रांची स्थित पहाड़ी बाबा मंदिर, जहाँ कभी अंग्रेजो द्वारा देशभक्तों को दी जाती थी फांसी


कभी फांसी टोंगरी नाम से जाना जाने वाला रांची का ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर समुद्र तल से 2140 मीटर की ऊंचाई पर एवं रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलो मीटर की दुरी पर रांची हिल की चोटी पर स्थित है ! यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है ! इसे पहले फांसी टोंगरी के नाम से इसलिए जाना जाता था क्योंकि स्वतंत्रता सैनानियों को यहां पर फांसी दी गई थी ! आजादी के बाद से ही बलिदानियों को उनके बलिदान हेतु याद करने के लिए यहा स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराया जाता है ! यह मंदिर हमारे देश का एकमात्र मंदिर है जहाँ 15 अगस्त और 26 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' पूरी शान के साथ फहराया जाता है ! 

कभी अंग्रेजों के द्वारा यहाँ देशभक्तो को दी जाती थी फांसी :

यह मंदिर धार्मिकता के साथ साथ देशभक्तो के बलिदान के लिए भी जाना जाता है ! कभी टिरीबुरू नाम से जाने जानेवाले इस पहाड़ी बाबा मंदिर का नाम ब्रिटिश हुकूमत के समय फाँसी टुंगरी में परिवर्तित हो गया क्योकि अंग्रेजो की हुकूमत के दौरान यहाँ सच्चे देश भक्तो और महान क्रांतिकारियों को यहां फांसी की सजा दी जाती थी !

जब भारत देश अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हुआ तब आजादी के बाद रांची में पहला तिरंगा भी इसी स्थान पर फहराया गया था जिसे रांची के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चन्द्र दास से फहराया था ! कृष्ण चन्द्र दास ने ही यहाँ पर शहीद हुए देश भक्तो की याद व सम्मान में तिरंगा फहराया था एवं तभी से यह परम्परा बन गई की हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को यहाँ पर तिरंगा फहराया जाता है ! इस स्थान पर राष्ट्र ध्वज को धर्म ध्वज से ज्यादा सम्मान देते हुए उसे मदिर के ध्वज से भी अधिक ऊंचाई पर फहराया जाता है ! इस पहाड़ी बाबा मंदिर में एक शिलालेख लगा है जिसमें 14 अगस्त, 1947 को देश की आजादी संबंधी घोषणा भी अंकित है !

मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 450 सीढ़ियों का सफर करना होता है ! ऐसी मान्यता है कि मंदिर में भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है ! मंदिर प्रांगण से पुरे रांची शहर का खुबसूरत नज़ारा दिखाई देता है ! पूरी पहाड़ी पर मंदिर परिसर के इर्द-गिर्द विभिन्न भाँति के हजार से अधिक वृक्ष हैं ! यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुपम सौंदर्य भी देखा जा सकता है ! पहाड़ी मंदिर में भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा की जाती है ! हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रवण माह में यहां बहुत गहमा-गहमी रहती है और श्रद्धालू मंदिर के देवता पर जल धारा चढ़ाते हैं !

पहाड़ी के नीचे, एक झील भी स्थित है जिसे 'रांची लेक' कहा जाता है ! “रांची लेक” का निर्माण 1842 में एक अंग्रेज़ कर्नल ओन्सेल ने करवाया था ! झील पर नहाने के लिए पक्के घाट बने हुए है जहाँ पर भक्त मंदिर की चढ़ाई शुरू करने से पहले स्नान करते है ! पहाड़ी पर कई अन्य मंदिर भी बने हुए है ! इन मंदिरों में से नागराज का मंदिर सबसे प्राचीन कहा जाता है ! इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि छोटा नागपुर के नागवंशियों का इतिहास यही से शुरू हुआ है !

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