गुजरात में निकला आरक्षण का जिन्न |
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गुजरात में पटेल संग्राम – जातीय राजनीति की वापसी |
यह एक स्थापित सत्य है कि स्वतंत्रता के बाद से ही भारत की राजनीति जाति और धर्म की धुरी पर घूमती रही है । राजनैतिक हलकों में माना गया कि 2014 के संसदीय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अकल्पनीय विजय धर्म की जाति पर विजय थी । नरेंद्र मोदी के जादू ने जाति आधारित मांगों और जाति आधारित राजनीति के कोलाहल को “हिंदू' भारत” के शंखनाद से शांत कर दिया था ।
हिंदुत्व की विराट भागीरथी में जाति और जाति आधारित राजनीति की छुटपुट धाराएँ विलय हो गई थीं । लगता है गुजरात में पटेल आरक्षण आन्दोलन इस विश्लेषण और मूल्यांकन के आधार पर ही भाजपा व मोदी विरोधियों द्वारा संचालित किया जा रहा है |
आखिर गुजरात में जिस जाति का स्वयं मुख्यमंत्री हो, देश का प्रथम गृहमंत्री रहा हो, जो जाति समृद्धि व सम्पन्नता में किसी भी अन्य जाति से आगे हो, उसके लिए आरक्षण की मांग करना किसी को भी बेतुका लगेगा | उसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में शामिल किए जाने की मांग के पीछे मोदी जी को गुजरात में ही घेरने की कवायद ज्यादा प्रतीत होती है।
क्या पटेलों की मांग एक समूह के अनावश्यक हित की निरर्थक चर्चा है ? या इसके पीछे हिंदुत्व की विचारधारा को संतुलित करने की इच्छा रखने वाले तत्व जोर आजमाईश कर रहे है ? स्टीफन कोहेन ने भारत को अद्भुत विविधताओं से भरा एक सभ्य देश कहकर परिभाषित किया। विभिन्न सम्प्रदाय, संस्कृतियां और धर्म इसके घटक हैं | एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटक है जाति | आधुनिक विकास और आधुनिकीकरण की आंधी भी भारत की इन विविधताओं को समाप्त नहीं कर सकी ।
आशुतोष वार्ष्णेय अपनी पुस्तक “Battles Half Won” में लिखते हैं कि भारतीय लोकतंत्र ने असंभव को भी संभव कर दिया है | जो लोग सदियों से दबे कुचले पिछड़े थे, उन्हें एक दलित महिला मायावती ने चुनाव का महत्व इतना समझा दिया, कि अब वे शिक्षित माध्यम वर्ग की तुलना में कहीं अधिक बड़ी बड़ी संख्या में मतदान करते हैं |
विगत अनेक वर्षों से आम तौर पर भारत का सर्वसाधारण व्यक्ति जाती के आधार पर मतदान करता दिखाई देता रहा | लेकिन भाजपा की अद्भूत जीत ने इस ट्रेंड को थोडा बहुत कमतर होने का संकेत दिया | शायद यही कारण हैं कि पटेल समाज को आरक्षण के नाम पर एकजुट कर पुनः जाति के आधार पर मतदान को प्रेरित करने की राजनीति इस सारी कवायद का उद्देश्य हो?
योजनाबद्ध हिंसा और उस पर नीतीश की त्वरित टिप्पणी -
आरक्षण को लेकर पटेल समुदाय द्वारा किये जा रहे आंदोलन ने हिंसक स्वरुप ले लिया | स्थिति यहाँ तक बिगड़ी कि उससे निबटने के लिए सेना की मदद लेना पड़ी | बुधवार को अहमदाबाद के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में सेना ने पांच अलग-अलग मार्गों पर फ्लैग मार्च किया।
सेना की एक टुकड़ी ने चांदखेड़ा, आरटीओ सर्किल और गांधी आश्रम क्षेत्रों में किया, वहीं एक और फ्लैग मार्च शहर के पूर्वी भाग में बकरोल सर्किल, वस्त्राल सर्किल, निकोल, बापा सीताराम चौक, सरदार चौक और ठक्करबापा नगर मार्ग पर आयोजित किया गया।
तीसरा फ्लेग मार्च शहर के पश्चिमी भाग में शिवरंजनी, आईआईएम सर्किल, हेलमेट और सोला उच्च न्यायालय क्षेत्रों में आयोजित हुआ । चौथी कंपनी ने शाही बौघ, घेवर सर्किल, सरसपुर, सीटीएम और घोड़ा सर्किल क्षेत्रों में तथा पांचवें समूह ने वस्त्राल, राजेंद्र पार्क, हीरावाडी, मेमको और मेघनीनगर क्षेत्रों में फ्लेग मार्च निकाला । हर कंपनी में सेना के 150 जवान शामिल थे ।
स्मरणीय है कि मंगलवार को हिंसा के कारण रामोल, निकोल, बापू नगर, घाटलोडिया, ओढव, नारानपुरा, नरोदा, कृष्णा नगर आदि पुलिस स्टेशन सीमा के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाना पड़ा था । इसी प्रकार राज्य के कई प्रमुख शहरों और कस्बों में कर्फ्यू लगाना पड़ा था | इस हिंसा के कारण छह लोगों की जान भी गई है ।
जिस एक व्यक्ति को इस पूरी अराजकता और हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वह है हार्दिक पटेल | कल तक इसे कोई नहीं जानता था, लेकिन आज अकस्मात अहिंसक गांधी की जन्मस्थली में अंगारे पैदा कर देने वाला यह शख्स आखिर है कौन ?
# अहमदाबाद के सहजानंद कॉलेज से वाणिज्य स्नातक, 22 वर्षीय हार्दिक पटेल के पिता भरत भाई सबमर्सीबल पंपों का व्यापार करते हैं ।
# वह अहमदाबाद जिले में वीरमगाम शहर के पास स्थित चंद्रपुर गांव का रहने वाला है | मध्यवर्गीय परिवार के इस नौजवान ने बीकॉम फाइनल की परीक्षा में महज 50% अंक प्राप्त किये हैं।
# 2011 में हार्दिक पटेल सरदार पटेल सेवादल नामक एक संगठन का कार्यकर्ता बना, जिसका घोषित उद्देश्य था, गुजरात में दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को मिल रहे आरक्षण के खिलाफ आंदोलन शुरू करना और पाटीदार (पटेल) समाज के हितों की रक्षा करना |
# पाटीदार समाज के लिए आरक्षण की मांग हेतु जुलाई में गठित हुए पाटीदार अनमत आन्दोलन समिति (PAAS) का भी हार्दिक सक्रिय कार्यकर्ता रहा ।
# मेहसाणा में PAAS की पहली सफल रैली के बाद, गुजरात में पाटीदार समाज को आरक्षण की मांग को लेकर किये जा रहे आन्दोलन को धार देने के लिए 100 से अधिक सभाएं की गईं । मंगलवार को अहमदाबाद में अब तक की सबसे बड़ी रैली का आयोजन हुआ, जिसमें पचास हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया । सवाल उठना लाजिमी है, कि इस रैली के लिए फंड कहाँ से आया ? करोड़ों रुपये कैसे जुटाए गए ?
# हमेशा शर्ट और पतलून में रहने वाले हार्दिक पटेल ने अपने समर्थन का आधार बढाने के लिए फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का व्यापक उपयोग किया है। जहाँ फेसबुक पर उसके 5000 से अधिक फोलोअर हैं वहीं ट्विटर पर भी वह एक ट्रेंडिंग टॉपिक है।
# उसने स्वयं को इस कच्ची उम्र में ही परिपक्व राजनेता प्रदर्शित किया है | जब भाजपा ने उस पर कांग्रेस के हाथों में खेलने का आरोप लगाया तो उसने भाजपा के उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम रूपाला और गृह राज्य मंत्री रजनीकांत पटेल के साथ की अपनी फोटो प्रसारित कीं | इतना ही नहीं तो एक तस्वीर में, वह विहिप नेता प्रवीण तोगड़िया के साथ भी दर्शाया गया है।
# हाल ही में एक प्रोमोशनल वीडियो में उसे बंदूक के साथ खेलता दर्शाया गया है जिसका विषय है ”आग की लपटों में उभरता एक सुपर हीरो" ।
# 2014 के लोकसभा चुनाव में वह आम आदमी पार्टी (आप) का मुखर समर्थक था | उसने स्पष्ट घोषणा की है कि वह 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबक सिखाएगा ।
जहाँ एक ओर अपनी रैली में हार्दिक पटेल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की तारीफों के पुल बांधे वहीं दूसरी गुजरात में हुई हिंसक घटनाओं के तुरंत बाद नीतीश कुमार ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा - पहले अपना गुजरात तो संभालो, बिहार में जंगलराज की बात बाद में करना | जुगलबंदी स्पष्ट है | जैसे बीपी सिंह ने रामजन्मभूमि आन्दोलन के जबाब में भारतीय राजनीति के वृक्ष पर मंडल की विषबेल चढ़ाई थी, बैसे ही क्रियाकलाप एक बार फिर दोहराए जा रहे हैं |
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