धर्म और अधर्म की समुचित व्याख्या - भारतीय परिवार व्यवस्था |

विचार करें तो वैश्विक स्तर पर एक अनुशासन दिखाई देता है | सूर्य की परिक्रमा प्रथ्वी वा अन्य ग्रह करते हैं तो सम्पूर्ण सौर मंडल भी अपनी निर्धारित गति में गतिमान है | यह अनुशासन ही धर्म है | सौर मंडल का धर्म उसकी गति, पंचमहाभूतों का अपना अपना धर्म | अग्नि का धर्म ताप, तो जल, वायु, प्रथ्वी, आकाश का अपना अपना धर्म | गाय मांस नहीं खाती तो वह उसका धर्म, बिल्ली घांस नहीं खायेगी तो वह उसका धर्म | इन सबकी प्रकृति ही उनका धर्म है | 

प्रकृति के परे केवल मनुष्य जा सकता है | वह अच्छाई की ओर जाए तो संस्कृति, और बुराई की ओर जाये तो विकृति | संस्कृति की ओर ले जाने वाले गुण धर्म और विकृति की ओर अधर्म | 

कौरव पक्ष में सबको केवल अपनी अपनी चिंता थी | भीष्म को अपनी प्रतिज्ञा की चिंता थी, द्रोणाचार्य पुत्रमोह ग्रस्त, तो दुर्योधन को केवल मात्र अपने राज्य की चिंता थी | जबकि पांडव पक्ष में सबने अपने व्यक्तिवादी द्रष्टिकोण को छोड़कर भगवान कृष्ण के नेतृत्व में एकजुट होकर कार्य किया | 

समष्टि का विचार कर कार्य करने का ढंग ही धर्म और व्यक्तिवादी आधार पर सोचना अधर्म यह सीधी परिभाषा | जैसे किसी की ह्त्या करना पाप है, किन्तु युद्ध में लड़ने वाले सैनिक को कोई हत्यारा नहीं कहता | 

स्त्री की संवर्धन शक्ति से न केवल परिवार वरन सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र और सृष्टि की सम्यक वृद्धि होती है | दुर्भाग्य से आज संयुक्त परिवार व्यवस्था का ह्रास होने से भारत में बच्चों के लिए दादा दादी, ताऊ चाचा जैसे शॉक ओब्जर्बर कम होते जा रहे हैं | दूसरी और बच्चों की शक्ति को गलत दिशा देने के षडयंत्र देश में चल रहे हैं | आज के जटिल वातावरण में परिवार चलाने का दायित्व कैसे पूरा हो, यह चिंतन का विषय है | अच्छा परिवार अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों की प्राप्ति करने को प्रवृत्त उद्देश्यपूर्ण परिवार | 

पुरुषार्थ से धन कमाना, किन्तु धर्माधारित | कामनाओं की पूर्ती करें पर धर्माधारित | प्रजनन का अर्थ है, जो जन्मा है उसकी प्रगति अर्थात बच्चे माता पिता से अधिक श्रेष्ठ बनें, आगे जाएँ | बच्चों को अच्छा शरीर, अच्छा मन, अच्छी बुद्धि कैसे मिले इसकी योजना पूर्वक चिंता करना माता पिता का कर्तव्य है | बच्चों को आरामतलब बनाने से वे सामर्थ्यशाली नहीं बनेंगे | उनमें बचपन से श्रम करने की, व्यवस्थित रहने की आदत होना चाहिए | पांच वर्ष की आयु तक बच्चों की सारसंभाल केयर, उसके बाद सोलह वर्ष की आयु तक उन्हें ढालना मोल्ड करना, तत्पश्चात समझाईस शेयर एंड सजेस्ट | 

हमारे यहाँ मनस्वियों ने गृहस्थ जीवन को भी आश्रम कहा है | आश्रम अर्थात तपस्या करने का स्थान | हमें देश की भावी पीढी का निर्माण तपस्या की तरह करना है | इसके साथ ही जो समाज हम बच्चों के दें, वह भी अच्छा बने यह भी गृहस्थ की ही जिम्मेदारी है | ब्रह्मचर्य आश्रम में केवल स्वयं की सामर्थ्यवृद्धि, ज्ञान प्राप्ति, गृहस्थाश्रम में मैं और मेरा परिवार, वान्यप्रस्थ में समाज हितैषी भूमिका तथा संन्यास में समूची सृष्टि के कल्याण हेतु सचेष्ट सक्रिय, यही है भारतीय परिवार व्यवस्था, जिसे समूर्ण विश्व आज आदर्श मान रहा है | इस जीवन दृष्टि को अपनाकर ही भारत पुनः जगतगुरू बन सकता है |

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें