वायलीन का अविष्कारक ‘रावण’

सभी जानते हैं कि रावण दुष्ट होने के साथ-साथ महान पंडित भी था परन्तु कम लोग ही यह जानते है कि आयुर्वेद और काव्य कला में परिपूर्ण रावण वेद ज्ञानी के साथ साथ अच्छा वास्तुकार ओर संगीतज्ञ भी था ! रावण एक महान कवि के साथ-साथ वीणा वादन में भी सिद्धहस्त था ! उसने एक वाद्य भी बनाया था, जिसे बेला कहा जाता था ! इस यंत्र को वायलिन का ही मूल और प्रारम्भिक रूप माना जाता है ! कहीं-कहीं इस वाद्य को ‘रावण हत्था’ भी कहते हैं !

रावण हत्ता 

रावण हत्था प्रमुख रूप से राजस्थान और गुजरातमें प्रयोग में लाया जाता रहा है ! यह राजस्थान का एक लोक वाद्य है ! पौराणिक साहित्य और हिन्दूपरम्परा की मान्यता है कि ईसा से हजारो वर्ष पूर्व लंका के राजा रावण ने इसका आविष्कार किया था और आज भी यह चलन में है ! रावण के ही नाम पर इसे रावण हत्था या रावण हस्त वीणा कहा जाता है ! यह संभव है कि वर्तमान में इसका रूप कुछ बदल गया हो लेकिन इसे देखकर ऐसा लगता नहीं है ! कुछ लेखकों द्वारा इसे वायलिन का पूर्वज भी माना जाता है !

इसे धनुष जैसी मींड़ और लगभग डेढ़-दो इंच व्यास वाले बाँस से बनाया जाता है ! एक अधकटी सूखी लौकी या नारियल के खोल पर पशुचर्म अथवा साँप के केंचुली को मँढ़ कर एक से चार संख्या में तार खींच कर बाँस के लगभग समानान्तर बाँधे जाते हैं ! यह मधुर ध्वनि उत्पन्न करता है ! रावण हत्था को ढफ भी कहा जाता है !

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