आओ करें गुमनाम क्रांतिकारी महिलाओं का पूण्य-स्मरण |

क्रांति का उद्देश्य अन्याय के विरुद्ध लड़ते हुए शासन और समाज में परिवर्तन लाना है ! ऐसे ही अनेक प्रयास भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध समय समय पर होते रहे जिन में जनता ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया | इस संघर्ष में भारतीय महिलाओं की भागीदारी भी सराहनीय रही ! इन संघर्षों में महिलाओं का न केवल योगदान रहा बल्कि कई अभियानों में तो उन्होंने नेतृत्व भी प्रदान किया ! कुछ तो चर्चित हुईं, परन्तु कुछ ऐसी महिलायें भी थी जिनको इतिहास में उतना महत्व नहीं मिला, जो उन्हें मिलना चाहिए था ! हम उनके बारे में जानते ही नहीं ! इतिहास के ऐसे ही 2 चरित्रों का बखान यहाँ किया जा रहा है ! जिनके नाम है - बंगाल की ननी बाला देवी तथा टुकड़ी बाला देवी !

ननी बाला देवी 

ननी बाला देवी की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है !  ननी बाला देवी का जन्म हावड़ा में 1888 में हुआ था ! वर्ष 1916 में इनके पति का देहांत हो गया ! इन्होने क्रन्तिकारी अमरेन्द्र नाथ चटर्जी से दीक्षा ली और क्रन्तिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गईं !

क्रांतिकाल के प्रथम दौर में क्रांतिकारियों के लिए आश्रयस्थल जुटाना, रुपये पैसे एकत्रित करना, गुप्त दस्तावेज़ एक स्थान से दुसरे स्थान पर पहुँचाना, युवक युवतियों को प्रशिक्षण देना आदि में इनका विशेष योगदान रहा ! वह पुलिसकी पहुँच से बाहर थीं, उनके भूमिगत रह कर काम करने के कारण पुलिस को उनका पता बताने वालों के लिए ईनाम की घोषणा करनी पडी थी ! 

एक दिन जब ननी बाला देवी हैजे से पीड़ित होकर अपने घर पर आराम कर रही थीं कि पुलिस को किसी ने उनकी सूचना दे दी, और वह उसी हालत में गिरफ्तार कर ली गईं ! उनसे गुप्त सूचनाएँ निकलवाने के लिए पुलिस उनसे अमानवीय ढंग से पेश आई, उन्हें बहुत यातनाएं दी गईं | उन्हें निर्वस्त्र कर इतना पीटा गया, कि वे अधमरी हो गईं | लेकिन उन्होंने अपना मुंह नहीं खोला ! उनको दी जाने वाली यातनाएं तीन दिन तक जारी रहीं ! इस दौरान उनकी हालत पागलों जैसी हो गई ! उनकी स्थिति को देख अधिकारियों ने उन्हें यातनाएं देना बंद कर दिया !

टुकड़ी बाला देवी

ननी बाला देवी  के साथ जेल में टुकड़ी बाला देवी नाम की एक ग़रीब क्रन्तिकारी युवती भी थी, उसके पास पिस्तौल बरामद होने के कारण 'आर्म्स-एक्ट' में दो सालकी कड़ी सजा सुनाई गई थी ! अधिकारी उस से अत्यधिक श्रम लेते थे ! जिसके विरोध में ननी बाला देवी ने जेल में भूख हड़ताल की !

उनकी एक मांग ये भी थी कि जेल में खाना पकाने के लिए एक ब्राहमण स्त्री रखी जाये, जेल अधिकारी फिर उनसे परेशान हो गए, परन्तु वे उन्हें खाना खिलाने में असमर्थ रहे, अधिकारियों ने फिर उन्हें खिलाने का प्रयास किया और फिर से यातनाएं देना शुरू किया, इस पर उन्होंने अधिकारियों से गरजते हुए कहा - " हम स्वतंत्रता सैनिक और राज्य-कैदी हैं, तुम्हारे निजी ग़ुलाम नहीं | तुम हम पर यूँ ज़ुल्म नहीं कर सकते“ ! पुलिस वाला मुंह लटकाए चला गया ! उसके बाद टुकड़ी बाला देवी की मेहनत कम किये जाने के बाद ही उन्होंने अपनी भूख हड़ताल तोड़ी !

टुकड़ी बाला देवी का जन्म 1887 में बीरभूमि जिले में हुआ था ! एक बार ज्योतिष घोष नाम के एक क्रांतिकारी उनके घर में आकर ठहरे, वह नलिन बाबू के नाम से आये और विपिन बाबू के नाम से वापस गए ! वह व्यायाम कक्षाएं चलाते थे ! टुकड़ी बाला देवी को ये सब जानने की इच्छा हुई ! उनके भांजे ने उन्हें पढ़ना लिखना सिखाया तब उन्होंने क्रन्तिकारी आन्दोलन से सम्बंधित चीज़ें पढ़ना शुरू किया ! उनका भांजा निवारण घटक स्वयं एक क्रन्तिकारी था, टुकड़ी बालादेवी ने जिद्द कर के उस से छुरा और बन्दूक चलाना सीखा ! 

कुछ समय बाद उन का विवाह फणिभूषण चक्रबर्ती से हुआ और पति भी क्रान्तिकारी गतिविधियों में सहायक मिले ! एक बार हरिदास दत्त नामक एक क्रन्तिकारी ने छदम वेष में एक शस्त्र कंपनी से 200 हथियारों का एक बक्सा चुरा लिया ! इस चोरी की खोज में जनवरी 1917 में टुकड़ी बाला देवी का घर भी घेर लिया गया ! तलाशी में सात पिस्तौलें बरामद हुईं, और टुकड़ी बाला देवी को गिरफ्तार कर लिया गया !

गिरफ्तारी के बाद उन्हें बहुत यातनाएं दी गईं पर टुकड़ी ने अपना मुंह नहीं खोला ! उनका एक छोटा सा बच्चा भी था जिसे साथ रखने की इजाज़त भी नहीं दी गई ! उन्हें कड़े श्रम के साथ दो वर्ष के कारावास की सजा मिली थी और ग़रीब स्त्री जानकर उन पर बहुत अत्याचार किया जाता था ! उनसे इतना श्रम लिया जाता था कि वो बेदम हो जाती थी ! जेल में इतना कष्ट सहने बाद भी वो अपने पिता को पत्र में यही लिखती रहीं कि वो ठीक हैं ! 

दिसंबर 1918 में वो जेल से रिहा हुईं ! परन्तु किसी ने उन्हें आश्रय नहीं दिया ! उनका घर-बार, सब छिन चुका था ! जीवन के अंतिम दिनों में छोटी सी झुग्गी में कष्टों के साथ अभाव के दिन बिताते हुए वो कब विदा हो गईं कोई नहीं जानता !

ऐसे ही न जाने कितने लोग हैं जिन्होंने किसी न किसी रूप में देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान की बाज़ी लगाई होगी और कष्ट सहे होंगे, परन्तु हम उनके नाम भी नहीं जानते !

 


 

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