मोदी जी के सपनों पर ग्रहण तो नहीं बन जाएगा - वैश्विक बाजारवाद ?
0
टिप्पणियाँ
१९४२ के भारत छोडो आन्दोलन की असफलता के बाद कांग्रेस हासिये पर थी | अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का तानाबाना सुभाष चन्द्र बोस बुन रहे थे तो द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों की विजय के सूत्रधार भारतीय सैनिक थे | इसका प्रमाण यह है कि युद्ध में अंग्रेज सिपाही महज डेढ़ लाख थे जबकि भारतीय सैनिकों की संख्या तीस लाख से भी अधिक थी | इतना ही नहीं तो युद्ध उपरांत वीरता प्रदर्शन हेतु दिए कुल ४० हजार मैडल में से ३० हजार मैडल भारतीय सैनिकों को मिले थे | ऐसे में हुए नौसेना विद्रोह ने अंग्रेजों के कसबल निकाल दिए और उन्होंने सबसे कमजोर नेतृत्व से अपमानजनक शर्तों के साथ आजादी का सौदा किया | ये शर्तें थीं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को युद्ध बंदी के रूप में सोंपना, धर्मांतरण हेतु ईसाई मिशनरियों को असीमित अधिकार और कोमन वेल्थ की सदस्यता | अंग्रेज जानते थे कि भारत से जाने के बाद उनकी नीतियों के अनुसार देश चलाने के लिए नेहरू ही सबसे अधिक उपयुक्त व्यक्ति होंगे | और इसी रणनीति के तहत जिन नेहरू को उनकी अपनी पार्टी में अध्यक्ष के चुनाव में एक वोट नहीं मिला, जो सुभाष चन्द्र बोस के सम्मुख बुरी तरह पराजित हुए, उन्हें कुटिलता पूर्वक अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरित की |
भुनगे केवल अपना पेट भरने की सोचते हैं, जबकि राजा सम्राट या चक्रवर्ती बनने की महत्वाकांक्षा संजोता है | देश के जिन नेताओं की अधिकतम ख्वाहिश केवल स्विस बेंक में एक एकाउंट तक सीमित रही, उनकी तुलना में मोदी कहीं अधिक महत्वाकांक्षी हैं | उनकी आँखों में एक स्वप्न है | एक विराट स्वप्न | उनका मानना है कि भारत महाशक्ति था, है और रहेगा | अंगारे पर चढी राख को हटाना भर है | और उसी राख को हटाने, भारत का खोया आत्मविश्वास जगाने का लक्ष्य लेकर मोदी चल रहे हैं, उसके लिए रात दिन एक कर रहे हैं | मुझे इसमें किंचित मात्र भी संशय नहीं है |
किन्तु जैसा कि श्री गोविन्दाचार्य अक्सर अपने उद्बोधनों में कहते रहते हैं कि वैश्वीकरण के नाम पर पश्चिमी देश आपके बाजार में अपनी शर्तों पर प्रवेश का प्रयत्न करते हैं | रूल्स ऑफ़ गेम्स वो तय करेंगे | इसी लिए डब्लू टी ओ में सवासौ करोड़ जनसँख्या के देश भारत का भी एक वोट तो २६०० जनसंख्या वाले देश का भी एक वोट | एक करोड़ की आवादी पर एक वोट क्यों नहीं ? आवादी के अनुपात से देखें तो अमरीका के एक वोट की तुलना में भारत के २५ और चीन के ३० वोट होना चाहिए | किन्तु एसा होगा तो भारत के एक रुपये की तुलना में डॉलर की कीमत भी एक होगी, आज की तरह ५० भारतीय रुपये में एक डॉलर नहीं होगा | सोचिये अगर डॉलर और रुपये की असमानता समाप्त हो जाए तो क्या आम भारतीय की आमदनी तुरंत ५० गुना नहीं बढ़ जायेगी ? ग्लोबलाईजेशन की ओट में साम्राज्यवाद, अधिकार वाद, सरकारवाद का नया नाम है बाजारवाद | और अधिक शोषण और अधिक निर्ममता से करने का प्रयत्न | क्या मोदी जी इस स्थिति को बदलने की दिशा में कोई पहल कर पायेंगे ? यह लाख टके का सवाल है |
सृष्टिकर्ता ने देवदूत से पूछा कि मानव जीवन के श्रेष्ठ तत्व के रहस्य को कहाँ रखूँ जहां मानव न पहुँच पाए ? पर्वत शिखर, रेगिस्तान या ब्रह्माण्ड का कोई भी भाग मानव की पहुँच से परे नहीं रहेगा | अंततः विचार कर उन्होंने उस श्रेष्ठ तत्व को मानव मन में ही रखने का निश्चय किया | वह बाहर ही ढूँढता रहेगा, अपने अंतस में कभी नहीं झांकेगा | अब प्रश्न उठता है कि हम महान परंपरा के वाहक किस दिशा में जा रहे हैं ? यम नचिकेता संवाद स्थली भारत विषयों का चरागाह बन गई है | नचिकेता ने यम द्वारा दिए गए समस्त सांसारिक प्रलोभनों को ठुकराकर आत्म तत्व को जानना चाहा था, किन्तु आज आध्यात्म की केंद्र विन्दु गंगा में चलने बाली नावों पर भी सांसारिक वस्तुओं के आकर्षक होर्डिंग लगाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने गंगा को भी बाजार में परिवर्तित कर दिया है | इस हालत को बदलना मोदी जी की प्राथमिकता है, अथवा नहीं, यह दूसरा सवाल है |
Tags :
लेख
एक टिप्पणी भेजें