अंग्रेजी अखबारों पर एक नजर –


एक ओर तो पाकिस्तान के साथ वार्ता बहाली की घोषणा दूसरी तरफ 1965 में हुए भारत पाक युद्ध की 50वीं वर्षगाँठ – उत्सव प्रधान देश भारत – तो सरकार ने राजपथ पर एक भव्य "जीत कार्निवल ' के लिए कमर कस ली।

इसका प्रारम्भ एक संगोष्ठी के साथ होगा, स्मृति में डाक टिकट और सिक्का जारी होगा । रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार 20 सितंबर को साहसिक गतिविधियों के प्रदर्शन के साथ इसका समापन होगा । इस अवसर पर युद्ध काल की घटनाओं पर प्रकाश डालने वाली एक बड़ी प्रदर्शनी भी लगाई जायेगी ।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध तो हुआ, किन्तु इसे भारत की जीत बताना संदिग्ध है। भारत पराजित तो बिलकुल नहीं हुआ, किन्तु पाकिस्तान के खिलाफ रणनीतिक बढ़त बनाने में भी असफल रहां । जैसा कि तत्कालीन विपक्ष के नेता अटल विहारी बाजपेई कहा भी करते थे कि सैनिकों की वीरता हम टेबिल पर गंवाते रहे |

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो डॉ श्रीनाथ राघवन का कहना है कि "इतिहासकारों के बीच इस बिंदु पर आम सहमति बनाई जानी चाहिए कि यह युद्ध एक गतिरोध था और यह अच्छा होगा कि सरकार लोगों को सक्षम बनाए जिससे वे हाल के इतिहास में युद्ध की गंभीरता ठीक से समझ सकें । इसका सबसे अच्छा उपाय यह है कि जनता सभी सरकारी दस्तावेज सहज उपलब्ध हों" ।


शायद यह दलबदलुओं को सतर्क करने वाली खबर है कि अमृतसर के व्यवसायी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सौतेले भाई दलजीत सिंह कोहली आज भी भाजपा में किसी पद के लायक नहीं समझे गए हैं ।
आज से लगभग एक वर्ष पूर्व 25 अप्रैल 2014 को अमृतसर में आयोजित एक चुनाव पूर्व रैली में काफी धूमधाम के साथ श्री नरेंद्र मोदी और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की उपस्थिति में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे।
सूत्रों का कहना है कि कोहली का धैर्य अब जबाब दे रहा है और वे अब संगठन में अपनी कोई स्थिति चाहते हैं । हालांकि कोहली का कहना है कि वे किसी पद के लिए भाजपा में सम्मिलित नहीं हुए थे, बल्कि वे तो कांग्रेस में हो रहे अपने बड़े भाई मनमोहन के अपमान और गांधी परिवार द्वारा चलाए गए कथित बदनामी अभियान से दुखी होकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे। 


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