वैकल्पिक ऊर्जा के सफल प्रयोगों से ही होगी पर्यावरण सुरक्षा |


उत्तराखण्ड जल संसाधन की दृष्टि से भारत के सबसे धनी प्रदेशों में से एक है | जब यहाँ के सुदूर गाँवों में जहाँ न पहुँच मार्ग बने थे, न बिजली की सुविधा थी, उस समय गाँव से निकलने वाली जलधाराओं से चलने वाली “पनचक्की” के सहारे ही आटा, मसाला, दाल पीसने का काम होता था | यही पनचक्की अब बिजली भी पैदा कर रही है | नैनीताल जिले में सड़ियाताल के आसपास ऐसे सोलह “घराट” हैं, जिनमें बिजली पैदा कर गाँव बाले न सिर्फ अपने घर, बल्कि आसपास के घरों को भी रोशनी दे रहे हैं | भारत सरकार के वैकल्पिक ऊर्जा विभाग ने इन्हें आर्थिक अनुदान देकर बिजली उत्पादन के लिए प्रेरित किया है |

नैनीताल के ही हल्दूचौड़ स्थित नित्यानंद आश्रम की गौशाला में भी एक ऊर्जा संयंत्र लगाया गया है, जिससे 15 किलोवाट बिजली पैदा की जा रही है | गौशाला की 300 गायों के गोबर व गौमूत्र से यह ऊर्जा संयंत्र संचालित होता है | गोबर गैस से आश्रम के चूल्हे भी जलते हैं तथा खाद व बिजली मिलती वह अलग | इस सफल प्रयोग से प्रेरित होकर आसपास की नगर परिषदें व ग्राम सभाएं भी वैकल्पिक ऊर्जा विभाग की मदद से अपने यहाँ इन प्रयोगों को कर रहे हैं | 

रामगाड के ग्रामवासियों ने तो जलधारा पर सौ किलोवाट का बिजली संयंत्र लगा दिया है, जिससे वे आसपास के नब्बे गाँवों को चौबीसों घंटे विद्युत् आपूर्ति कर रहे हैं | इतना ही नहीं तो पास के दो मोवाईल टावरों को भी यहाँ से बिजली सप्लाई की जा रही है | इस प्रकार से बिजली गाँव की आमदनी का साधन भी बन गई है, जिससे संयंत्र का खर्चा आसानी से निकल रहा है | ऐसे प्रयोग अगर बड़े पैमाने पर हो सकें तो पहाड़ों पर बड़े बाँध बनाने की आवश्यकता ही न रहे और न प्राकृतिक संतुलन को कोई क्षति पहुंचे |


साभार पांचजन्य 
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