समग्र जनसंख्या नीति की जरूरत - प्रमोद भार्गव


2011 की जनसंख्या के धर्म आधारित आंकड़े आ गए हैं । आंकड़ों के मुताबिक हिंदुओं की आबादी सर्वाधिक 96.63 करोड़ है। बावजूद इसके यह पहला अवसर है जब उनकी जनसंख्या का प्रतिशत कुल आबादी में 80 प्रतिशत से कम हुआ है। 2001 की तुलना में उनकी वृद्धि दर भी 0.7 प्रतिशत घटी है। दूसरी तरफ मुस्लिम आबादी 0.8 फीसदी बढ़कर 17.22 करोड़ हो गई है। जबकि जैन,ईसाई,सिख,बौद्ध,जैन और पारसियों की आबादी में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं हुआ है। इन आंकड़ों को पेश करने के समय को लेकर बहस छिड़ सकती है,क्योंकि ये आंकड़े बिहार चुनाव के ठीक पहले सार्वजनिक किए गए हैं। लेकिन मुस्लिमों की बढ़ती आबादी और जनसंख्या के बिगड़ते घनत्व को लेकर जो चितांए जताई जाती रही हैं,उन्हें केवल दक्षिणपंथी ताकतों का बड़बोलापन मानना या केंद्र में सत्तारूढ़ दल के लाभ हानि की दृष्टि से देखना बड़ी भूल होगी। ? 

बढ़ती आबादी की पुष्टि के बाद यह जरूरी हो गया है कि जनसंख्या नियंत्रण में एकरूपता लाने के लिए एक देशव्यापी नीति बने,अन्यथा आबादी का यह घनत्व अनुपात बिगड़ता है तो देशभर में कश्मीर व पूर्वोत्तर के राज्यों की तरह समाज में टकरावों का बढ़ना तय है।

धर्म आधारित जनगणना के आंकड़े तो अब आए हैं,लेकिन वाशिंगटन स्थित ‘प्यु रिसर्च सेंटर‘ की अध्यन रपट ने तो पहले ही जता दिया था कि भारत में हिंदु और मुसलमानों की जनसंख्या में तेजी से हो रहे असंतुलन के कारण सीमावर्ती राज्यों और मध्य-भारत में तीव्रता से सामाजिक टकराव के हालात पैदा कर दिए हैं। 1951 से प्रत्येक 10 वर्ष में होने वाली जनगणना हिंदू और मुस्लिमों के जनसांख्यिकीय अंतर को रेखांकित करती रही है। इस हिसाब से हिंदुओं की वृद्धि दर मुस्लिमों की तुलना में निरंतर घटी है। रपट में आगाह किया गया है कि 2050 तक भारत इंडोनेशिया को पीछे छोड़ पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान आबादी वाला देश होगा। इस कालखंड तक पूरी दुनिया में मुसलमानों और ईसाइयों की आबादी लगभग बराबर हो जाएगी। 

यदि जनसंख्या वृद्धि दर का स्तर यही रहा तो 2070 तक इस्लाम दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय बन जाएगा। एक अंदाजे के अनुसार अगले 4 वर्षों में दुनिया की आबादी 9.3 अरब होगी। इसमें मुसलमानों की संख्या 73 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ेगी,जबकि ईसाइयों और हिंदुओं की वृद्धि दर क्रमशः 35 व 34 प्रतिशत ही रहेगी। मौजूदा समय में मुसलमानों में संतान पैदा करने की दर सबसे ज्यादा है। मसलन हर महिला 3 से अधिक बच्चे पैदा कर रही है। ईसाइयों में महिलाएं औसतन 2 से अधिक बच्चों को जन्म देती हैं,जबकि हिंदुओं में शिशु जन्म दर 2.4 ही है। दरअसल 2010 में पूरी दुनिया की 27 प्रतिशत आबादी 15 साल से कम उम्र की थी। इसके उलट 34 प्रतिशत मुस्लिम आबादी 15 साल से कम उम्र के किशोरों की थी। हिंदुओं में यही औसत 30 था। आबादी के इसी घनत्व के परिप्रेक्ष्य में मुसलमानों की तेज रफ्तार से बढ़ती आबादी के संकेतों को स्पष्ट किया गया है। इन्हीं जनसांख्यकीय संकेतों से यह अनुमान लगाया गया है कि 2070 में इस्लाम सबसे बड़ा धर्म होगा।

जहां तक भारत का सवाल है तो 1991 की जनगणना के मुताबिक हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 22.8 प्रतिशत थी,वहीं मुस्लिमों की 32.8 थी। जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की वृद्धि दर 21.5 फीसदी थी,वहीं मुस्लिमों की दर 29 फीसदी थी। 2011 में जहां हिंदुओं की वृद्धि दर 16.76 प्रतिशत रही,वहीं मुस्लिमों की आबादी में 24.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। मुस्लिमों की इस वृद्धि दर पर हम 2001 की जनगणना के बरक्ष संतोश कर सकते हैं,क्योंकि इस वृद्धि दर की रफ्तार 2001 में 29 फीसदी थी,जो 2011 में 5 प्रतिषत गिरकर 24 फीसदी रह गई। मुस्लिमों में आजादी के बाद आबादी की यह गिरावट सबसे कम है। इसे हम इस संदर्भ में देख सकते हैं कि मुस्लिमों के जो परिवार शिक्षित व आर्थिक रूप से संपन्न होकर देश की मुख्यधारा में आ गए हैं,उन्होंने आबादी नियंत्रण के नुस्खे अपनाए हैं। संभव है,शिक्षा और अन्य धर्मावलंबी समाजों की निकटता से धीरे-धीरे इस स्वीकार्यता में और भी सकारात्मक बदलाव आएं,लेकिन विडंबना यह है कि मुस्लिमों की बहुसंख्यक आबादी आज भी मदरसा शिक्षा के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रही है।

मुस्लिमों की इस बढ़ती आबादी के बावत सांख्यिकी विशेषज्ञों ने तीन प्रमुख कारण गिनाए हैं। पहला,मुस्लिमों में आज भी एक से अधिक विवाह करने का रिवाज है। बहु विवाह के कारण बच्चे ज्यादा पैदा होते हैं,जो आबादी बढ़ने का कारण बनते हैं। दूसरा,भारत में पड़ोसी देश पाकिस्तान और बंग्लादेश से आज भी घुसपैठ जारी है। बीते दो दशकों में अफगानियों की आमद भी भारत में बढ़ी है। खासतौर से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। तीसरा कारण धर्मांतरण है। केरल,कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में गरीब हिंदुओं को लालच देकर बड़ी संख्या में धर्मातंरण कराने के अनेक उदाहरण सामने आए हैं। मुस्लिमों में अशिक्षा,जागरूकता का अभाव और धार्मिक कट्टरता भी आबादी बढ़ाने के उल्लेखनीय कारण बने हुए हैं। 

2001 और 2011 के जनसंख्या संबंधी आंकड़ों ने यह मिथक तोड़ दिया है कि मात्र सीमावर्ती जिलों में अवैध घुसपैठ के कारण मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है। 2001 की ही जनसंख्या ने तय कर दिया था कि मध्य-भारत में भी हिंदुओं की तुलना में मुसलमान बढ़ रहे हैं। उत्तर-प्रदेश की कुल जनसंख्या में मुस्लिमों का प्रतिशत 18.49 हो गया है। इस प्रदेश के 20 जिले ऐसे हैं,जिनमें मुस्लिमों की संख्या 20 से 40 प्रतिशत तक है। इसी तरह दूसरे प्रमुख हिंदी भाषी राज्य बिहार में भी मुस्लिम आबादी में अस्वाभाविक वृद्धि दर्ज की गई है। बिहार में 10 जिले ऐसे हैं,जहां आबादी का प्रतिशत 30 से ऊपर पहुंच गया है। बिहार में अगले 2 माह में राज्य विधानसभा के जो चुनाव होने हैं,उनमें 243 सीटों में से 50 पर मुस्लिम मतदाता परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। इसीलिए इन आंकड़ों के सार्वजनिक करने की पहल को राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है। दरअसल ताजा आंकड़ों के मुताबिक मुस्लिमों की आबादी भले ही देश में14.2 फीसदी है,लेकिन इस आबादी के मतदाताओं का महत्व इसलिए है,क्योंकि यह धर्म-समूह सोची-समझी रणनीति के तहत एक दल या उम्मीदवार के पक्ष में अधिकतम मतदान करता है। इस वजह से नतीजों को प्रभावित करने में इस समूह का महत्व आजादी के बाद से ही बरकरार है।

आबादी का सबसे ज्यादा घनत्व जम्मू-कश्मीर में बिगड़ा हुआ है। यहां घाटी के 8 जिलों में तो शत-प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। यह स्थिति आतंक के चलते हिंदू,सिख और बौद्धों की बेदखली के कारण बनी है। 2001 में ही यहां मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 1991 के 64.19 की तुलना में बढ़कर 70 प्रतिशत हो गया था। यही वजह है कि कष्मीर ढाई दशकों से पाकिस्तान परस्त आतंकवाद का शिकार हो रहा है। जाहिर है,अलगाववादियों के मंसूबों को ध्वस्त करने का कार्य, घाटी में विस्थापितों का पुनर्वास किए बिना संभव ही नहीं है।

दरअसल अब तक देश में आबादी नियंत्रण के एकांगी उपाय किए जाते रहे हैं। यही वजह है कि आबादी असंतुलित अनुपात में बढ़ रही है। आबादी नियंत्रण के परिप्रेक्ष्य में केरल राज्य द्वारा ‘वूमेन कोड बिल-2011‘ बनाया गया है। इस आदर्श विधेयक का प्रारूप न्यायाधीश वीआर कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता में 12 सदस्यीय समिति ने तैयार किया है। इसमें प्रावधान है कि देश के किसी भी नागरिक को धर्म,जाति,क्षेत्र और भाषाई आधार पर परिवार नियोजन से बचने की सुविधा नहीं दी जा सकती है। हालांकि दक्षिण भारत के राज्यों की जनसंख्या वृद्धि दर कमोबेश संतुलित है। क्योंकि इन राज्यों में परिवार नियोजन को सुखी जीवान का आधार मान लिया गया है। बावजूद इसके आबादी नियंत्रण के देशव्यापी उपाय तभी सफल होंगे,जब सभी धर्मावलंबियों के जाति और वर्गों की उसमें सहभागिता हो।

हमारे यहां परिवार नियोजन अपनाने में सबसे पीछे मुसलमान हैं। इनमें आज भी यह भ्रम फैला हुआ है कि परिवार नियोजन ‘इस्लाम‘ के विरूद्ध है। कुरान इसकी अनुमति नहीं देता। दकियानूसी धर्मगुरू भी कुरान की आयतों की मनमानी व्याख्या कर इस समुदाय को गुमराह करते रहते हैं। हालांकि चिकित्सा महाविद्यालय,गोहाटी के प्राध्यापक डॉ इलियास अली कुरान की आयतों का ही हवाला देकर पूरे असम में मुसलमानों के बीच जाकर परिवार नियोजन का अलख जगा रहे हैं। खुद असम की राज्य सरकार ने इस जागरूकता अभियान की कमान डॉ अली को सौंपी है। केंद्र सरकार को जरूरत है कि एक तो वह केरल वूमेन कोड बिल को संसद से पारित कराए,दूसरे डॉ इलियास के सन्देश को पूरे देश में फैलाए। जिससे सभी धर्मावलंबियों के बीच जनसंख्यात्मक घनत्व समान अनुपात में रहे और भविष्य में टकराव की परिस्थितियां ही निर्मित न होने पाएं। 

प्रमोद भार्गव                                                              
लेखक/पत्रकार
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शिवपुरी म.प्र.
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लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।


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