कहानी "बजरंगी भाईजान" की - कितनी राजनीति कितना मनोरंजन ?



बजरंगी भाईजान की समीक्षा करते हुए अलग अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं  : 

अगर आप यह सोचते रहे हैं कि सलमान खान की फिल्म देखते समय हमेशा अपना दिमाग घर छोड़ आना चाहिए, तो इस बार आपको आश्चर्य होगा ? आपको लगेगा कि दिल भी दिमाग के साथ रहने देना चाहिए । - मिड डे
सलमान के प्रशंसकों के लिए बहुत विशेष "ईदी" है फिल्म बजरंगी भाईजान - स्टार डस्ट 
भाई हनुमान भक्त के रूप में बहुत बढ़िया है, वे आगे चलकर धर्मनिरपेक्ष भाजपा के सबसे अच्छे उम्मीदवार हो सकते है - फर्स्ट पोस्ट 

सलमान खान बजरंगी भाईजान के रूप में जब हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए बोलते हैं -"जय श्री राम", तब लगता है कि ये शब्द वे दिल की गहराईयों से बोल रहे हैं | प्रमाणित होता है कि एक अभिनेता के रूप में वे कितनी चुनौतीपूर्ण अकल्पनीय भूमिका में कितनी ईमानदारी के साथ इन तीन शब्दों को बोलते हैं।

आम बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले अभिवादन के ये सामान्य शब्द अभिनय के रूप में क्यों और कैसे परिवर्तित हो गए? 

क्योंकि यह आमिर खान नहीं है जो स्वयं को मिस्टर धार्मिक बताते हुए अपनी छवि को भुनाता है, यह तो अनाडी किन्तु दबंग व्यक्ति है जो अपने कंधों को हिलाते हुए,किसी टीनएजर के समान चुटकुले सुनाते हुए मनोरंजन के उच्चतम स्तर तक फिल्म को ले जाता है । हमेशा की तरह बोलती हुई तेजस्वी आँखें, उसकी मूंछें, खुली शर्ट में झांकती बलिष्ठ मांसपेशियां और सबसे महत्वपूर्ण बात उसका मूर्खतापूर्ण व्यवहार – इन सबके कुशल संयोजन ने इस खान को एक बेमिसाल सुपरस्टार बना दिया है। खान से अभिनय की उम्मीद थी, इसके बजाय उन्होंने अपने प्रशंसकों के सम्मुख स्वयं को प्रस्तुत कर दिया है, और प्रशंसक उससे ही खुश हैं ।

अपने मानवीय व्यवहार से बादशाह खान से किंग अंकल बनने की दिशा में उठाया गया यह कदम है | मूर्खता पूर्ण मजाक और एक्शन हीरो की इमेज जारी रखते हुए फिल्म में वह छोटे बच्चों की तरह रोया भी है ।

निर्देशक कबीर खान ने एक कठोर आदमी की छवि को मुलायम करने में काफी मेहनत की है, उसे एक निर्दोष हनुमान भक्त के रूप में बदलने का प्रयास किया है । जैसे कि राज कुमार हिरानी ने एक बुरे लड़के संजय दत्त को मुन्नाभाई बनाकर गांधीगीरी का राजदूत बना दिया था | शायद कबीर खान का यह बजरंगी भारत-पाक सीमा पार गांधी के शांतिपूर्ण तरीकों का प्रचारक हो सकता है ।

कुल मिलाकर कबीर खान को क्रेडिट दिया जा सकता है कि बजरंगी भाईजान उपदेशात्मक “पीके” की की तुलना में अधिक प्रभावी है।

कहानी कुछ यूं बनती है कि -

उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर का अनाडी पवन चतुर्वेदी जो पढाई में कभी अच्छा नहीं रहा, अपने पिता की अंतिम इच्छा के अनुसार अपनी आजीविका के लिए दिल्ली आ जाता है | उसे हनुमान भक्ति विरासत में मिली है | दिल्ली आकर वह अपने पिता के दोस्त के परिवार के साथ रहने लगता है, जहां उसकी भेंट रसिका (करीना कपूर) से होती है। फिल्म में नाटकीय मोड़ तब आता है जब रस्ते चलते उसे एक छह साल की पाकिस्तानी बच्ची मुन्नी उर्फ साहिदा (हर्शाली) मिलती है और देखते देखते उसका सरल, सुखद जीवन बदल जाता है और वह उस बच्ची को उसके परिवार से मिलवाने के लिए पाकिस्तान की सैर को निकल पड़ता है । मुन्नी जन्म से ही मूक पैदा हुई थी तथा उसकी मां समझौता एक्सप्रेस से भारत आई थी | यहाँ चट्टानों से गिर कर शाहिदा चमत्कारिक ढंग से पेड़ों में ज़िंदा तो बच गई लेकिन अपनी माँ से बिछुड़ गई थी । अब उसे पाकिस्तान के सुल्तानपुर में कहीं रहने वाली अपनी रोती हुई माँ के पास वापस जाना है, ऐसा चमत्कारिक करतब हमारे बजरंगी भाईजान के अलावा और कौन अंजाम दे सकता है ।
(Nawazuddin) चाँद नवाब, एक संघर्षरत स्वतंत्र पत्रकार की हास्य भूमिका में नजर आता है

पवन कुमार चतुर्वेदी उर्फ ​​बजरंगी (सलमान खान) सीमा पर स्थित फाटक के नीचे छिपी एक सुरंग से सीमा पार कर जाता है | यह बात वह हर पाकिस्तानी नागरिक और सैनिकों को बताता है।बजरंगी कभी झूठ नहीं बोलता क्योंकि वह हनुमान भक्त है, लेकिन वह हनुमान जी की प्रतिमा के आसपास सेल्फी लेता है, ढीले ढाले कपड़ों में नाचता है । वह बस अपनी जांघ को थपथपाता है और गुलाल उडाता है जिसका सिनेमैटोग्राफर असीम मिश्रा ने अद्भुत ढंग से छ्यांकन कर हमारे आदमी को एक हीरो बना दिया है।
जरा ठहरिये इसके पहले कि हमारे हनुमान भक्त बजरंगी यह चमत्कार करें, हम “बहिनजी” (कजरारी आँखों वाली रमणीय करीना कपूर) का वर्णन करना कैसे भूल जाएँ । जब छोटी बच्ची चिकन की टांग चबाती दिखाई देती है और हमारे पंडित हीरो को झटका लगता है या फिर जब मुन्नी प्रार्थना करने के लिए मस्जिद में जाती है, तब उसे समझाने को कोई गर्लफ्रेंड तो चाहिए न ?

प्रेमिका बहनजी उसे लेक्चर देते हुए समझाती हैं कि छोटे बच्चों को धर्म के आधार पर नहीं तौलना चाहिए | बस इसके साथ कुछ गाने और करीना की भूमिका ख़त्म | शेष सब समय बस बजरंगी भाईजान के हिस्से में । फिल्म देखकर लगता है कि सीमा पार जाना एक पार्क में टहलने जैसा या बर्फ से ढकी चोटियों पर बच्चों के खेल जैसा आसान काम है । सिद्दीकी जब अपनी बुरखा पहिनी बेगम “बजरंगी” को आवाज देता है वह देखना पर्याप्त मनोरंजक है ।

कुछ दृश्य और संवाद प्रभाव छोड़ते हैं | जैसे कि जब पवन अपने पत्रकार मित्र चाँद से कहते हैं – बजरंगी हमारी मदद करेंगे और चाँद उनसे मजाक में पूछता है – यहाँ पाकिस्तान में भी ?
या फिर एक और अधिक गंभीर पल जब चाँद मीडिया पर निशाना साधते हुए कहता है - 'यहाँ नफरत बिकती है, मोहब्बत नही' ।

हाथ जोड़कर प्रणाम करने वाला बजरंगी फिल्म के अंतिम सीन में सलाम करता भी दिखाई देता है | स्वाभाविक ही यह वह क्षण होगा जब आज के मुबारक दिन फिल्म में बैठा हर शख्श सीटी व ताली बजायेगा । ईद मुबारक |

फिल्म दो देशों के धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों पर मानवीय जीवन मूल्यों की प्रधानता को स्थापित करने का प्रयास है | फिल्म में यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है कि सीमा की खाई के कारण दोनों देशों के नागरिक त्रस्त हैं | सांस्कृतिक विविधता के बावजूद दिलों में आदर्श रहना चाहिए, प्यार रहना चाहिए ।

सलमान खान और कबीर खान अगर राजनेता बन जाएँ तो निश्चय ही उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों के वोट मिलेंगे । प्रधानमंत्री मोदी, आप सुन रहे हैं न ?

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