मरता हुआ क़ानून !

एक बलात्कारी, बलात्कारी ही क्यों ? एक महिला के गले को कुत्ते के पट्टे से बांधकर उसके साथ कुत्ते की तरह ही अप्राकृतिक बलात्कार करने वाला नराधम सजा पाए महज सात वर्ष कारावास की, जबकि पीड़िता भुगते आजीवन कारावास की सजा | यह स्थिति बने तो क्या क़ानून को जीवित माना जाएगा ?

यही तो हुआ है मुंबई में परेल स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल की नर्स अरुणा शानवाग के साथ | उनका अपराध क्या था ? केवल इतना कि उन्होंने वार्ड बॉय सोहनलाल वाल्मीकि को कुत्ते का खाना चुराने से रोका था, और शिकायत करने की धमकी दी थी | 

इस भीषण अनाचार की शिकार अरुणा तो किसी को कुछ बताने की स्थिति में ही नहीं रहीं, कोमा में चली गईं | दूसरी तरफ उनकी शादी होने वाली है, यह दलील देकर होस्पीटल के तत्कालीन डीन डॉ. देशपांडे ने अप्राकृतिक यौनाचार की शिकायत ही दर्ज नहीं की | और नरपिशाच सोहनलाल तो प्राणघातक हमले और डकैती के आरोप में सात साल की सजा भुगतकर बाहर हो गया, जबकि दूसरी ओर अरुणा 42 वर्ष तक अस्पताल के बेड पर क्षण क्षण मरती रहीं, और अंततः दो दिन पूर्व उन्होंने इस समाज को आईना दिखाते हुए अंतिम सांस ले ली |

जिस संभावित विवाह की आड़ लेकर सोहनलाल को बचाया गया, वह तो कभी हुआ ही नहीं | अरुणा के मंगेतर तो किसी और के साथ विवाह बंधन में बंधकर दूर चले गए, कभी सामने भी नहीं आये | कहा जाता है कि अपराधी सोहनलाल भी जेल से छूटने के बाद दिल्ली चला गया और अपना नाम बदलकर किसी अस्पताल में पुनः नौकरी पा गया | शायद आज भी जीवित हो और अपनी बहादुरी के किस्से चटखारे लेकर अपने दोस्तों को सुना रहा हो | देखो जिसने मेरी शिकायत करने की कोशिश की, मैंने उसका क्या हाल किया |

विदा अरुणा शानवाग ! हमारे मृतप्राय समाज को आईना दिखाने वाला तुम्हारा बलिदान आज भले ही व्यर्थ माना जाए, किन्तु जो तेजाबी आंसू हमारी आँखों में आये हैं, शायद किसी दिन इस अंधे बहरे क़ानून की स्याही बन सकें ???????????????
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