कर्मवीर बुजुर्ग और भीख माँगते नौजवान - मेरा भारत महान |



अगर आपको कभी एक्साइड कोलकाता स्थित हल्दीराम के प्रतिष्ठान जाने का अवसर मिला होगा, तो आपकी नजर इन बुजुर्ग महिला पर जरूर गई होगी | आयु 85 से कुछ अधिक ही हो चुकी होगी | कुछ तो आयु ऊपर से परिस्थितियों का बोझ उठाती कमर झुक कर दोहरी हो चुकी है | ये बुजुर्ग महिला हल्दीराम प्रतिष्ठान के बाहर फुटपाथ पर चिप्स और कुछ अन्य सामान बेचती नजर आती हैं । इनका नाम है श्रीमती शीला घोष । बेटे की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद उन्होंने भिक्षा वृत्ति के स्थान पर अपने उदर पोषण का यह मार्ग चुना | उनके आत्मसम्मान ने उन्हें भिखारी का आसान जीवन जीने की अनुमति नहीं दी और उन्होंने यह मुश्किल रास्ता चुना । 

अगर आपके आसपास कोई ऐसा व्यक्तित्व है तो बजाय आसपास की दूकानों से सामान खरीदने के उस संघर्षशील और जुझारू महानुभाव से ही सामान खरीदने को प्राथमिकता देना उचित होगा | इस आलेख को लिखते समय मेरी आँखों के सामने एक और दृश्य घूम गया | 

मैं ट्रेन द्वारा भोपाल से मुम्बई जा रहा था | दोपहर के समय भगवा चोगा पहने एक युवा ने आकर मेरे सामने हाथ फैलाया | मैंने उन्हें देने के लिए एक दस का नोट जेब से निकाला और उत्सुकता से पुछा – कहाँ जा रहे हो महाराज ?

युवा ने जबाब दिया – बच्चा वैष्णो देवी को निकले हैं | मैं अकबका गया |

भोपाल से मुम्बई जाने बाली गाडी से ये महाशय वैष्णो देवी कैसे पहुंचेंगे ? मेरे पूछने पर उन्होंने जबाब में अपना चोगा सामने से खोल दिया | वे अन्दर कुछ भी धारण नहीं किये हुए थे | मेरे हाथ का दस का नोट हाथ में ही दुबक गया | मैंने आश्चर्य से पूछा आप नग्न होकर क्या बताना चाहते हैं ? 

वे बोले मैं नागा साधू हूँ |

मैंने हैरत से पूछा तो क्या नागा साधुओं को मुम्बई जाने बाली ट्रेन वैष्णो देवी ले जाती है ? 

उनका जबाब था – बच्चा हमें क्या है आगे किसी स्टेशन पर उतरकर दूसरी गाडी पकड़ लेंगे |

स्वाभाविक ही वे महाशय कोई साधू वाधू नहीं थे, इसका प्रमाण उनके मुंह से निकलने वाला शराब का भभका था | मेरे हाथ में कसमसा रहा दस का नोट वापस वापस जेब में पहुँच गया | मैंने उन्हें डांटकर शराब पीने का कारण पूछा तो बेशर्मी से उन्होंने अपनी जेब से भैरोबाबा की तस्वीर निकालकर बता दी | कुछ जबाब देने की हालत में तो वे थे नहीं | 

मैंने कहा – अच्छा तो आप भैरो बाबा हैं ? उन्होंने कहा नहीं भैरो का भक्त हूँ |

भगवा चोगा ही क्यों, हरा चोगा पहिनकर अजमेर जाने के नाम पर झोली फैलाए दो नौजवान हमें ट्रेनों में अक्सर नजर आ ही जाते हैं | 

इन दो नजारों का वर्णन करते हुए एक सवाल दिमाग को मथ रहा है | चाहे वृद्धावस्था में जीवन संघर्ष करने को विवश श्रीमती शीला घोष हों चाहे ट्रेनों में धर्म के नाम पर भीख माँगते ये पथभ्रष्ट नौजवान, एक आदर्श राष्ट्र के रूप में तो दोनों ही स्थितियां अशोभनीय हैं | हमारे समाज के लिए आदर्श स्थिति तो यही होगी कि बुजुर्ग ससम्मान मार्गदर्शन करें और नौजवान कर्मवीर बनें |
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