फिल्म समीक्षा - दृश्यम


फिल्म दृश्यम को दर्शक किस रूप में लेंगे, यह बहुत कुछ उनपर ही निर्भर है | फिल्म की कहानी जीतू जोसेफ के मनोरंजक थ्रिलर उपन्यास 'The Devotion of Suspect X’ पर आधारित मलयालम फिल्म का रीमेक है | लेकिन फिल्म, हास्य फिल्म है अथवा पारिवारिक, थ्रिलर है अथवा करुण, यह समझना बूझना बहुत कुछ दर्शकों पर ही निर्भर है | फिल्म में तो इन सबकी खिचडी बनाई गई है ।

विजय सालगांवकर गोवा के एक छोटे से कसबे का केबल ऑपरेटर है | वह एक ऐसा व्यक्ति है जो छोटी छोटी चीजों में खुशी ढूँढता है | अपने परिवार के साथ रहता है और अपनी बक्से जैसी छोटी सी दूकान में डीवीडी से चिपका रहता है | अपने व्यवसाय के कारण अधिकांशतः वह रात को घर से बाहर रहता है, व उस दौरान उसका लेंड लाईन भी डिस्कनेक्ट होकर खूंटी पर टेंगा रहता है | मोवाईल वह गरीब रख नहीं पाता | कुल मिलाकर अत्यंत साधारण जीवन जीने वाला विजय दिल का साफ़ और दूसरों की मदद को तत्पर रहने वाला आम इंसान है, जिसके चलते इस छोटे से कसबे के सब लोग उसके मित्र हैं और उसे पसंद करते हैं |

विजय की दुनिया में उस समय जलजला आ जाता है, जब उसकी पत्नी और बड़ी बेटी एक छुटपुट दुर्घटना में फंस जाती हैं | और हमारा यह चौथी फ़ैल नायक एक गलती को सही करने के लिए दूसरी गलती करता जाता है | स्थानीय भ्रष्ट पुलिस अधिकारी गायतोंडे उसका अपराध साबित करने के लिए जमीन आसमान एक कर रहा होता है किन्तु तब फिल्म में तेजतर्रार पुलिस महानिरीक्षक मीरा देशमुख का प्रवेश होता है | 

निर्देशक निशिकांत कामत फिल्म के प्रारम्भिक चालीस मिनिट केवल प्रांतीय जीवन के फिल्मांकन में खपा देते हैं, फिर भी सालगांवकर परिवार को आदर्श माध्यम वर्गीय परिवार के रूप में प्रदर्शित करना उनके बूते के बाहर रहता है । इसलिए फिल्म का फर्स्ट हाफ निश्चय ही दर्शकों को उबाऊ प्रतीत होगा | लेकिन यह कमी इंटरवेल के बाद दूर हो जाती है, जब फिल्म कहीं अधिक मनोरंजक हो जाती है |

विजय की पत्नी और दो बच्चों की मां के रूप में ग्लेमरस श्रिया सरन की भूमिका बेहद अटपटी है | दोनों बेटियों ने अपने हिस्से का काम बखूबी अंजाम दिया है | फिल्म की जान है विजय और गायतोंडे की शत्रुता, जो लगातार रोचक हलचल मचाये रखती है | 

हाँ, आपको फिल्म देखते समय यह हैरानी जरूर होगी कि जो विजय अपने डीवीडी पर फिल्म देखने के चलते अपना लेंडलाईन बंद रखता है और आफत में फंसे उसके परिवार के पास उससे संपर्क करने का भी कोई माध्यम नहीं होता, वही लापरवाह विजय अपने परिवार के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है | खैर इस प्रकार की हैरत अंगेजी न हो तो इसे हिन्दी फिल्म जगत कौन कहेगा ?

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