कानपुर के नजदीक महाभारत कालीन एक अद्भुत शिवलिंग जिसके सम्मुख क्रूर बादशाह ओरंगजेब को भी माननी पडी थी हार



कानपुर एक ऐतिहासिक शहर है जहां मुगलशासक से लेकर अंग्रेजों द्वारा बनाई गई इमारतें आज भी विद्यमान हैं | मुग़ल काल में अनेक हिन्दू मंदिर तोड़े भी गए | लेकिन कानपुर देहात के छोटे से गांव में स्थापित एक शिवमन्दिर ऐसा भी है जिसे औरंगजेब भरपूर कोशिश करने के बाद भी नहीं तोड़ सका। मन्दिर के पुजारी का कहना है कि यह मन्दिर महाभारत काल से इसी गांव में है और प्रलय काल तक रहेगा ।

हम बात कर रहे हैं कानपुर देहात के छोटे से गांव बनीपारा में स्थित प्राचीन बाणेश्वर शिव मंदिर की । कहा जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब ने एक बार इसे नष्ट करने की कोशिश की । लेकिन लाख प्रयास करने पर भी शिवलिंग को ना तो हटाया जा सका और न ही तोडा जा सका | मजदूरों की खुदाई भी शिवलिंग की गहराई की सीमा तक नहीं पहुँच पाई । हार कर मजदूरों से पुनः मिट्टी डलवा दी गई। 

राजा लाना चाहते थे महल में शिवलिंग

इस समय मन्दिर के पुजारी किशन बाबू का कहना है कि राजा बाणेश्वर की बेटी ऊषा भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। उनकी पूजा करने वह इतनी तल्लीन हो जाती थी कि अपना सब कुछ भूलकर आधी-आधी रात तक दासियों के साथ शिव का जाप करती थी। बेटी की भक्ति को देखकर राजा शिवलिंग को महल में ही लाना चाहते थे ताकि उनकी बेटी को जगंल में न जाना पड़े और उसकी पूजा आराधना महल में ही चलती रहे ।

घोर तपस्या से दर्शन हुए थे भगवान शिव के

भगवान शिव के प्रति बेटी की इस श्रद्धा व लगन को देखकर राजा बाणेश्वर ने घोर तपस्या की। कई वर्षो के बाद राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेशंकर ने उन्हें साक्षात दर्शन दिये और वरदान मांगने को कहा। उनकी बात सुनकर राजा ने उनसे अपने महल में ही बसने की प्रार्थना की। भगवान ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण करते हुए वे अपना एक लिंग स्वरुप उन्हे दिया किन्तु शर्त रखी कि जिस जगह वह इस शिवलिंग को रखेगे,वैसे ही वह उसी जगह स्थापित हो जायेगा। (यह कथा रावण द्वारा स्थापित बैद्यनाथ धाम को लेकर भी है) 

शिवलिंग पाकर प्रसन्न राजा बाणेश्वर तुरंत अपने राजमहल की ओर चल पड़े। रास्ते में ही राजा को लघुशंका लगी। उन्हें जंगल में एक आदमी आता दिखाई दिया। राजा ने उसे शिवलिंग पकड़ने के लिए कहा और जमीन पर न रखने की बात कहीं। उस आदमी ने शिवलिंग पकड़ तो लिया, लेकिन वह इतना भारी हो गया कि उसे शिवलिंग को जमीन पर रखना पड़ा। जब राजा बाणेश्वर वहां पहुंचे तो नजारा देख हैरान रह गए। उन्होंने शिवलिंग को कई बार उठाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी जगह से नहीं हिला। राजा को वहीं पर मंदिर का निर्माण कराना पड़ा, जो आज बाणेश्वर के नाम से मशहूर है। 

मान्यता है कि सदियों से भोर के समय शिवलिंग पर पुष्प, चावल और जल खुद-ब-खुद चढ़ जाता है, क्योंकि राजकुमारी उषा आज भी सबसे पहले आकर यहां शिवजी की पूजा करती हैं।

दर्शन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

ग्रामीणों के अनुसार इस मंदिर में स्थापित अद्भुत शिवलिंग के दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। कांवड़िये सबसे पहले लोधेश्वर और खेरेश्वर मंदिर में गंगाजल अर्पित करते हैं। इसके बाद बाणेश्वर मंदिर में जल चढ़ाकर अनुष्ठान को पूरा करते हैं। गांववालों की आस्था है कि सावन के सोमवार का व्रत रखने से सभी मुरादें पूरी होती हैं। नागपंचमी के दिन यहां एक बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसमें देशभर के कांवाड़ियों की भीड़ जुटती है।

आप समझ ही गए होंगे कि यह कथानक महाभारत कालीन है | उषा कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को स्वप्न में देखकर ही उनपर मुग्ध हो गई थीं तथा अपने योगबल से उन्हें अपने महल में ले आई थीं | बाद में कृष्ण वाणेश्वर (वाणासुर) का युद्ध हुआ, और भगवान् शिव के हस्तक्षेप के बाद अनिरुद्ध और उषा का विवाह भी | यद्यपि महाभारत में वर्णित कथानक में वाणेश्वर को शोणितपुर का राजा बताया गया है | इस शोणितपुर को लेकर भी अलग अलग मान्यताएं हैं | कुछ लोग उसे आसाम में मानते हैं तो कुछ विद्वान् हिमाचल में | उक्त जनश्रुति में वाणेश्वर को कानपुर का राजा दर्शाया गया है | 

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