भाजपा शासन का एक वर्ष - अटल जी बोलते तो क्या बोलते ?


अटल जी अपने भाषणों में महर्षि अरविंद को इस प्रकार उद्धृत करते थे -हम भारत के नक़्शे की तरफ देखें,यह केवल जमीन का टुकड़ा नहीं राष्ट्र पुरुष है !हिमालय जिसका मस्तक कश्मीर किरीट है,गौरीशंकर शिखा, पंजाब और बंगाल विशाल कंधे हैं !दिल्ली इसका दिल है, विन्ध्याचल कमर है,नर्मदा इसकी करधनी है,पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट इसकी दो विशाल जंघाएँ हैं !सावन के काले काले मेघ इसकी केशराशि हैं,चाँद और सूरज इसकी आरती उतारते हैं !सागर इसके चरण धुलाता है,मलायानिल विजन डुलाता है !यह वंदन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,ये अर्पण की भूमि है, ये तर्पण की भूमि है !इसका कंकर कंकर शंकर है, विन्दु विन्दु गंगाजल है,हम जियेंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए !

आज जिस प्रकार अटल जी मौन हैं,

यह भाव भी हुआ गौण है !

अगर यह राष्ट्र पुरुष और हम इसके भक्त,

तो मानें खुद को इसकी शिराओं में दौड़ता रक्त !

रक्त जो हिन्दू का हो या मुसलमान का,

सिक्ख, बौद्ध या किसी क्रिस्तान का !

हमेशा होता है लाल सिर्फ सुर्ख लाल,

भारत के लाल क्यूं रखें आपस में मलाल ?

पहले हम तो एक हो लें, तभी सब नेक होगा,

अखंड भारत ही क्यों, सारा जहां एक होगा !!

शब्द सारे चुक गए, अटलबिहारी मौन है !भारत चमकता ही रहे, स्वप्नद्रष्टा कौन है ?पर स्वप्न उनका स्वप्न ना रह पाएगा ?
नदियाँ जुड़ें, मन भी जुड़ें, बह दिन जल्द आएगा ?
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