एक सराहनीय फतवा |



फतवों को आम भारतीय शंका की नजर से देखता है | माना जाता है कि फतवा संस्कृति पुरातन पंथी होती है | लेकिन बरेली की आला हजरत दरगाह के प्रभावशाली मौलवी का नया फतवा अत्यंत सराहनीय व अन्य मुस्लिम धर्मावलम्बियों को नई राह दिखाने वाला है | अपने फतवे में मौलवी साहब ने फ़रमाया है कि आतंकवाद से जुड़े किसी भी व्यक्ति को दफनाते समय मैयत कि नमाज नहीं पढी जाए ।

ईद के अवसर पर दिया गया यह मजबूत संदेश आतंकवाद के खिलाफ आम मुस्लिमों की भावना को प्रगट करने वाला माना जा रहा है | इन प्रभावशाली मौलवी द्वारा यह यह स्पष्ट घोषणा की गई है कि अगर आतंकी घटनाओं में शामिल कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसे दफनाने के दौरान होने वाली 'नमाज-ए-जनाजा' नहीं की जाए । स्मरणीय है कि इस्लामी अंतिम संस्कार में यह नमाज महत्वपूर्ण मानी जाती है।

ईद की विशेष नमाज़ के दौरान दरगाह आला हजरत की एक शाखा, तहरीक-ए-तहफ्फुज-सुन्निअत (टीटीएस) के महा सचिव मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने कहा कि – “ईद के पवित्र अवसर पर सुन्नी बरेलवी मरकज एक सख्त सन्देश देना चाहता है कि कोई मौलाना, मुफ्ती या अन्य धार्मिक नेता किसी भी रूप में आतंकवाद से जुड़े किसी व्यक्ति के लिए 'नमाज-ए-जनाजा' न पढ़े । ऐसा करके हम आतंकवाद के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज कराना चाहते हैं "। 

पूर्व से ही यह संस्थान प्रगतिशील फतवों के लिए जाना जाता है। 18 जुलाई को टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार मौलवी साहब ने जकात (इस्लामी मान्यता का अनिवार्य दान) की घोषणा को लेकर भी एक फतवा जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि, जकात के धन का उपयोग आधुनिक शिक्षा और उच्च तकनीकी उपकरणों की खरीद के लिए किया जाना चाहिए । जून में जारी एक अन्य फतवे में उन्होंने कहा था कि एक सीमा के अन्दर महिलायें भी अपना व्यापार संचालित कर सकती हैं ।

अब देखना यह है कि इस फतवे को लेकर देश की कट्टरपंथी व अलगाववादी ताकतों का रवैया क्या रहता है | वे इस फतवे का अनुसरण करेंगे या विरोध ?
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