"रस्सी जल गई पर बल नहीं गया" कांग्रेस की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता सुरेश हिन्दुस्थानी का आलेख


वर्तमान में भारत की संसद में लगातार जारी विरोधाभास में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं। अपने अपने पक्ष पर फेविकोल की तरह चिपके दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी टस से मस नहीं हो रहे है। अगर दोनों इसी प्रकार अड़े रहे तो संसद सत्र के नाम पर हो रही यह अलोकतांत्रिक कार्यवाही कैसे थमेगी ? 

अब इस मामले में तेरी भी जय जय और मेरी भी जय जय का रास्ता ही निकल कर सामने आये तो बात बने । हो सकता है कि सरकार कांग्रेस के अडिय़लपन को खत्म करने के लिए कुछ मांग मानकर उसका मुंह बन्द कर दे । कांग्रेस चाहती भी यही है, क्योंकि देश की जनता संसद ठप करने के मुद्दे पर अब कांग्रेस को सवालों के घेरे में खड़ा कर रही है। खासकर सोशल मीडिया पर तो कांग्रेस को ही निशाना बनाया जा रहा है।

संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने अपने अहंकार का प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस द्वारा संसद के बाहर दिया जा रहा धरना, वास्तव में यह साबित करने के लिए काफी है कि कांग्रेस सरकार को काम नहीं करने दे रही। इन तीन दिनों में जितना काम हो सकता था, कांग्रेस ने उसका नुकसान किया है। कांग्रेस वर्तमान में ऐसे चौराहे पर खड़ी दिखाई दे रही है, जहां से बाहर निकलने के सारे रास्ते बन्द से दिखाई देते हैं।

जहां तक सत्ता पक्ष का सवाल है तो उसकी सबसे बड़ी चिंता चुनाव के समय जनता से किये गए वायदों को पूरा करने की है | क्योंकि चुनाव से पूर्व किए वादों पर एक प्रकार से देश की जनता की मुहर लगी होती है। अर्थात लोकतंत्र में चुनाव पूर्व किये गए वायदों को पूरा करना सत्ता पक्ष की नैतिक जिम्मेदारी होती है | सत्ता पक्ष का आचरण और व्यवहार, कितना गलत है और कितना सही, यह तो भविष्य तय करेगा | किन्तु वर्तमान में यह साफ़ दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में भी पूरी तरह फ्लॉप हो रही है | आज कांग्रेस की भूमिका केवल विरोध के लिए विरोध करने वाली पार्टी की बनती जा रही है । फिर चाहे उससे देश का नुकसान ही क्यों न हो। कांग्रेस ने वर्तमान में संसद को पूरी तरह से ठप कर दिया है, उससे देश को व्यर्थ में ही नुकसान हो रहा है। 

लोकसभा में उठाया जा रहा सुषमा स्वराज का मुद्दा इतना बड़ा नहीं है, जितना कांग्रेस द्वारा प्रचारित किया जा रहा है। सुषमा स्वराज ने किसी प्रकार का कोई आर्थिक भ्रष्टाचार नहीं किया। केवल कांगे्रस के राज में फले फूले ललित मोदी को अपनी बीमार पत्नी को देखने जाने की स्थिति में भारत की अनापत्ति ब्रिटेन को दी है । इस छोटे से मामले को लेकर कांग्रेस ने पूरी संसद ठप करने का औचित्य समझ से परे है।

जहां तक मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ संबंधी मुद्दों की बात है, तो मध्यप्रदेश का व्यापम मामला केन्द्रीय जांच ब्यूरो अपने हाथ में ले चुका है। जाँच के परिणाम आने के पूर्व ही किसी को दोषी करार देना भी जनता के गले नहीं उतर रहा | जो गलत होगा, उसको सजा मिलेगी ही। इन्हीं कारणों से आज कांग्रेस पार्टी का सोशल मीडिया पर कितना उपहास उड़ाया जा रहा है, उसका संभवतः कांग्रेसी नेताओं को अहसास भी नहीं होगा। सोशल मीडिया पर हर दस में से आठ पोस्ट कांग्रेस के विरोध में ही होती हैं। वर्तमान में कांग्रेस के मामले में यह कहावत पूरी तरह से चरितार्थ होती दिखाई दे रही है कि 'रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।

कांग्रेस की यह सारी कवायद वास्तव में राहुल गांधी को नेता के रूप में स्थापित करने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। नेता के रूप में अभी तक हर बार लगभग असफल प्रमाणित हुए राहुल गांधी इस बार कितने सफल होंगे, यह तो समय ही बताएगा । 

वर्तमान में तो संसद में चल रहे गतिरोध को समाप्त करना ही कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों की प्राथमिकता होना चाहिए | सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ही यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि देश में लोकतंत्र न केवल कायम रहे, बल्कि शक्ति संपन्न भी बने | अन्यथा देश को होने वाले नुकसान की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

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