मानसिक शक्ति ही सफलता की कुंजी - मनोविज्ञान

एक है इरा सिंघल | बचपन में ही वह क्लैफ्ट पैलेट सिंड्रोम नामक बीमारी की चपेट में आ गई। यह बीमारी जेनेटिक है। मेडिकल साईंस की भाषा में इसे ही स्कॉलियोसिस कहा जाता है। इसके चलते हाथ-पैर में विकृति आ जाती है । ईरा के पैर की समस्या तो आगे चलकर बहुत हद तक ठीक हो गई, लेकिन हाथों में अभी भी है।

बचपन से ही अशक्त ईरा सिंघल को अपनी पढ़ाई-लिखाई के लिए लगातार परेशानियों से दो-चार होना पड़ा । जब बात नर्सरी स्कूल में दाखिले की आई, तो सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद भी शारीरिक रूप से अक्षम व अशक्त मानकर उसका आवेदन रद्द कर दिया गया । पिता राजेन्द्र सिंघल को स्कूल प्रशासन से बहुत आरजू-मिन्नत करनी पड़ी। 

आगे की पढ़ाई के लिए जब वह दिल्ली आयीं तो पिताजी ने बाराखंभा रोड स्थित मॉडर्न स्कूल में उसके प्रवेश हेतु प्रयास किया, पर वहां की प्रिंसिपल ने यह कहकर निराश किया कि ऐसे बच्चों को स्पेशल स्कूल में पढ़ाया जाना चाहिए। वह सामान्य स्तर के स्कूलों में पढ़ने योग्य नहीं है। यह अलग बात है कि बाद में पढाई के दौरान वह सदैव टॉप थ्री में रहीं ।

इतने पर ही उसकी परेशानियों का अंत नहीं हुआ | ईरा ने पहली बार में ही यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण कर ली किन्तु उसे नौकरी के लिए मेडिकली अनफिट करार दे दिया गया ? लेकिन ईरा ने हिम्मत नहीं हारी और उसने कैट में इस अन्याय के खिलाफ अपील की | जहां से उसके पक्ष में निर्णय हुआ और उसके बाद वह इंडियन रेवेन्यू सर्विस की ट्रेनिंग लेने हैदराबाद गई।

यूपीएससी टॉपर इरा सिंघल को इस बात का अफसोस है कि आज के जमाने में लोग व्यक्ति की क्षमता या फिर उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन उसकी शक्ल और उसकी शारीरिक बनावट से करते हैं | जबकि क्षमता या फिर प्रतिभा का शरीर की बनावट और व्यक्ति की शक्ल से कोई लेना-देना नहीं होता ।

गीता के उपदेशों को आत्मसात् करनेवाली ईरा की मान्यता है कि जो लोग रिजल्ट को लेकर सोचते हैं, समस्या उनके लिए होती है। क्योंकि, वे सोचते हैं कि उत्तीर्ण नहीं हुए तो क्या होगा ? दुनिया क्या कहेगी ? लेकिन उसने कभी इस बात की चिंता नहीं की | अपनी शारीरिक अशक्तता को अपनी बौद्धिक क्षमता पर हावी नहीं होने दिया | इसीलिए वह लगातार हर जगह सफलता अर्जित करती चली गई | उसका अभी भी मानना है कि उसकी सर्वश्रेष्ठ सफलता की मंजिल अभी भी दूर है, और उसे लंबा सफ़र तय करना है । उसकी नजर में सफलता का अर्थ है, आमलोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में उसकी भूमिका । उसकी मान्यता है कि इस लक्ष्य को पाने में भी वह निराश नहीं होगी । 

जो लोग शारीरिक रूप से अशक्त हैं, उनके परिवार के लोगों के लिए इरा का सुझाव है कि वे उन्हें अपनत्व और प्रेम दें | और यही काम ईरा करना चाहती है | वह शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के बीच इस भावनात्मक पहलू पर काम करना चाहती है कि गांव, समाज और दुनिया उसे स्वीकारे । परिवार उसे बराबर का साझीदार समझे और दूसरा, सिस्टम को सबके लिए एक जैसा बनाया जाय।

अपनी सफलता का राज बताते हुए ईरा कहती हैं कि मेंटल स्ट्रेंथ को बनाए रखना ही उसकी सफलता की कुंजी है । यूपीएससी परीक्षा की तैयारी में एक ही चीज को अलग-अलग तरीके से कई बार पढ़नी पड़ती है। लिहाजा जिस विषय में अभिरूचि हो, उसी को गहराई से पढ़ना चाहिए। पहले प्रयास में मैंने काफी मेहनत की। कोचिंग और स्वाध्याय तो था ही। उसके बाद तो बस, अपने को अपडेट रखना था। उसे थियेटर, डायरेक्शन, यात्रा का शौक है। प्रेमचंद की किताबें पढ़ी है। फुटबॉल का भी शौक है। पुनर्जन्म और कर्म में विश्वास रखती हैं।

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