भाजपा की विजय का वास्तविक कारण - एक विदेशी प्रोफ़ेसर की नजर में !

Vamsee Juluri, USF professor  
Author - 
'Bollywood Nation: India through its Cinema'
के विगत वर्ष लिखे गए लेख का हिन्दी अनुवाद 
नरेंद्र मोदी की जीत को उन दो बातों के इतर समझने की आवश्यकता है जिन्हें हम सामान्यतः पिछले कुछ महीनों से चुनाव के दौरान मुख्य रूप से सुनते आ रहे हैं | श्री मोदी के आलोचकों ने उनके उदय को हिंदू राष्ट्रवाद, फासीवाद और भारत में धर्मनिरपेक्षता की अपरिहार्य मृत्यु के रूप देखा है | श्री मोदी के समर्थक उनकी विजय को वर्षों से हो रहे उच्च पदों पर भ्रष्टाचार , सामान्य अयोग्यता और नागरिक और सार्वजनिक जीवन में अनैतिकता की एक कुत्सित भावना के बाद भारत के लिए आशा की किरण के रूप में देख रहे हैं |

लेकिन श्री मोदी को मिले भारतीय समर्थन को इन दो विचारों से परे समझने की जरूरत है | और जब श्री मोदी ने अपना चुनाव अभियान विभाजनकारी धर्मनिरपेक्षता विरोधी बयानबाजी के स्थान पर एक सार्वभौमिक सुशासन के आधार पर चलाया था, और यहाँ तक कि उनके आलोचक भी स्वीकार करते हैं कि उनकी जीत भारत में कुछ महान करने का अवसर है, सचाई यह है कि दोनों स्थितियों में आज उनकी जीत प्रारम्भ से अंत तक "आधुनिक सभ्यता से हिन्दू दर्शन" के इर्द गिर्द है | 

श्री मोदी को जो जनादेश मिला है, दूसरे शब्दों में, नातो केवल अच्छे शासन के लिए है और ना ही धर्मनिरपेक्षता को नष्ट करने के लिए, लेकिन इसके माध्यम से आज की दुनिया में, हिंदू और भारतीय होने का क्या अर्थ है, इसका नया और उभरता हुआ विचार अवतरित हुआ है | यह 1980 और 1990 के दशक में प्राप्त जनादेश में देखे गए हिंदू राष्ट्रवाद से बहुत अलग है |

यह जनादेश , सीधे शब्दों में कहें तो हिंदू राष्ट्रवाद या धर्म निरपेक्षता से अधिक हिंदुत्व विषयक है | यह बात असत्य लग सकती है, किन्तु विभाजनकारी जानी पहचानी बयानबाजी से परे सर्वजन कल्याण की प्रतिज्ञा के द्वारा श्री मोदी ने दुनिया को देखने का एक बहुत अच्छा हिंदू नजरिया पुनर्स्थापित किया है | यह समझना महत्वपूर्ण है कि श्री मोदी के खिलाफ गढी गई धर्मनिरपेक्ष विरोधी छवि पर भारत के युवाओं के बडे वर्ग में आज बहुत कम, बौद्धिक, भावनात्मक, या नैतिक विश्वास है | और यह स्थिति मेरे विचार से धर्मनिरपेक्षता के लिए भी एक अच्छी बात है | हमें इसे समझना चाहिए और इसका सम्मान करना चाहिए |

आज भारत के युवा तेजी से भूमंडलीकृत सांस्कृतिक वातावरण में बड़े हो रहे हैं, अन्य देशों में अध्ययन या व्यवसाय के इच्छुक हैं, सामान्यतः उनका रुझान संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम की ओर रहता है, भारत के अधिकाँश भागों में विविधता के अभ्यस्त, बहु धर्मी सहस्तित्व के कारण वे स्वाभाविक रूप से अन्य समुदायों के प्रति घृणा का भाव नहीं रखते | जबरदस्त विरोधाभास लगता है कि कैसे वे खुद को देखते हैं और कैसे वे वैश्विक परिवेश में प्रतिनिधित्व करते हैं | 

युवा हिंदू स्वयं को एक महान सांस्कृतिक विरासत के प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं | वे केवल अपनी प्राचीन महिमा पर ही मान नहीं करते, बल्कि उनकी आध्यात्मिकता का आधार सह - अस्तित्व और सभी धर्मों के प्रति सम्मान है | मुस्लिम, ईसाई , सिख, बौद्ध , जैन , और भाषा , परंपरा , जाति और इतिहास द्वारा विभाजित हिंदुओं के इतने भिन्न प्रकार, अभी भी इतनी गहराई से इस भूमि और इतिहास का हिस्सा है | यह केवल इसलिए नहीं है कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, बल्कि इसलिए कि सभी धर्मों का सम्मान करना हिंदू धर्म की प्राचीन विरासत है | अब भारतीय होने की इच्छा एक नई भावना है | भारत के युवाओं की दृष्टि में हिन्दू, उस हिन्दूराष्ट्रवादी बयानबाजी से बहुत अलग है जिसे हमने दो दशक पहले देखा था |

यह कोई धर्मनिरपेक्ष टिप्पणी नही है, किन्तु दुर्भाग्य से उस दौरान अधिकांश भाग में हिंदुओं को अतिवाद और राष्ट्रवाद पर गर्व के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था | वस्तुतः वह केवल बदतर हो गई थी, यदि ऐसी बात संभव हो | इसपर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारतीय मतदाताओं ने हाल के महीनों में गार्जियन , द न्यूयॉर्क टाइम्स , और द इकोनोमिस्ट के प्रभावी पृष्ठों पर श्री मोदी को अस्वीकार करने के कई बयानों और भावुक अपील को नजर अंदाज कर दिया | ऐसा क्यों हुआ यह जानने के लिए यह स्मरण करना आवश्यक है कि ये प्रकाशन हिन्दू, हिंदुत्व और भारत के विषय में क्या कहते थे, इसके पूर्व वे उस धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार बन चुके थे जो संभवतः भारत से विलुप्त हो रहा है |

द इकोनोमिस्ट ने एक बार वर्णित किया कि पवित्र हिन्दू आराध्य अमरनाथ का शिवलिंग “लिंग के आकार का वर्फ का बना पिंड” है |

गार्जियन ने एक बार एक प्रतिष्ठित हिंदू गुरु के निधन पर निंदा लेख लिखा, जिन्होंने भारत की धर्मनिरपेक्ष , बहु - धार्मिक स्थिति के लिए जितना किया, शायद ही किसी बौद्धिक या सामाजिक कार्यकर्ता ने कभी किया हो, और सरलीकृत रूप में अपनी " शांति, प्रेम और शाकाहार " की शिक्षाओं का प्रसार किया |

2,008 में हुए पाकिस्तानी आतंकवादी हमलों के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत और हिन्दू राष्ट्रवाद पर आरोप लगाने वाले लेखों की झड़ी लगा दी | एक तथाकथित हिंदू धर्म " विशेषज्ञ " जिसने अपनी पुस्तक में प्राचीन हिन्दुओं की तुलना नाजियों से की, उसके प्रति असहमति का एकतरफा बहिष्कार किया गया | 

इस प्रकार के ट्रैक रिकॉर्ड से , कोई क्यों नरेंद्र मोदी के विषय पर उन्हें गंभीरता से ले पाएगा? तथ्य यह है कि अधिकाँश हिंदुओं की नजर में हिन्दू अतिवाद के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष आलोचना महत्वहीन हो चुकी थी, हो सकता है कुछ समय पूर्व वह सैद्धांतिक दृष्टिकोण से व निष्पक्षता पूर्वक की गई हो | उन्हें इस बात की चिंता नहीं कि कुछ हिंदूवादी नेताओं ने उग्र राष्ट्रवाद अपनाया और अल्पसंख्यक विरोध किया, किन्तु उन्हें अपने धर्म, अपने देश और विश्व में उसकी स्थिति की परवाह है | 

मोदी की खिलाफत के नाम पर धर्मनिरपेक्षता की वकालत उनकी द्रष्टि में केवल हिंदुत्व विरोध है |माना जा रहा था कि श्री मोदी निश्चित रूप से विभाजनकारी मार्ग पर चलेंगे, किन्तु वास्तव में स्थिति इससे भिन्न होती गईं | सचाई यह हैकि उन्होंने ऐसा नहीं किया |

शायद सही मायने में भारत के बारे में अब एक बेहतर चर्चा का यह सही समय है, साथ ही धर्म और राष्ट्रवाद के भविष्य के लिए भी | अब तक देखे गए पुरजोर हिंदूविरोध के स्थान पर हमें धर्मनिरपेक्षता का वास्तविक अभिप्राय समझना होगा | हमें लम्बे समय से प्रभाव जमाये 19 वीं सदी की विचारधाराओं से बहस में प्रवेश करने के लिए भी हिन्दू राष्ट्रवाद की एक बेहतर धारणा की आवश्यकता है | कम से कम उत्तरार्द्ध में , श्री मोदी ने अतीत से एक विशिष्ट परिवर्तन के रूप में चिह्नित किया है |

क्या प्रधानमंत्री मोदी वास्तविक रूप से उस मुख्यमंत्री से भिन्न होंगे जिसने कथित तौर पर 2002 में भयानक दंगा व्यापक रूप से चलने दिया, यह एक ऐसा प्रश्न है जो बहुतों को बेचैन करता है | भारतीय मतदाताओं ने स्पष्ट रूप से उनके पक्ष में राय दी है | यदि वास्तव में वहां अक्षम्य अपराध हुआ तो निश्चित रूप वोट उसकी गंभीरता को कम नहीं करते | लेकिन हमें एक बात का ध्यान रखना होगा कि इसका विचार भारत में रहने वाले लोग करेंगे, हम लोग नहीं जो भारत के बारे में केवल हिन्दू विरोधी प्रकाशन पढ़ते हैं | 2002 में कुछ दिनों के लिए, आरोप लगा कि एक सरकार अपने नागरिकों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी में विफल रही, और इस चूक के लिए वास्तव में दंड दिए गए | लेकिन हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि इन लोगों ने अपराध के लिए सजा पाई, किन्तु जो सरकार का प्रमुख था उसके बारे में किसी भी अन्य की तुलना में अधिक अधिक बात होती है | यह वास्तव में उसने जो किया उसके बारे में है अथवा हमारे भय का एक प्रतीक बन गया है, संभवतः यह कभी नहीं जाना जाएगा |

लेकिन एक और स्थिति पर विचार करें कि एक सरकार अपनी जिम्मेदारी में नाकाम रहती है, कुछ दिनों के लिए नहीं, कई वर्षों तक, कई अवसरों पर आतंकवादी अपनी परोक्ष फंडिंग की सहायता से मौत और तबाही फैलाते हैं | भारत के लोग इसके लिए एक बार संयुक्त राज्य अमेरिका या ब्रिटेन की सरकारों को दोषी नहीं ठहरा सकते कि उन्होंने इसे नजरअंदाज किया है, या उनके द्वारा संरक्षित सरकारों के माध्यम से आतंकवाद का बेशर्म समर्थन हो रहा है | फिर भी, इन सरकारों ने अतीत में उस एक लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेता की निंदा की जिसने अपनी देखरेख में अकेले सफलतापूर्वक वह इकलौता दंगा रोका |

कुछ भी नहीं किया जा सकता जो 2002 के गुजरात दंगे में पीड़ित हिंदू और मुसलमान लोगों की पीड़ा कम कर सके | कुछ भी नहीं किया जा सकता जिससे भारत में आतंकवादियों के हाथों, उनके बमों और गोलियों के द्वारा पिछले दो दशक में जो दर्द मिला वह मिटाया जा सके | लेकिन एक बात अब भारतीय मतदाता ने निर्णायक रूप से की है, वह यह कि जिनकी राजनीति हिंसा की है, विभाजनकारी है और जिनकी पहचान बदसूरत दावों पर आश्रित है, उन्हें अस्वीकृत किया है | सभी के लिए अच्छे प्रशासन का मुद्दा स्वीकार कर लिया गया है | भारत ने छद्म धर्मनिरपेक्षता और अतिवादी हिन्दू राष्ट्रवाद दोनों को अस्वीकार कर दिया है . इसका अर्थ यह भी है कि युवा हिंदुओं ने भी बेशर्म , जातिवादी हिंदूद्रोह को सबक तो सिखाया है, किन्तु दूसरों के लिए यह आश्वासन है कि भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को धमकी नहीं दी जायेगी | और साथ ही सांस्कृतिक जड़ों को मान्यता व मजबूती दी गई है जिस पर देश के कई धर्म पल्लवित हो सकें |

वास्तव में यह चुनाव धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक अतिवाद के बीच चुनने के बारे में नहीं था, जैसा कि प्रचारित किया जा रहा था | संभवतः भारतीयों ने इसे हिंदूद्रोह और भारत में से एक का चुनाव माना और भारत को चुना |

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