हमारी अर्थव्यवस्था का आधार - भारतीय परिवार - प्रियंका कौशल

कुछ समय पूर्व अमेरिका में जब इस बात का कारण ढूंढा गया कि क्यों अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय बच्चे हर क्षेत्र में अव्वल आ रहे हैं। वे अमेरिकी बच्चों को कहीं पीछे छोड़कर हर उपलब्धि अपने नाम कर रहे हैं, तो जो उत्तर सामने आया, वह अमेरिकियों के लिए चौंकाने वाला था। दरअसल भारतीय मूल के बच्चों का पढ़ाई के साथ हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन के पीछे का एक कारण उनका परिवार भी था। भारतीय बच्चों को पता होता है कि जब वे स्कूल से घर जाएंगे तो उनके माता-पिता उन्हें प्यार देने के लिए उपलब्ध होंगे। जबकि अमेरिकी बच्चों का एक तनाव यह भी है कि जब वे घर पहुंचेंगे तो पता नहीं उनकी मां या पिता दोनों एक साथ घर में मिलेंगे या नहीं। कहीं आज पिता किसी नई मां से, या मां किसी नए व्यक्ति का परिचय पिता के रूप में तो नहीं कराएंगे। टूटते परिवार के अवसाद में अमेरिकी बच्चों की प्रतिभा प्रभावित हो रही है।

एक तमिल कहावत है-“अन्नायुम, पिथावुम, मुभारि देवम्” अर्थात् माता-पिता सर्वप्रथम ज्ञात देवता हैं। भारतीय मान्यताओं में मृत्यु के पश्चात् भी माता-पिता से संबंध भंग नहीं होता। मृत्यु के बाद वे पूर्वज बन जाते हैं और पुत्र-पौत्र अपने पूर्वजों के प्रति श्राद्ध करते हैं। कहने का आशय यह कि भारतीय संदर्भ में किसी भी संबंध में दायित्वबोध का भाव रहता है। जबकि पाश्चात्य संस्कृति में अधिकारों की बात पहले की जाती है। हमारे यहां संबंध परस्पर कर्त्तव्यपूर्ति पर निर्भर करता है। माता-पिता का संतान के प्रति, संतान का माता-पिता के प्रति। कर्त्तव्यों के बोध में अतिथि और प्रकृति भी शामिल है। 

जबकि पाश्चात्य दृष्टिकोण कर्त्तव्यों के निर्वहन से ज्यादा अधिकारों की प्राप्ति में विश्वास रखता है। माता-पिता के अधिकार, बच्चों के अधिकार, जानवरों के अधिकार इत्यादि। यही कारण है कि अमेरिका में 51 प्रतिशत गृहस्थी में केवल माता या पिता ही मुखिया होता है, क्योंकि उनका संबंध विच्छेद हो चुका होता है। केवल 20 फीसदी अमेरिकी परिवारों में माता-पिता व बच्चे साथ-साथ रहते हैं। बीबीसी के ताजा सर्वे के मुताबिक अमेरिका और इंग्लैंड में प्रति तीन में से एक व्यक्ति अकेला रहता है। 28 फीसदी दंपत्ति संतानहीन रहते हैं। 55 फीसदी अमेरिकियों का अपने पहले विवाह के बाद संबंध विच्छेद हो जाता है। फिर वे नया जीवनसाथी तलाशते हैं। लेकिन दूसरे विवाह के भी स्थायी रहने की कोई गांरटी नहीं होती यही कारण है कि 67 फीसदी अमेरिकी अपने दूसरे विवाह के बाद भी संबंध विच्छेद कर लेते हैं।

परिवारों के टूटने के कारण लोग अधिक स्वार्थी हो गए हैं। लोग दायित्वहीन और अपव्ययी जीवनशैली के कारण अपने परिवार का ही नहीं, बल्कि देश का आर्थिक ढांचा ही तोड़ बैठे हैं। 1960 में अमेरिका की बचत राष्ट्रीय बचत की 80 फीसदी थी। जबकि 2006 आते-आते इसका प्रतिशत बिलकुल उलट हो गया। परिवारों पर ऋण भार बढ़ गया। इसी कारण 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ। आज अमेरिकी परिवार, जो कभी 120 करोड़ क्रेडिट कार्ड रखते थे, वे अब तीन ट्रिलियन डॉलर या 180 लाख करोड़ के ऋण से दबे हैं।

जबकि भारतीय परिवारों में गृहणियां बचत में न केवल बड़ी भूमिका निभाती हैं, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों को बचत के लिए प्रोत्साहित भी करती हैं। घरों में छोटे बच्चों के गुल्लक लाना बचत की सीख का ही परिणाम होता है। देश में उदारवाद के पहले तैयार की गई भगवती रिपोर्ट भी कहती है कि भारतीय महिलाएं “कंजूस” होती हैं। (रिपोर्ट में STINGY शब्द का उपयोग किया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ कंजूस होता है)। उनकी छोटी बचत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बड़ा रोल निभाती है। देश के विकास परिवारों में हो रही छोटी-छोटी बचत का बड़ा महत्व होता है। परिवारों की बचत का ही परिणाम था कि भारत में आर्थिक मंदी की छाया नहीं पड़ी, क्योंकि हमारी गृहलक्ष्मी केवल नाम की नहीं, बल्कि असल में लक्ष्मी का कर्त्तव्य निभाती हैं। हमारे राष्ट्र में परिवार सबसे मजबूत इकाई के रूप में कार्य कर रहा है। इसलिए हमें अपनी परिवार व्यवस्था पर गर्व करना चाहिए और यथासंभव परिवार में प्रेम बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील भी रहना चाहिए।

प्रियंका कौशल 
स्वतंत्र पत्रकार,
रायपुर 
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