भारतीय सुरक्षा तंत्र की कमजोरी का रामवाण इलाज - म्यांमार ऑपरेशन जैसा सतत साहस |



मणिपुर के चंदेल जिले में 6 डोगरा रेजिमेंट के भारतीय सैनिकों के काफिले पर हुए घातक हमले के बाद पांच दिन बीत चुके हैं, जिसमें मृत 18 सैनिक शहीद हुए तथा कम से कम 11 गंभीर रूप से घायल हुए | इसके बाद 21 पैरा भारतीय विशेष बल ने पडौसी देश म्यांमार में अचानक कार्यवाही कर नागालैंड के नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल (Khaplang) और Kanglei Yawol Kunna Lup से संबंधित दो विद्रोही ठिकानों को ध्वस्त कर दिया | इनमें से एक बेस नगालैंड-म्यांमार सीमा के पास नोक्लाक में था तो दूसरा Chassad मणिपुर-म्यांमार सीमा के पास चस्साद में स्थित था | इसमें ख़ास बात यह रही कि भारतीय बलों को तो कोई नुक्सान नहीं हुआ, जबकि प्राप्त जानकारी के अनुसार विद्रोहियों के हताहतों की संख्या 20 और 100 के बीच रही । 
स्वाभाविक ही भारतीय नागरिकों ने इस छापे पर प्रसन्नता व्यक्त की, सदा नकारात्मकता के प्रति रुझान दिखाने वाली मीडिया ने भी इस साहसिक व रोमांचक मुद्दे को आम तौर पर सराहा | हाँ मीडिया के एक भाग ने अवश्य आपरेशन को लेकर सवाल उठाये | मसलन भारतीय सैन्य बल द्वारा उपयोग किये गए एमआई-35 और ध्रुव की जानकारी म्यांमार सरकार को दी गई थी या नहीं ? मानव रहित विमानों का संचालन क्यों किया गया ? आदि आदि | 
समाचार पत्रों ने यह भी प्रकाशित किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और जनरल दलबीर सिंह ने लगातार रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर के साथ आपरेशन पर निगाह रखी तथा आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन भी किये | पहले हमला सुखोई लड़ाकू जेट विमानों के द्वारा किया जाना प्रस्तावित था, किन्तु बाद में जानमाल के अधिक नुकसान की संभावना मान कर उसे टाला गया | मेजर जनरल रणबीर सिंह ने घोषणा की है कि भविष्य में यदि भारत पर होने वाले किसी हमले की खुफिया सूचना प्राप्त होगी तो घटना घटित होने के पहले ही कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी | यह एक ऐसी घोषणा है, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं | 

इस सैन्य कार्रवाई का राजनीतिक प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। घरेलू स्तर पर इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को बल मिला है तो पड़ोसी देशों में शरण लेने वाले आतंकियों को भी स्पष्ट सन्देश गया है । यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि पूर्वोत्तर में पनपने वाले विद्रोही गुटों को चीन का खुला समर्थन रहता है | ऐसे में चीन और पाकिस्तान दोनों को भारतीय सैन्य कार्यवाही में अन्तर्निहित सन्देश समझ में आ गया होगा | 
इस कार्यवाही के बाद देश में राष्ट्रवाद का ज़बरदस्त रूप सामने आया है । यह आम जन भावना रही है कि बचाव का सर्वोत्तम तरीका आक्रमण ही है | भारतीय दशकों से लगातार छद्म युद्ध सहते आये हैं | अतः उस स्थिति में बदलाव की संभावना ने स्वाभाविक ही उत्साह और आत्मविश्वास का संचार किया है | 
मुम्बई पर मार्च 1993, जुलाई 2006, नवंबर 2008 और जुलाई 2011 पर हुए लगातार हमलों की श्रंखला के बाद कभी इस प्रकार के साहस का प्रदर्शन भारत द्वारा नहीं किया गया | यहाँ तक कि दिसंबर 2001 में लोक सभा पर हुए हमले के बाद भी केवल मौखिक प्रतिक्रिया देकर भारतीय सत्ताधीशों ने अपने कर्तव्य की इति श्री मान ली | पुलिस और सेना के काफिलों पर हुए अनगिनत हमलों की तो बात ही छोड़ दें | ऐसे में यह पहला भारतीय सफल आतंकवाद विरोधी आपरेशन प्रशंसनीय ही नहीं स्तुत्य है । 
पूर्वोत्तर में हुई इस कार्यवाही ने पाकिस्तान की पेशानी पर बल डाल दिए हैं | चोर की दाढी में तिनका की कहावत को सिद्ध करते हुए पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री चौधरी निसार अली खान ने कहा है कि अगर इस प्रकार का दुस्साहस उनके देश के साथ किया गया तो उसके गंभीर परिणाम होंगे | "पाकिस्तान म्यांमार नहीं है" । पाकिस्तान कुछ भी कहे किन्तु वास्तविकता यह है कि अब पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर चल रहे आतंकवादी शिविरों को बंद करने को विवश होगा । संभवतः यही म्यांमार के सैन्य अभियान का सबसे सफल परिणाम होगा | इस सफलता के परिणाम स्वरुप भारत राष्ट्र के नागरिकों का बढ़ा हुआ मनोबल तथा भू राजनीतिक संकेत महत्वपूर्ण है। 
मंगलवार की कार्रवाई में इजरायली जायका है, जिसे आम भारतवासी बेहद पसंद करता है | यह भारतीय विशेष अभियान क्षमताओं के पुनर्निर्माण का पहला कदम है, साथ ही भारत की लुंज पुंज सुरक्षा तंत्र की रामबाण औषधि भी । 
लेकिन यह समय आत्मस्तुति का नहीं है | सतत चोंकन्ना रहना भी आवश्यक है | विद्रोही शिविरों में हुई सैन्य कार्यवाही का बदला लेने का प्रयत्न भी संभव है | म्यांमार में आम चुनाव भी नजदीक हैं, अतः इस प्रकार की सैन्य कार्यवाही बार बार संभव नहीं होगी |

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