पूर्व रॉ प्रमुख के बयान का वास्तविक उद्देश्य ?

Kashmiri militants: Former RAW chief AS Dulat has claimed that Indian intelligence agencies pay militants, separatists and political parties in J&K. (File Photo)

कैसा विचित्र है हमारा समाचार जगत | विचित्र है मीडिया का हठयोग | पूर्व रॉ प्रमुख ए एस दुलत के बयान के सबसे महत्वपूर्ण अंश को नजरअंदाज कर अपने चहेते विषय की डुगडुगी बजाने में लगे इन महानुभावों से कोई पूछे कि देश बड़ा है या व्यक्ति ? दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका क्या थी, क्या नहीं, यह विषय तो लम्बे समय से चर्चित भी रहा है, तथा देश के न्यायालय उस पर निर्णय भी दे चुके हैं | इतना ही नहीं तो जनता जनार्दन ने भी अपना स्पष्ट अभिमत बता दिया है, भले ही गांधी जी के तीन बंदरों से अनुप्राणित तबके तक वह पहुंचे, अथवा न पहुंचे |
पूर्व रॉ प्रमुख के बयान का सबसे महत्वपूर्ण अंश है कि से भारतीय खुफिया एजेंसियां नियमित रूप से जम्मू कश्मीर के प्रमुख राजनैतिक दलों को धन प्रदान करती है | इन दलों में न केवल नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और पीडीपी, बल्कि अनेक आतंकवादी समूह व हुर्रियत नेता भी भुगतान पाने वालों में शामिल हैं ।
स्मरणीय है कि दुलत 1988 में खुफिया ब्यूरो अधिकारी के रूप में जम्मू एवं कश्मीर में तैनात रहे थे | उसके बाद वे भारत की बाह्य खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग में गए, तदुपरांत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार बनकर 2004 तक रहे उनका कहना है कि खुफिया एजेंसियां राजनीतिज्ञों और अलगाववादियों को यह रिश्वत प्रतिरक्षा कारणों से प्रदान करते रहे हैं । इसके माध्यम से जहां आईएसआई की गतिविधियाँ सामने आती हैं, बल्कि लोगों की जान भी सुरक्षित होती है | 
1990 के दशक में आतंकवाद की वृद्धि के साथ साथ भुगतान की राशि भी सैंकड़ों से लाखों में बढ़ती गई | दुलत का कहना है कि हुर्रियत में केवल कुछ लोग ही अपवाद थे, जिन्होंने धन नहीं लिया । यह कोई बड़ी बात भी नहीं है। दुनिया भर में सभी खुफिया एजेंसियों गंदगी कम करने को पैसे देती हैं।
स्वाभाविक ही नेशनल कोंफ्रेंस और पीडीपी दोनों ने इन आरोपों से इनकार किया है । किन्तु एक प्रश्न जो इन बातों से उठता है कि इन आरोपों प्रत्यारोपों से किसको लाभ होगा ? क्या यह विषय चर्चा का केंद्र बिंदु नहीं बनना चाहिए ? क्या श्री दुलत किसी सोची समझी राजनैतिक योजना के मोहरे हैं ? 
श्री दुलत का यह कथन कि केवल मुफ्ती को साधने से काम नहीं चलेगा मोदी सरकार को अलगाववादियों से भी बातचीत शुरू करना चाहिए, क्या इंगित करता है ? उन्होंने यह भी कहा कि 2002 के दंगों के बाद उमर अब्दुल्ला द्वारा एनडीए में बना रहना उनकी बड़ी भूल थी | 
कुल मिलाकर श्रीमान दुलत जी मोदी सरकार को असहज करने का प्रयत्न कर रहे हैं और योजनाबद्ध रूप से मीडिया का एक तबका उनकी महत्वहीन बातों को बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत कर रहा है | यह और कुछ नहीं, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों की गोटियाँ बैठाई जा रही हैं |


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