तुष्टीकरण चालू आहे |



सन १८५७ के स्वातंत्र्य समर में क्रान्ति के महान नेताओं ने दिल्ली पर अधिकार कर अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली मुग़ल बादशाह को मुक्त कर सम्राट के रूप में पुनः सिंहासनारूढ़ किया | यह इसलिए किया गया, जिससे दिल्ली के तख़्त के प्रति वफादार लोगों का भी समर्थन व सहयोग प्राप्त हो जाए | किन्तु इस पग ने हिन्दू जनता के ह्रदय में संदेह उत्पन्न कर दिया कि वही अत्याचारी मुग़ल शासन, जो गुरू गोविन्दसिंह, छत्रसाल, शिवाजी तथा उसी प्रकार के अन्य देशभक्तों के प्रयत्नों से समाप्त हो चुका था, एक बार पुनः पुनर्जीवित कर छलपूर्वक उन पर लाद दिया जाएगा | और वह अंग्रेजी शासन से भी बड़ी दुखदाई घटना होगी | हिन्दू मस्तिष्क जो नानासाहब पेशवा, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई तथा कुंवर सिंह जैसे सेना नायकों की ओर देखकर हिन्दू स्वराज की कल्पना से स्फूर्त था, उसकी युद्ध करने की प्रेरणा समाप्त हो गई | इतिहास वेत्ताओं का कथन है कि उस क्रान्ति की अंतिम असफलता के निर्णायक कारणों में से यह भी एक कारण था |

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री मा.स. गोलवलकर जी का उक्त कथन आज भी प्रासंगिक है | जिस हिन्दू लहर पर सवार होकर नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे, आज उनका व्यवहार उससे भिन्न देखकर उनका मतदाता खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है | तंत्र की विकृतियाँ व बिद्रूपताएं आज पहले की तुलना में अधिक व्यथित करती है | ज़रा गौर करें साध्वी प्राची के उस बयान पर, जिसमें उन्होंने कहा कि सलमान खां दोषी होते हुए भी मुसलमान होने के कारण हिट एंड रन मामले में जमानत पा गए | वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर लगातार साध्वी प्रज्ञा सिंह की जमानत न होने का विषय छाया हुआ है | जिनके प्रति आम धारणा यह है कि उन्हें कांग्रेस शासनकाल में जबरन और झूठा फंसाया गया | आजतक उनपर कोई चार्ज भी नहीं लगा, फिर भी वे जेल में हैं | 

इसी प्रकार तेलंगाना सरकार ने तो अति ही कर दी | उन्होंने तो खुल्लमखुल्ला एलान कर दिया कि वे अपनी "शादी मुबारक" योजना के अंतर्गत केवल मुस्लिम समाज की लड़कियों को 51000 रुपये भेंट देंगे | पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो कहते ही थे, कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है | आश्चर्य नहीं कि कुछ दिनों बाद यह भी हो जाए कि  चुनाव में प्रत्येक अल्पसंख्यक को दो वोट डालने का हक़ होगा और हिन्दू केवल एक वोट सकेंगे | तंत्र का यह विरोधाभाष दुखदाई व चकित कर देने वाला है |

इसीलिए राजनीति को लेकर कहा गया है –

अमर विस्मिल रोशन लाहिरी अमर आज़ाद प्रतापी आज |
अंग्रेज हुए थे कम्पित जिनसे छोड़ भगे थे तख्तो ताज |
लेकिन सचमुच पूर्ण हुआ क्या, जो देखा था सपना ?
अंग्रेजों के जाने से ही, राज हुआ क्या अपना ?

नेता शब्द बना है गाली, देख देख झल्लायें |
आजाद हिंद के नायक ऊपर बैठे अश्रु बहायें |
कौन करेगा देश की चिंता, बात समझ ना आये |
बागड़ खेत को खाने टूटी, सब मिल गाल बजाये || 

इन पर ना विश्वास करो भगवान भरोसे रह लेना !
भगवान भरोसे देश चला अब इनसे क्या लेना देना ?
रंग अलग हैं टोपी के, सबकी फितरत एक,
सच्चाई दुश्मन हुई, बटमार हुआ प्रत्येक ! 

नेता अब गाली बने, बने आज नासूर,
साथ अगर अवगुण सभी, फिर दिल्ली क्या दूर !!
बबंडर में आसमान चूमते तिनके क्या समझेंगे ?
ये तो बस आँख की किरकिरी बन कसकेंगे !

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