“भूतेश्वर नाथ शिवलिंग” एक ऐसा शिवलिंग जिसकी ऊंचाई बढती है हर साल


हमारे देश के छत्तीसगढ़ में एक ऐसा शिवलिंग स्थित है जिसका आकार हर वर्ष और बढ़ जाता है ! यह शिवलिंग प्राकृतिक रूप से निर्मित है ! यह शिवलिंग छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मरौदा गाँव में घने जंगलों के बीच स्थित है ! यह शिवलिंग “भूतेश्वर नाथ” के नाम से विख्यात है ! 
द्वादश ज्योतिर्लिगों की भांति छत्तीसगढ़ में इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग होने की मान्यता प्राप्त है ! यह विशव का सबसे बड़ा प्राकर्तिक शिवलिंग भी है ! इस शिवलिंग का सबसे बड़ा आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इसका आकार लगातार हर वर्ष बढ़ रहा है ! राजस्व विभाग व्दारा प्रतिवर्ष इसकी उचांई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ रही है !

हर साल सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार को इस शिवलिंग के दर्शन करने और जल चढ़ाने सैकड़ों कांवड़िए यहां लंबी पैदल यात्रा करके पहुंचते हैं ! इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि कई साल पहले जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभा सिंह जमींदार की यहां पर खेती-बाड़ी थी ! शोभा सिंह हर शाम अपने खेत में घूमने जाते थे ! उस खेत के पास एक विशेष आकृतिनुमा टीले से सांड के हुंकारने और शेर के दहाड़ने की आवाज आती थी ! कई बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभा सिंह ने यह बात ग्रामवासियों को बताई ! ग्रामवासियों ने भी शाम को आवाज कई बार सुनी थी ! इसके बाद आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की, परंतु दूर दूर तक कोई जानवर नहीं मिला, तब लोगों ने माना कि इसी टीले से आवाज आती है ! लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे ! इस बारे में पारा गावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था ! धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढती गई ! जो आज भी जारी है ! इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है ! जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है !

यहीं स्थान भुतेश्वरनाथ, भकुरा महादेव के नाम से जाना जाता है ! दरअसल छत्तीसगढ़ी भाषा में हुंकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं, इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा है ! इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है !

यह भी किंवदंती है कि इनकी पूजा बिंदनवागढ़ के छुरा नरेश के पूर्वजों द्वारा की जाती थी ! दंत कथा है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए !

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