श्रद्धांजली श्री दिवाकर वर्मा


आपातकाल के दौरान ग्वालियर केन्द्रीय काराग्रह में रहे मीसाबंदी, दिवाकर जी को शायद ही कभी भूल पायें | उनकी उन्मुक्त हंसी, हरफनमौला व्यक्तित्व, हर छोटे बड़े के साथ आत्मीयतापूर्ण व्यवहार, सादगी, सरलता सबको अपना बना लेता था | आज से ठीक एक वर्ष पूर्व दिनांक 01 मई 2014 को दिवाकर जी ने अपनी जीवन यात्रा पूर्ण की | एक सामान्य स्वयंसेवक कितना असामान्य होता है, इसे दिग्दर्शित करता है दिवाकर जी का जीवन वृत्त -

पौष शुक्ल सप्तमी संवत १९९८ दिनांक २५ दिसंबर १९४१ को सूकर क्षेत्र सोरों जी में जन्मे दिवाकर वर्मा माता पिता की इकलौती संतान होने के कारण लाड प्यार से पले ! वाल्यावस्था से ही संघ स्वयंसेवक बन गए थे ! हाई स्कूल तक सोरों में फिर इंटर वृन्दावन से तथा स्नातक परिक्षा मथुरा से उत्तीर्ण की ! मथुरा में रिश्ते के एक बड़े भाई कालेज में प्रोफेसर थे ! वे कांग्रेसी मानसिकता के थे ! अतः संघ से संबंधों को देखकर कुछ खिन्न रहते थे ! इसके बाद भी संघ से नजदीकी तो रही पर कुछ शिथिलता भी ! 

शिक्षा पूर्ण होने के बाद सागर जिले के खुरई में संस्कृत शिक्षक बने ! फिर भुसावल में रेलवे की ए.एस.एम. ट्रेनिंग ९ माह की, किन्तु इंस्ट्रक्टर से झंझट हो जाने के कारण बीच में ही छोडकर बापस आ गए ! इसी दौरान विवाह संपन्न हो गया ! विवाह के बाद खुरई मंडी कमेटी में एकाउन्टेंट बने पर ७-८ महीने में ही यह नौकरी भी छोड़ दी ! पोलिटेक्निक खुरई में भी ८-१० माह ही टिके ! किन्तु ए.जी. ऑफिस में लंबे समय तक सेवा में रहे ! जून ६५ से जुलाई ६७ तक भोपाल तथा उसके बाद ग्वालियर ! भोपाल में संघ संपर्क पुनः प्रारम्भ हुआ तो ग्वालियर में और प्रगाढ़ हुआ !

ग्वालियर में तत्कालीन विभाग प्रचारक तराणेकर जी की सादगी से अत्याधिक प्रभावित हुए | तराणेकर जी थे भी अद्भुत | एक थैले में रखी डायरी तथा कलम ही उनकी पूंजी थी ! दो धोती तथा दो कुडते उनकी संपत्ति ! कई बार तो एक ही धोती रहती जिसे रोज सुबह धोकर सुखा लेते और धारण कर लेते ! ग्वालियर हाई कोर्ट के सामने स्थित कार्यालय की छत पर अनेक लोगो ने उन्हें गीली साफी लपेटे धोती के एक सिरे को कुछ ऊंचाई पर बांधकर दूसरे सिरे को पकडकर हिलाते और इस प्रकार उसे जल्दी सुखाते देखा है ! कोई आ जाता तो उसी कार्य को करते करते चर्चा भी हो जाती !

फिर तो तराणेकर जी ने जो जिम्मेदारी दी उसे प्राणपण से निभाया | सर्वप्रथम संघ की विभाग कार्यकारिणी में कर्मचारी प्रमुख बने ! सन १९७४ में भारतीय मजदूर संघ से जुड कर विभागीय जिम्मेदारी संभाली ! उस समय तराणेकर जी ने सार्वजनिक जीवन के कुछ सूत्र  दिवाकर जी को दिए ! जैसे पहले वर्मा जी बिना नहाये कुछ नहीं खाते थे, चाय पीते ही नहीं थे | जब तराणेकर जी ने इन आदतों को संगठन कार्य के प्रतिकूल बताया तो फिर वर्मा जी स्वयं को बदलकर चाय पीना शुरू किया ! आपातकाल के दौरान मीसावंदी रहते पूर्णकालिक बनने का विचार पुष्ट हुआ ! अतः ग्वालियर से पुनः भोपाल ट्रांसफर कराया ! ७९ में भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश मंत्री तथा बाद में प्रदेश उपाध्यक्ष रहे ! ८५ के बाद दायित्व मुक्त और २००१ में सेवानिवृत्त हुए ! 

९८ से साहित्य सृजन शुरू हुआ तथा २००२ में साहित्य परिषद से जुड राष्ट्रीय मंत्री बने, बाद में प्रदेश उपाध्यक्ष रहे ! वे निराला सृजन पीठ के निदेशक भी रहे ! उनकी कुल ८ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ! ४ गीत संग्रह, १ गजल संग्रह, १ नाटक, १ दोहा संग्रह तथा १ मुक्त छंद कविता संग्रह ! २ गीत संग्रह तथा १ निबंध संग्रह संभवतः वे प्रकाशित नहीं करवा पाए !


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