महानायक टंट̀या भील (संघर्ष का प्रारम्भ)

रंग काला, ऊंचाई पांच फुट चार इंच, शरीर हृष्टपुष्ट, तीर कमान, फरसा और तलवार रखता है | देहातों में लूट खसोट, आगजनी और मारपीट करने वाला डाकू टंट̀या भील खंडवा जेल से फरार हो गया है | उस पर पोखरगांव के शिवा पटेल की ह्त्या का भी इल्जाम है | उसको पकडवाने वाले को या उसका सही पता देने वाले को इंदौर दरवार द्वारा बीस हजार रुपयों का तथा अंग्रेज सरकार द्वारा पच्चीस हजार रुपयों का इनाम दिया जाएगा | 

यह मुनादी मालवा निमाड़ के गाँव गाँव में हो रही थी | कल्पना कीजिए आज से लगभग सवासौ वर्ष पूर्व पैंतालीस हजार रुपये कितने अधिक मूल्यवान रहे होंगे | ब्रिटिश सरकार द्वारा जिस टंट̀या भील के ऊपर यह इनाम रखा, आखिर उसका दोष क्या था ? उसके अपराध का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है –

लूटता था अमीरों को, गरीबों का था हितकारी,
मिटाने में लगा था वो, जमींदारों की बेगारी |
भीलों पर अकथ अन्याय, सह नहीं पाता था,
छुडाने जा पहुंचता था, अपहृत की गई नारी |

उसे मुखबिरों की मदद से गिरफ्तार किया जाता, किन्तु वह जेल तोड़कर निकल जाता | कहा जाता है कि वह शेर की तरह लम्बी छलांग मारकर झपट्टा मार सकता था | 

ऐसा माना जाता है कि भजन गांव के निकट निमाड़ के बिरहा गांव में 1824-27 के आस-पास टंटया का जन्म हुआ।उसके संघर्षपूर्ण जीवन की शुरूआत कुछ इस प्रकार हुई | पोखरगाँव के शिवा पटेल ने उनकी माँ जीवणी भीलनी के साथ बलात्कार का प्रयत्न किया, किन्तु बहादुर भीलनी ने प्राणपण से न केवल स्वयं को बचाया, बल्कि पटेल को जान बचाकर भागने पर विवश कर दिया | अपने मंसूबे में कामयाब ने हो पाने के क्रोध में शिवा पटेल ने उस बहादुर भीलनी की ह्त्या करवा दी | 

मर गई मायण दुखियारी, जेने मरद टंटियो जायो छे,

मरदानी थी भीलनी पूरी, सतियाँ खS सांच बचायो छे |

 दुखियारे पिता भाऊसिंह के सामने धर्मसंकट था | वह अपनी जीवन संगिनी की ह्त्या का बदला ले, अथवा पांच वर्षीय टंट̀या की परवरिश का बिचार करे | दिल पर पत्थर रखकर दिल में बदले की आग लिए उसने टंटया का पालन पोषण किया | बड़े होते होते टंटया भीलों का सहज नेता बन गया | वे समूह बनाकर शिकार करने जंगल में जाते और एक दूसरे को शस्त्रास्त्रों का प्रशिक्षण देते | पिता भाऊसिंह के पास कोई जमीन नहीं थी, वह हत्यारे शिवा पटेल के यहाँ बेगार करने को विवश था | एक बार फिर एक भीलनी की इज्जत लुटने की स्थिति बनी | अब संगठित भीलों ने इसका प्रबल प्रतिकार किया | जाकर शिवा पटेल की मरम्मत की | 

शिवा पटेल ने बदला टंटया के पिता से लिया, उसे पकड़कर इतना मारापीटा कि बेचारे भाऊसिंह ने दम तोड़ दिया | उसके बाद तो टंटया पूरी तरह जंगल का राजा बन गया | उसके समूह ने घात लगाकर पैसों वालों पर हमले करना और लुटे हुए धन से गरीबों की मदद करना शुरू कर दिया | अब टंटया बाग़ी था | लेकिन जल्द ही अपने रसूख और पैसे की दम पर शिवा पटेल ने टंट̀या को गिरफ्तार करवा दिया | 

लेकिन जेल उस बहादुर को कहाँ रोक पाती ? जेल की चारदीवारी लांघना तो उसके लिए सामान्य सी बात थी | जेल से बाहर आकर उसने पहला काम किया शिवा पटेल को उसके अपराध का दण्ड देने का | उसने शिवा पटेल की हत्या की, लेकिन आश्चर्य जनक सत्य है कि उसी शिवा पटेल की एक रखैल की बेटी जसोदा ने उसे अपराधी नहीं माना तथा  आगे चलकर उसके साथ शादी रचाई | जसोदा की नजर में उसका पिता ही हत्यारा और पापी था, जैसा कि वह वास्तव में था भी |

स्वाभाविक ही अंग्रेज सरकार, अपने द्वारा स्थापित पटेली व्यवस्था में टंट̀या भील द्वारा किये जाने वाले हस्तक्षेप को बर्दास्त नहीं कर पाई | शिवा के भाई हेमंत ने मुखबिरी करके टंट̀या को एक बार फिर गिरफ्तार करवा दिया | आगे की कथा देखिये -

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