही थी कि वह फिलिस्तिनी कैदियों को छोडने के लिए तैयार है और जरूरी प्रक्रियाएँ पूरी कर रही है. दूसरी तरफ एंटाबी टर्मिनल के जैसी ही एक और इमारत इजरायल में ही तैयार की जाने लगी ताकी इजरायली सेना हमले से पहले पूर्व तैयारी कर सके. 

इसे इजरायल का अच्छा नसीब ही कहेंगे कि एंटाबी की उस पुरानी टर्मिनल बिल्डिंग का निर्माण एक इजरायली कंस्ट्रक्शन कम्पनी ने ही किया था और उसके पास इमारत का ब्लूप्रिंट पडा था. उस कम्पनी के कर्मचारियों ने बिल्डिंग का सेट बनाना शुरू किया. कुछ अन्य कम्पनियों ने भी इस कार्य में मदद की. जो लोग इस कार्य मे जुटे हुए थे उन्हें एक दिन डिनर पर बुलाया गया और कहा गया कि - इमारत बनने के बाद राष्ट्र के हित में उन्हें कुछ दिन तक सेना का मेहमान बन कर रहना होगा. मतलब साफ था. 

उधर इज़रायल ने अपहरकर्ताओं से अपील की कि वे समय सीमा को 1 जुलाई से आगे खिसका कर 4 जुलाई कर दें. इदी अमीन इसके लिए तैयार भी हो गया क्योंकि उसे 3 जुलाई को मोरिशस जाकर ओर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी की अध्यक्षता वहाँ के राष्ट्रपति शिवसागर रामगुलाम को देनी थी. इज़रायल के लिए इतना समय काफी था. 

3 जुलाई को इज़रायली कैबिनेट ने अधिकृत रूप से ऑपरेशन एंटाबी को मंजूरी दी. मेजर जनरल युकीतेल आदम को इसका नैतृत्व दिया गया और मातन विल्नाई को उप कमांड दी गई. 

मिशन: 
3 जुलाई की रात 4 हरक्यूलिस ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट इज़रायल से रवाना हुए. उनका मिशन गुप्त था. इस विमान में करीब 100 सैनिक थे जिन्हें अलग अलग दलों मे विभाजित किया गया था - एक छोटा दल जिसे ग्राउंड कमांड दिया गया. इसका काम था हवाई पट्टी की सुरक्षा करना और संचार सुविधा उपलब्ध करवाना. 

29 कमांडो का हमलावर दल जिसकी कमान लेफि. जोनाथन नेतन्याहू के पास थी. इसकी जिम्मेदारी थी इमारत में घुसकर अपहरणकर्ताओं को खत्म करना और नागरिकों को छुड़ाना. एक अन्य दल जिसका काम था इलाके की सुरक्षा करना. हवाई अड्डे पर खडे युगांडा हवाई सेना के मिग लड़ाकू जहाजॉं को नष्ट करना और किसी भी बाहरी हमले का सामना करना. 

4 सी-130 हरक्यूलिस विमानों ने उडान भरी और उनके पीछे दो बोइंग 707 विमान भी उडे. इन विमानों में चिकित्सकीय सुविधा और राहत सामग्री थी. 

ये विमान लाल सागर होते हुए इजिप्त, सुडान और सउदी अरब के रास्ते नैरोबी पहुँचे. विमानों ने मात्र 100 फूट की ऊँचाई पर उडान भरी थे ताकी इन देशों के रडार उन्हें पकड ना सकें. नैरोबी में एक बोइंग विमान छोड दिया गया और बाकी विमान पश्चिम दिशा में उड चले. रात 11.30 बजे एंटाबी हवाई अड्डे पर इन विमानों ने लैंडिंग की वह भी बिना एयर ट्राफिक कंट्रोल की सहायता के. 

एक हर्क्यूलिस विमान से एक मर्सिडिज कार निकली और उसके पीछे कुछ एसयूवी कारें भी निकली. ऐसा इसलिए ताकी हवाई अड्डे पर मौजूद युगांडा के सुरक्षाकर्मियों को लगे कि इदी अमीन अपनी यात्रा खत्म कर लौट रहा है. ऐसा हुआ भी, क्योंकि शुरू में युगांडा के सुरक्षाकर्मियो को यही लगा कि या तो इदी अमीन लौट आए हैं या फिर कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति आया है. 

यह काली मर्सिडीज पुरानी टर्मिनल बिल्डिंग की तरफ जाने लगी. इस कार में इजरायली कमांडो बैठे थे. लेकिन तभी दो सुरक्षाकर्मियों ने कार को रूकने के लिए कहा. ये सुरक्षाकर्मी जानते थे कि इदी अमीन ने हाल ही में नई सफेद मर्सिडीज़ कार खरीदी है और वह अब काली कार इस्तेमाल नहीं करता. इन दोनों सुरक्षाकर्मियों पर इजरायली कमांडो ने साइलेंसर वाली बंदूक से गोली चला दी. दोनों घायल हो गए परंतु मरे नहीं. एक कमांडो का ध्यान जब इस तरफ गया तो उसने अपनी एके-47 से गोलियाँ चला दी. दोनों मारे गए परंतु गोलियों की आवाज से युगांडा के सैनिक चौकन्ने हो गए. 

अब समय कम था. इज़रायली कमांडो ने इमारत पर धावा बोल दिया और दूसरी तरफ दूसरी यूनिट ने बाहर मोर्चा सम्भाल लिया. 

इमारत में घुसते ही गोलियाँ चलनी शुरू हो गई. इजरायली कमांडो माइक पर चिल्ला रहे थे कि हम इजरायली सैनिक हैं, लैट जाओ लैट जाओ. कमांडो ने 3 अपहरणकर्ताओं को गोली मार दी. तभी एक 19 वर्षीय फ्रेंच लडका खडा हो गया (इसने झूठ बोला था कि वह यहूदी है), कमांडो ने उसे अपहरणकर्ता समझा और गोली मार दी. इसके अलावा दो अन्य नागरिक भी क्रोस फायरिंग में मारे गए. 3 अपहरणकर्ता एक अन्य कमरे में छिप गए. कमांडो ने उस कमरे में ग्रेनेड फेंके और गोलियों की बौछार कर दी, वे भी मारे गए.

उधर तीन अन्य हर्क्यूलिस विमानों ने भी लैंडिंग कर ली थी और उसमें से सैनिक निकल आए थे. इन सैनिकों ने वहाँ खडे मिग विमानो को नष्ट करना शुरू कर दिया. उधर कमांडो की टीम ने लोगों को निकाल कर एक हरक्यूलिस विमान में बैठाना शुरू कर दिया. उनपर युगांडा के सैनिकों ने हमला किया. ये सैनिक एयर ट्राफिक कंट्रोल टावर पर खडे थे. इजरायली सैनिकों ने जवाबी हमला कर उन्हें मार डाला. 

परंतु एक युगांडाई स्नाइपर ने गोली चलाकर लेफि. जोनाथन नेतन्याहू की जान ले ली. इस पूरे हमले के दौरान इजरायल की सेना को मात्र यही जानहानि हुई थी. 10 कमांडो घायल भी हुए थे. 
सभी हर्क्यूलिस विमानों में ईंधन भरा जाने लगा और अंत में सभी विमानो ने उडान भर ली. पूरा ऑपरेशन 53 मिनट चला और उसमें से 30 मिनट तक कमांडो कार्रवाही चली. 

105 नागरिक छुडाए गए, तीन नागरिक मारे गए, करीब 40 युगांडाई सैनिक मारे गए, 1 इजरायली कमांडर मारा गया, 11 मिग विमान ध्वस्त कर दिए गए. 

ये विमान केन्या की राजधानी नैरोबी पहुँचे और वहाँ से इजरायल के लिए उड चले. युगांडा के तानाशाह इदी अमीन के लिए यह खून का घूंट पीने जैसा था. उसे यकीन ही नहीं हुआ कि कोई उनके देश में घुस कर अपने नागरिकों को छुडा कर ले जा सकता है वह भी इदी अमीन के 40 के आसपास सैनिकों को मारकर. 

इदी अमीन ने अपमान का बदला विभत्स तरीके से लिया और वहाँ की एक अस्पताल में भरती एक 75 वर्षीय इजरायली महिला को यातना देकर मरवा डाला. 

परंतु इज़रायल ने वह कर दिखाया था जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है !

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