अच्छे दिन दूर, इसका क्या गम, बुरे गए ये क्या कम ?


चीन में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक पुराने फिल्मी गीत की पंक्तियाँ सुनाईं – दुःख भरे दिन बीते रे भैया | लेकिन उन्होंने इस गाने की अगली पंक्ति नहीं सुनाई | सभी जानते हैं कि गाने की अगली पंक्ति है – अब सुख आयो रे, रंग जीवन में नया छायो रे | स्पष्ट ही प्रधान मंत्री भी यह अनुभव करते हैं कि अभी अच्छे दिन दूर हैं | लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारतवासियों के अच्छे दिन आयें, इसके लिए प्रधान मंत्री हाड तोड़ परिश्रम कर रहे हैं |

देश में रोजगार की कमी सबसे बड़ी समस्या है, इसके निदान के लिए “मेक इन इंडिया” का न केवल दुनिया भर से आह्वान करना, बल्कि स्वयं होकर विदेशी उद्योगपतियों से चर्चा कर उन्हें प्रेरित करना, उनके सद्प्रयत्नों की एक बानगी है | विपक्षियों की टीका टिप्पणी को नजर अंदाज कर वे अपनी धुन में डूबे हुए हैं | विरोधी उनका मजाक उड़ा रहे हैं, उन्हें प्रवासी पीएम बता रहे हैं, विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और उनके बीच खाई पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, किन्तु पीएम राष्ट्रहित के मद्देनजर आलोचनाओं से बेपरवाह अपनी राह बढे जा रहे हैं | 

इसीका नतीजा हैकि चीन सरकार के ठन्डे रुख के बाबजूद चीनी उद्योगपतियों ने भारत में 20 अरब डॉलर के पूंजी निवेश हेतु करार किये | फ्रांस की कार निर्माता कम्पनी रैनो ने तो भारत को अपना मेन्यूफेक्चरिंग हब बनाने का ही एलान कर दिया | दो दिन पहले ही दक्षिण कोरिया की कार निर्माता कम्पनी हुंडई ने भी भारत में एक और फैक्ट्री लगाने की घोषणा की है | जब इतने उद्योग स्थापित होंगे तो क्या भारतीय नौजवानों को रोजगार नहीं मिलेंगे ? 

हम केवल विदेशी पूंजी पर ही आश्रित नहीं हैं, देश में भी अपनी प्राथमिकताएं तय हुई हैं | अभी तक हम लोहा निर्यात करते थे और उससे ही बने इस्पात का आयात | उद्योग मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हाल ही में यह घोषणा की है कि अब इस्पात देश में ही बने यह उनकी प्राथमिकता है | इन्हीं प्रयत्नों का नतीजा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में जहा गया है कि अगले दो तीन वर्षों में भारत की अर्थ व्यवस्था चीन को पीछे छोड़ देगी | स्पष्ट ही मोदी सरकार के कामकाज में एक गति, एक लय, एक दिशा दिखाई देती है | 

जरा कल्पना कीजिए एक वर्ष पूर्व भारत में व्याप्त निराशा, भ्रष्टाचार और निष्क्रियता के वातावरण की और फिर तुलना कीजिए आज के समय से | कोयला खदान घोटाले में जीरो लोस की थ्योरी देने वाले नेताओं की हवा तो उस समय निकल गई जब कोयला खदानों की ई-नीलामी की प्रक्रिया के तहत अगले 30 साल के लिए 1 लाख करोड़ रुपए का राजस्व भी पक्का कर लिया गया । ई-नीलामी प्रक्रिया की सबसे अहम बात यह रही कि कोयला मंत्रालय एक साल के भीतर ही तमाम घोटालों की कालिख से बाहर निकलने में सफल रहा। इसी प्रकार स्पेक्ट्रम नीलामी में भी आशातीत उपलब्धि हुई | कुल मिलाकर “अंधा बांटे रेवड़ी, चीन्ह चीन्ह के देय” का युग समाप्त हुआ |

पूर्व प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह अक्सर कहा करते थे कि अगर सरकार गरीब को एक रूपया देना चाहे तो सरकार को उसके लिए तीन चार रुपये खर्च करना पड़ते हैं | इसका उपाय ढूंढा गया मोदी सरकार की बहुचर्चित “जन-धन योजना” द्वारा | पांच महीनों में 11 करोड़ से ज्यादा बेंक खाते खुल जाना और उनमें भी 42 प्रतिशत में लेन देन शुरू हो जाना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है | अब सरकार जितना चाहे उतना पैसा इन खाताधारकों गरीबों के खाते में बिना रुकाबट और बिना अतिरिक्त खर्च के पहुंचा सकती है | इस खाते के साथ पांच हजार रुपये के ओवर ड्राफ्ट की सुविधा स्वरोजगार बढाने का भी साधन बनेगी |

चुनाव अभी चार वर्ष दूर हैं | लेकिन विरोधी अभी से इस चिंता से लबरेज हैं कि अगर सरकार के कामकाज की यही रफ़्तार रही तो – “तेरा क्या होगा रे कालिया” ?
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