गुलामी काल में अंग्रेजों के पिट्ठू बने आजाद पाकिस्तान के सर्वेसर्वा |

पाकिस्तान के जन्म के कुछ ही महीने बाद ही वहां के कायदे आजम जिन्ना बुरी तरह रोग ग्रस्त हो गए और प्रभावहीन भी | उत्तराधिकार के लिए संघर्ष ने पाकिस्तान की राजनीति को प्रभावित किया और देखते ही देखते पाकिस्तानी फ़ौज ताकतवर बनती गई और निर्वाचित प्रतिनिधियों की आपसी कलह रोकने के बहाने उसने हस्तक्षेप के लिए जमीन तैयार करना शुरू कर डाला | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली की हत्या के बाद स्थिति काफी नाजुक हो गई और ब्रिगेडियर सिकंदर मिर्जा ने तख्तापलट के बाद सत्ता ग्रहण की | 

आजादी की लड़ाई में प्रमुख भूमिका निबाहने वाले सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान की आत्मकथा और में इन सिकंदर मिर्जा के विषय में उल्लेख मिलता है | आईये इतिहास के उन पृष्ठों पर एक नजर डालें –

कांग्रेस ने 8 अगस्त 1942 के दिन मुम्बई में अंग्रेजों के बिरुद्ध “भारत छोडो” प्रस्ताव स्वीकार कर लिया | इस प्रस्ताव में अंग्रेजों से यह मांग की गई थी कि वे सारे भारत और सीमा प्रांत को छोड़कर चले जाएँ | साथ ही सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान जनता से यह आग्रह किया गया कि वर्तमान युद्ध में अंग्रेजों को आर्थिक और जन शक्ति की सहायता देना पाप है – अर्थात किसी प्रकार का टेक्स देना और सेना में भरती होना गुनाह है | वहां सामूहिक आन्दोलन में अंग्रेजों के बिरुद्ध “भारत छोडो” नारा लगाया जाता | अंग्रेज सरकार के क़ानून का उल्लंघन कर हजारों लोग गिरफ्तार होते थे | 

उन्हीं दिनों हमने सरदारयाब के किनारे “खुदाई खिदमतगारों” का एक केंद्र स्थापित किया तथा सीमा प्रांत में भी अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निर्णय किया | हमारे जिरगे ने समस्त अधिकार मुझे देकर आन्दोलन चलाने के लिए अधिनायक नियुक्त कर दिया | किन्तु मैं जो भी कुछ करता, अपने साथियों के साथ विचार विमर्ष करके करता | ऐसे ही एक विचार विमर्श के दौरान हजारा के हाजी फकीरा खां ने सुझाव दिया कि हमें टेलीफोन के तार काटने व रेल की पटरियां उखाड़ने की अनुमति दी जाये | 

मैंने उनसे कहा कि यह बात मैं इस शर्त पर मान सकता हूँ कि जो व्यक्ति रेल की पटरी को हानि पहुंचाए या तार काटे, उसे चाहिए कि यह काम करके वह स्वयं पुलिस थाने में जाकर पूरी सचाई और साहस से कहे, कि यह काम उसने किया है | इससे एक तो पश्तूनों के अन्दर नैतिक साहस पैदा हो जाएगा, और चूंकि वह यह साहसिक कार्य खुले आम करेंगे, इसलिए उनकी इस आत्मसम्मानयुक्त घोषणा से दूसरे लोगों में भी नैतिक साहस जागृत होगा | तीसरी बात यह होगी कि पुलिस दूसरे लोगों पर अनुचित संदेह नहीं करेगी और निर्दोष लोग दमन और अत्याचार का शिकार नहीं होंगे |

खैर मेरे आदेश और अनुशासन के अधीन “अवज्ञा आन्दोलन” जोर शोर से प्रारंभ हो गया | अंग्रेजों की ओर से हमारे इस आन्दोलन का उत्तर बड़ी कठोरता से दिया गया | पेशावर के एक मुसलमान डिप्टी कलेक्टर ने अपनी वफादारी प्रकट करने की सनक में अंग्रेजों से भी अधिक अत्याचार किये, कहर ढाये | अंग्रेज तो अपनी सेना को लाठी चलाने का आदेश देते थे, लेकिन यह डिप्टी कलेक्टर साहब तो खुद हाथ में लाठी लेकर खुदाई खिदमतगारों को मार मार कर अधमरा कर देते थे | यहाँ तक कि एक खुदाई खिदमतगार “सैयद अकबर” तो उनकी लठबाजी में शहीद हो गया | इस शख्श ने खुदाई खिदमतगारों के शिविर में एक दिन उनके सालन में विष मिलवा दिया | जिन्होंने भी वह भोजन किया, ऐसे बीमार हुए कि मौत के दरवाजे पर पहुँच गए | इस डिप्टी कलेक्टर का नाम था “सिकंदर मिर्जा” |

उन मिर्जा साहब के अन्य अनेकों उपकार और कृपाएं हम पठानों पर रही हैं | लेकिन उनका वर्णन न करते हुए मैं उनको उस खुदा के हवाले करता हूँ, जिसके पास हम सबको एक दिन उपस्थित होना होगा | मिर्जा साहब बाद में पाकिस्तान के प्रधान भी बन गए थे और वे “इस्लाम-इस्लाम” और "देशभक्ति" के नारे भी लगाने लग गए थे | और मैं भी उनके शासन काल में “देशद्रोह” और “इस्लाम-विरोध” के अभियोग में कारावास के अपार कष्ट और यातनाएं उठाता रहा |

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