शिवपुरी संघ गाथा -


आगरा मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित, सुरम्य प्राकृतिक छटा के लिये विख्यात शिवपुरी आज़ादी के पूर्व तत्कालीन ग्वालियर रियासत की ग्रीष्म कालीन राजधानी थी ! नाम के अनुरूप भगवान शंकर के अनेक प्राचीन मंदिरों को अपने अंचल में समेटे शिवपुरी राजा नल की राजधानी नरवर तथा राजा अम्बरीश की राजधानी अमरखोह के सांस्कृतिक वा एतिहासिक अवशेषों के कारण पद्म श्री प्राप्त वाकणकर जी जैसे पुरातत्वविदों के आकर्षण का केंद्र भी रही है ! महाभारत में राजा नल तथा उनकी विदुषी धर्मपत्नी दमयंती का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन है ! इसी प्रकार महाराज अम्बरीश का भी भगवत भक्त शिरोमणि के रूप में वर्णन मिलता है जिन्होंने महाक्रोधी महर्षि दुर्वासा को भी ज्ञान दिया ! नरवर का किला, सुरवाया की गढ़ी, राई के भैरो, सेसई के जैन मंदिर ध्वंसावशेष, सिंधिया राजवंश के पूर्वजों की छतरियां, टाईगर अभयारण्य माधव नॅशनल पार्क तथा पवा जल प्रपात की मनोहारी छटा के कारण शिवपुरी भारत के पर्यटन मानचित्र भी अंकित है ! देशभक्तों को प्रेरणा देने बाले १८५७ स्वातंत्र्य समर के अमर सेनानी तात्याटोपे की बलिदान स्थली भी शिवपुरी है ! उन्हें अंग्रेज हुकूमत द्वारा यहाँ ही फांसी दी गई थी !

संघ कार्य का प्रारम्भ -
सिंधिया राजवंश के समर्थन के कारण शिवपुरी हिन्दू महासभा का गढ़ माना जाता था ! आम तौर पर हिंदुत्व का भाव होने के कारण वातावरण हिन्दू संगठन के अनुकूल था ! संघ कार्य विस्तार में इस वातावरण के कारण काफी अनुकूलता रही ! सन १९३९-४० में नागपुर से पधारे श्री जाधवराव जी ने शिवपुरी में संघ कार्य का प्रारम्भ किया ! सर्व श्री जगदीश स्वरुप निगम, मोहरसिंह यादव, मास्टर किशन सिंह जी, केशवराव गंगाधर राव बझे, भगवती प्रसाद अग्रवाल "भगवती भैया", साहनी, सुशील बहादुर अष्ठाना, बाबूलाल गुप्ता सबसे पहले संपर्क में आने बाले स्वयंसेवक थे ! इसी दौरान ग्वालियर में संघ कार्य की ज्योति जलाने बाले श्री मनोहर परचुरे का भी मार्गदर्शन मिलता रहा ! 

इनके बाद आये श्री ज्ञानचंद्र जी शास्त्री, जैन दर्शन वा कर्मकांड के प्रकांड पंडित थे | जैन समाज में वे पूजापाठ वा अनुष्ठान भी करते थे, किन्तु भोजन उसी परिवार में करते थे, जिस परिवार में संघ स्वयंसेवक हो | उनके इस आग्रह के परिणाम स्वरुप अनेक जैन परिवार संघ से जुड़े ! शिवपुरी के बाद आसपास के प्रमुख स्थानों कोलारस, मगरोनी, सतनबाडा में शाखाएं लगीं ! कोलारस में बाबूलाल जैन, मगरोनी में बिहारीलाल बांदिल, सतनबाडा में बद्री सिंह बड़े भाई आदि प्राथमिक दौर के स्वयंसेवक रहे ! सन १९५० से १९६० के बीच सिरसौद, झिरी, नरवर, लुकवासा, पोहरी, भटनावर आदि में कार्य विस्तार हुआ ! १९७० तक जिले में १३ शाखाएं हो चुकी थीं ! इसी समय मुरैना की तहसील श्योपुर को संघ कार्य की दृष्टि से शिवपुरी में सम्मिलित किया गया ! जो बाद में जिला घोषित हुआ !

संघ शिक्षा वर्ग -
शिवपुरी से सर्व प्रथम संघ शिक्षा वर्ग करने बाले स्वयंसेवक थे श्री लक्ष्मण जैन वकील ! उन्होंने भरतपुर से संघ शिक्षा वर्ग किया ! उन दिनों ग्वालियर विभाग के स्वयंसेवक उत्तर प्रदेश प्रांत के शिक्षा वर्गों में जाते थे ! इसी कारण सन १९४२ में श्री जगदीश स्वरुप निगम, श्री गोपीचंद सक्सेना एवं श्री मोहर सिंह यादव ने कालीचरण हाईस्कूल परिसर लखनऊ में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग से प्रथम वर्ष किया ! सन १९४३ में श्री जगदीश स्वरुप निगम का द्वतीय वर्ष प्रशिक्षण वाराणसी में हुआ ! 

सन २००० में पहली बार संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन शिवपुरी में संपन्न हुआ ! वर्ग में सामाजिक समरसता बढाने के लिये एक अभिनव प्रयोग हुआ ! नगर की सेवा बस्ती के प्रत्येक परिवार से संपर्क साधा गया ! प्रत्येक परिवार से दो स्वयंसेवकों के भोजन की व्यवस्था के लिये कहा गया ! जिन परिवारों ने स्वेच्छा से इस आग्रह को मान्य किया, केवल उन्हें ही इस योजना में सम्मिलित किया गया ! फिर भी परिवारों की संख्या आवश्यकता से अधिक हो गई ! निर्धारित दिन वा समय पर सेवा बस्तियों के प्रमुख आये तथा स्वयंसेवकों को अपने साथ बस्ती में ले गए ! लेकिन विचित्र स्थिति तब उत्पन्न हुई जब पहले से तय परिवारों के पडौसी परिवार भी उत्साहित हो अपने अपने घर इन लोगों को ले जाने लगे ! हालत यह हो गई कि जो परिवार पहले से तय थे उनके पास जाने को शिक्षार्थी शेष ही नही रहे ! उन लोगों के दुःख को देखकर कई स्वयंसेवकों को दोबारा दोबारा भोजन करना पड़ा !इस योजना से नगर में समरसता का प्रभावी वातावरण बना ! स्वयंसेवकों पर भी अच्छा असर दिखाई दिया ! उन्हें एक नई दिशा मिली !

शिवपुरी संघ कार्यालय -
शिवपुरी का पहला कार्यालय हनुमान मंदिर के ऊपर बारादरी में बनाया गया ! यहाँ केवल चारों ओर से खुली एक छपरी ही थी, उसमें ही कार्यालय था ! छपरी के सामने खुली हुई बड़ी छत होने के कारण उसका बैठक आदि में भरपूर उपयोग होता था ! इसके बाद श्री बाबूलाल जी गुप्ता के आढ़त कार्य में प्रयुक्त होने बाले हनुमान गली स्थित बाड़े के ऊपर बने एक कमरे में सन १९७७ तक कार्यालय रहा ! यहाँ कोई शौचालय ना होने के कारण ठंडी सड़क स्थित नगर पालिका के गंदे तथा बिना दरवाजों के सार्वजनिक शौचालयों में ही प्रचारकों को जाना पड़ता था ! इसके बाद क्रमशः आदर्श नगर स्थित डा.नरहरी जी के मकान गीता भवन में, श्री गोपाल कृष्ण डंडौतिया के मकान में, कैलाश मुन्ढेरी बालों के मकान में, न्यू ब्लोक स्थित डा.द्वारका प्रसाद जी के मोदी भवन में कार्यालय रहा ! इसके बाद आगरा मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित राघवेन्द्र नगर में संघ का स्वयं का कार्यालय निर्मित हुआ ! तब कही जाकर स्थाई व्यवस्था हुई !

प्रथम प्रतिवंध -
१९४८ में महात्मा गांधी की नृशंश ह्त्या हुई वा संघ पर झूठा आरोप लगाकर देश भर में स्वयंसेवकों पर अत्याचारों का दौर प्रारम्भ हुआ ! संघ पर प्रतिवंध लगाया गया, जिसके विरुद्ध प्रभावी सत्याग्रह हुआ ! संघ प्रचारक श्री शास्त्री जी के साथ सर्व श्री बाबूलाल शर्मा, भगवती प्रसाद अग्रवाल, केशव राव वझे, वसंत बक्षी, किशन सिंह मास्टर जी; जगदीश निगम, बाबूलाल गुप्ता, सुशील बहादुर अष्ठाना, मोतीलाल अग्रवाल, बद्रीसिंह बड़े भाई, मोहर सिंह यादव के अतिरिक्त हिन्दू महासभा के श्री लक्ष्मीनारायण गुप्ता, श्री नारायण प्रसाद गर्ग, श्री राज बिहारी लाल वकील, श्री बुद्ध शरण जी, श्री राम सिंह जी इस दौरान गिरफ्तार हुए ! मगरौनी में शिक्षक श्री राखे तथा करैरा के शिक्षक श्री अनन्त माधव निगुडीकर अपनी शासकीय नौकरी से निकाल दिए गए ! लम्बे संघर्ष के बाद श्री निगुडीकर बाद में गुना में शिक्षक पद पर बहाल हुए |

प्रतिवंध के बाद -
वर्ष १९४९ में श्री प्यारेलाल जी खंडेलवाल संघ प्रचारक के रूप में आये ! १९५६ तक के उनके कार्यकाल में सभी तहसील केन्द्रों तक संघ कार्य का विस्तार हुआ | संसाधनों के अभाव के चलते साईकिल से ही प्रवास करते, अपने हंसमुख वा मिलनसार स्वभाव के कारण प्यारेलाल जी ने कार्य का प्रभावी विस्तार किया ! उनके कार्यकाल में ही काश्मीर सत्याग्रह हुआ ! काश्मीर में उस समय शेख अब्दुल्ला सत्तासीन थे ! स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जहां गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की कुशलता वा सूझबूझ के कारण ५२६ देसी रियासतों का भारतीय गणतंत्र में निर्विघ्न विलय हो गया, बही प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की अदूरदर्शिता वा हठधर्मिता के चलते १९५१ में जम्मू कश्मीर रियासत का प्रथक संविधान बना ! अलग झंडा बनाया गया ! इतना ही नही तो हिन्दुओं को वलात बहां से खदेड़ने का कुचक्र चलने लगा ! इसके विरोध में ६ मार्च १९५३ को कश्मीर में प्रजा परिषद् के अध्यक्ष प.प्रेमनाथ डोंगरा के नेतृत्व में एक जन आन्दोलन प्रारम्भ हुआ ! पूरे देश के समान शिवपुरी से भी सत्याग्रही जत्थे रवाना हुए ! प्रथम जत्थे में श्री बाबूलाल जी शर्मा, श्री हरिहर स्वरुप निगम, श्री राज कुमार जैन आदि थे ! इन लोगों ने दिल्ली के कनाट प्लेस में सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी ! एक दिन तिहाड़ जेल में रखकर इन्हें हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित योल केम्प जेल में भेजा गया | दूसरे जत्थे में श्री बाबूलाल गुप्ता वा श्री शीतल चन्द्र मिश्रा गए ! इन्हें भी योल केम्प ही भेजा गया !

तीसरा जत्था श्री भगवान लाल गुरू, शंकरिया कोली, रामलाल कोली, चतुर्भुज कोली, मनीराम कोली तथा घस्सी खटीक का था ! इन लोगों ने दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके में सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी ! इस जत्थे को पुलिसिया बर्बरता का सामना करना पडा ! इनके साथ बेरहमी से मारपीट की गई ! इतना ही नहीं तो भगवान लाल गुरू के हाथ को गर्म लोहे की छड से दागा भी गया ! ! १५ दिन तिहाड़ में रखने के बाद इन्हें बरेली जेल भेजा गया, जहां ये ढाई महीने रहे ! शेष सत्याग्रहियों को भी दो माह से लेकर ६ माह तक जेल यातना सहना पडी ! 

१९५४ में गोआ मुक्ति आन्दोलन में शहीद हुए उजैन के स्वयंसेवक श्री राजाभाऊ महाकाल का अस्थिकलश १५ अगस्त १९५५ को शिवपुरी पहुंचा ! स्थानीय बस स्टेंड पर सेंकडों स्वयंसेवकों ने उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली दी !श्री खंडेलवाल जी के भिंड जाने के बाद श्री अन्ना जी साटोंड़े प्रचारक के रूप में शिवपुरी आये, उनके बाद श्री सूयकांत केलकर वा उदय जी काकिर्ड़े ने संघ कार्य विस्तार में महती भूमिका निभाई ! इनके समय में नवयुवकों का एक बहुत बड़ा वर्ग संघ से जुडा, जिन्होंने आगे चलकर आपातकाल में जेल यातना सहकर इंदिरा गांधी की तानाशाही का जमकर प्रतिकार किया !

प्रमुख संस्मरण -


* गौहत्या वंदी के लिये चलाये गए सत्याग्रह में शिवपुरी के ५० स्वयंसेवकों ने देल्ही जाकर सहभागिता की !* १९७४ में इंदिराजी द्वारा संघ के विरुद्ध किये जा रहे सतत विष वमन पर सम्पूर्ण प्रांत में जन जागरण सभाओं का आयोजन हुआ ! इस अवसर पर शिवपुरी माधव चौक पर हुई जन सभा को मा. सुदर्शन जी ने संबोधित किया ! पूरा माधव चौक उन्हें सुनने के लिये जन समूह से भरा हुआ था !* १९७८ में तत्कालीन क्षेत्र प्रचारक श्री राजेन्द्र सिंह जी उपाख्य रज्जू भैया का शिवपुरी आगमन हुआ ! स्थानीय कन्या विद्यालय प्रांगण सादर बाज़ार में विशाल सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने सज्जन शक्ति को सक्रिय बनाने में संघ की भूमिका को रेखांकित किया !

एकात्मता यात्रा का शिवपुरी में भव्य स्वागत हुआ ! समाज के सभी वर्गों के स्त्री पुरुषों ने गंगाजी का पूजन किया ! पूजन करने वा प्रसाद ग्रहण करने के लिये समूचा हिन्दू समाज मानो उमड़ पडा था ! माता बहिनों ने निर्णय किया कि पहले स्नानादि से निवृत्त होकर गंगा पूजन करेंगे, इसके बाद परिवार के लिये भोजन आदि की व्यवस्था ! तत्कालीन विभाग प्रचारक श्री अपारवल सिंह जी को उस दिन सायंकाल एक प्रमुख कांग्रेसी नेता सहज मिल गए और हंसते हुए बोले कि आज तो भाई आपके कारण हमें भी घर में भोजन बिलम्ब से मिला ! घर की महिलाओं ने गंगा जी का पूजन करने के बाद ही भोजन बनाया ! इस प्रकार इस अभियान में बिना किसी राजनैतिक पूर्वाग्रह के समाज ने सहभागिता की ! 

* १९८७ राम जानकी रथ यात्रा के शिवपुरी जिला संयोजक श्री विमलेश गोयल बनाये गए !* १९८८ राम ज्योति यात्रा वा राम शिला पूजन आदि कार्यक्रमों ने राम मदिर निर्माण हेतु जन जागरण किया ! शिवपुरी में श्री विनोद गर्ग संयोजक बनाए गए !

१९९० में कार सेवा का आव्हान हुआ जिसमें शिवपुरी से भी सेंकडों स्वयंसेवक रवाना हुए ! शिवपुरी झांसी मार्ग पर उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार ने पुल पुलिया तोड़ दिए थे ताकि कोई अयोध्या तो दूर उत्तर प्रदेश में भी ना पहुँच सके ! कारसेवक जब झांसी की ओर पैदल रवाना हुए, उनमें से अनेकों गिरफ्तार कर लिये गए ! झांसी की लक्ष्मी व्यायामशाला को अस्थाई जेल बनाया गया ! जहाँ इन लोगो ने अपनी आँखों के सामने पुलिस गोली चालन में हताहत होते कारसेवको को देखा जो एक दुखद अनुभव था ! पुलिस को चकमा दे अनेकों कारसेवक अयोध्या के मार्ग पर आगे निकलने में सफल हुए, किन्तु अंततः वे भी गिरफ्तार कर उन्नाव जेल भेज दिए गए ! इस जेल में प्रशासन की शह पर मुस्लिम कैदियों ने लोहे की छड़ों वा पलटो इत्यादि से इनपर हमला कर दिया ! श्री विमलेश गोयल को तो इतना पीटा गया कि वे बेहोश हो गए वा आक्रमण कारी उन्हें मृत समझकर छोड़ गए ! सात दिन बाद अस्पताल में श्री गोयल को होश आया ! कोलारस गुप्त वाहिनी के ग्यारह कारसेवक लखनऊ से २०० कि.मी. पैदल चलकर सर्व श्री गणेश मिश्रा, आलोक बिंदल, प्रेम शंकर वर्मा, फूलसिंह जाट, शिब्बूसिंह जाट (हम्माल), रामेश्वर बिंदल, संतोष गौड़, विनोद मिश्रा, लाडली प्रसाद गोयल आदि अयोध्या पहुँचने में सफल हुए ! इन सभी ने २ नवम्बर को हुए नरसंहार को अपनी आँखों से देखा व भोगा ! बाद में अयोध्या पहुँचने में सफल हुए कारसेवकों का कोलारस सादर बाज़ार में वापिसी पर नागरिक अभिनन्दन हुआ !

यह देश राम का है, परिवेश राम का है ! 

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