रेज़ांगला का अनोखा युद्ध, जब गोलियां ख़त्म होने पर बंदूकों को लाठी बना सैनिकों ने चीनियों को मौत के घाट उतारा !

दुनिया का सैन्य इतिहास वीरता की कहानियों से भले ही भरा पड़ा हो, परंतु रेजांगला की गौरवगाथा हर लिहाज से शहादत की अनूठी मिसाल हैं ! विषम परिस्थिति में चीनी सेना ने रेज़ांग-ला में तैनात भारतीय सैनिकों पर अचानक हमला बोल दिया ! भारतीय सेना के वीर जवानों ने 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर वीरता एवं शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता !यह भारतीय सेना के के वीर जवानो के जज्बे का ही परिणाम था, जिसके चलते चीन सीज फायर के लिए मजबूर हो गया था ! बेशक भारत को इस युद्ध में अधिकारिक रूप से जीत नसीब नहीं हुई, परंतु सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाने वाली रेजांगला पोस्ट पर यहां के जांबाज जवानों ने हजारों चीनी सैनिकों को मार गिराया था !

चीन और भारत के बीच 1962 में हुआ युद्ध भारत चीन सीमा विवाद के रूप में जाना जाता है ! विवादित हिमालय सीमा तो युद्ध के लिए एक बहाना भर था, लेकिन अन्य मुद्दों ने मुख्य भूमिका निभाई ! चीन में 1959 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा कर लिए जाने के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी ! चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये !

इस युद्ध के दौरान रेजांगला पोस्ट पर वर्ष 1962 की इस लड़ाई में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के कुल 124 जवान शामिल थे, जिनमें से 114 शहीद हो गये थे ! शहीद होने से पूर्व इन जवानों ने देश की सरहद की ओर बढ़ रहे चीन के 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था ! इस युद्ध की खास बात यह थी कि चीनी सैनिक जहां पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों व बर्फीले मौसम से पूरी तरह अभ्यस्त थे, वहीं मैदानी क्षेत्रों से गये भारतीय सैनिकों के लिए परिस्थितियां पूरी तरह प्रतिकूल थी ! हथियारों के मामले में भी भारतीय जवान चीन के सैनिकों से पीछे थे ! विशेष बात यह भी थी कि चीन जहां पूरी तैयारी के साथ युद्ध मैदान में उतरा था, वहीं भारत-चीनी भाई-भाई के नारे के बीच भारत को सपने में भी चीनी आक्रमण का आभास नहीं था ! 

रेजांगला पोस्ट पर लड़ रहे वीरों के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात उस समय आई, जब तेज आंधी-तूफान के कारण रेजांगला की बर्फीली चोटी पर मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में मोर्चा संभाल रहे सी कंपनी से जुड़े इन 124 जवानों का संपर्क बटालियन मुख्यालय से टूट गया ! चीनी सैनिकों ने एक प्लान के तहत रेज़ांग-ला में तैनात सैनिकों को दो तरफ से घेर लिया ! ऐसी ही विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया ! भारतीय सैनिक अपने तोपों (आर्टिलेरी) का इस्तेमाल नहीं कर पाई ! दूसरी पहाडि़यों पर मोर्चो संभाल रहे अन्य सैनिकों को रेजांगला पोस्ट पर चल रहे इस ऐतिहासिक युद्ध की जानकारी तक नहीं थी !

लद्दाख की बर्फीली, दुर्गम व 18 हजार फुट ऊंची इस पोस्ट पर सूर्योदय से पूर्व हुए इस युद्ध में यहां के वीरों की वीरता देखकर चीनी सेना कांप उठी ! इस युद्ध में 124 में से कंपनी के 114 जवान शहीद हो गये, लेकिन उन्होंने चीन के आगे बढ़ने के मंसूबों पर पानी फेर दिया ! तोप, मोर्टार और ऑटोमैटिक हथियारों जिनमें मशीन-गन भी शामिल थी से लेस चीनी सेना को भारतीय सेना ने 303 (थ्री-नॉट-थ्री) और ब्रैन-पिस्टल के जरिए ऐसा साहसिक जवाब दिया जो शायद किसी भी सैन्य इतिहास में कभी भी दिखाई नही देगा ! कंपनी के 124 जवानों ने हजारों चीनियों के दांत खट्टे कर दिए ! पीकिंग रेडियो ने भी तब केवल रेजांगला पोस्ट पर ही चीनी सेना की शिकस्त स्वीकार की थी !

रेजांगला पोस्ट पर दिखाई वीरता का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से अलंकृत किया था तथा इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मैडल व एक को मैंशन इन डिस्पेच का सम्मान दिया था। ! इसके अलावा 13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया था ! भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक अब तक कभी नहीं मिले ! सरकार ने चार्ली कंपनी की वीरता को देखते हुए बाद में एक अहम निर्णय लेते हुए कंपनी का दोबारा गठन किया तथा इसका नाम रेजांगला रखा ! 

इस युद्ध की सबसे ख़ास बात यह थी कि जब गोलियां खत्म हो गई तो जवानों ने हथियारों का इस्तेमाल लाठियों के रूप में किया ! भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ के पूर्व अधिकारी आर के यादव ने अपनी किताब ‘मिशन आर एंड डब्लू’ में इस बात किया खुलासा किया है कि गोलियां ख़त्म हो जाने के पश्चात भारतीय जवानों में से एक सिंहराम ने तो हथियार और गोलियों के बिना ही चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दिया था ! सिंहराम ने चीनी सैनिकों से मल्ल युद्ध प्रारम्भ कर दिया एवं चीनी सैनिकों को पकड़ पकड़ के पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दिया ! सिंहराम ने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और रेजांगला पोस्ट पर दुश्मन का कब्जा होने नहीं दिया !

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