व्यापम किसका ? शिवराज का या दिग्गी का ?

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मध्यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस नेता और पूर्व मु्‍ख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस शासनकाल में तो तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सिगरेट की पर्चियों पर लिख कर नियुक्तियां कर दिया करते थे । शिवराज ने आरोप लगाया कि पुराने राजा महाराजा डरे हुए हैं कि एक सामान्य परिवार से आने वाला शख्स इतने दिनों से सीएम कैसे है। शिवराज ने कहा कि उनके रहते कांग्रेस की दाल नहीं गलने वाली।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के राज में शिक्षकों की भर्ती के लिए कोई परीक्षा नहीं होती थी। हमारी सरकार ने भर्ती की पूरी प्रक्रिया को बदला और इसे पारदर्शी बनाया। इस प्रकिया के तहत जिसने भी कोई गड़बड़ी की तो वो पकड़ा गया।

स्मरणीय है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान पूर्व में भी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को ‘जन्मजात षड्यंत्रकारी’ बता चुके हैं।

यह बयान मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस निर्णय के बाद आया है जब उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में विभिन्न विभागों में हुई सभी नियुक्तियों की जांच के सख्त निर्देश जारी किए हैं। मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने मुख्य सचिव को जनवरी 2016 तक हर हाल में इस मामले की रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इस रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट की मॉनीरिंग में जांच होगी।

गुरुवार को हाईकोर्ट ने रीवा निवासी मनसुखलाल सराफ की जनहित याचिका पर यह महत्वपूर्ण आदेश सुनाया। इसके जरिए 1998 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की नोटशीट के आधार पर अरुण कुमार तिवारी नामक व्यक्ति की जल संसाधन विभाग में सब इंजीनियर बतौर हुई नियुक्ति रद्द कर दी गई।

हाईकोर्ट ने न केवल अनुचित नियुक्ति रद्द करने का आदेश सुनाया बल्कि मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे इस मामले में नोटशीट से लेकर कैबिनेट के निर्णय तक समूची प्रक्रिया की बारीकी से पड़ताल सुनिश्चित करें। ऐसा इसलिए क्योंकि यह मामला केवल नियम विरुद्घ अवैध नियुक्ति का ही नहीं, बल्कि उसे सही साबित करने के लिए तिकड़म भिड़ाए जाने से संबंधित है। लिहाजा, मुख्य सचिव क्रिमनल केस दर्ज कराने की प्रक्रिया भी पूरी कराने स्वतंत्र हैं। वे इस मामले के साथ-साथ अन्य विभागों में गलत नियुक्तियां पाए जाने पर उनकी समग्र जानकारी हाईकोर्ट में पेश करेंगे।

दैनिक वेतनभोगी थे तिवारी
इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से उपमहाधिवक्ता समदर्शी तिवारी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि सब इंजीनियर बनाया गया अरुण कुमार तिवारी पूर्व में नगर परिषद मऊगंज में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी था। इस नियुक्ति के झमेले में आने पर वह वह हाईकोर्ट की शरण में आया था। 1997 में हाईकोर्ट की एकलपीठ ने उसकी याचिका ठोस आधार न होने के कारण खारिज कर दी थी। इसके बावजूद अगले ही वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपनी नोटशीट के जरिए पूर्व दैवेभो को सीधे सब इंजीनियर बनवा दिया।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ साथ सम्पूर्ण भाजपा संगठन ने भी नियुक्ति मामले में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। प्रदेश के अलग-अलग संभागों में पार्टी के बड़े नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दिग्विजय सिंह पर आरोपों की झड़ी लगा दी । ग्वालियर में स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि, व्यापम के सरगनाओं ने दिग्विजय से गुरु ज्ञान लिया, जिससे योग्य लोगों को नौकरियां नहीं मिल पाई।  है। वहीं सागर में परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा है कि, कांग्रेस में नैतिकता है तो, दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्रदर्शन करे और सीबीआई जांच की मांग भी करें। बीजेपी का चुनाव प्रचार करने उज्जैन पहुंचे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह ने भी दिग्विजय सिंह को आड़े हाथों लिया है।

इन सब गहमागहमी में जनता इन्तजार कर रही है कि क्या दिग्विजय सिंह के खिलाफ कोई जांच होगी ? उन्हें न्यायालय के दरवाजे तक पहुंचाया जाएगा ? या फिर सारा मामला टांय टांय फिस्स हो जाएगा ?
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