पाकिस्तान और बंगलादेश से आये एक करोड़ हिन्दू शरणार्थियों को मिलेगी अब भारतीय नागरिकता |

Bengali Hindu Refugees.

साभार - श्री उपानंद ब्रह्मचारी -

अंततः 7 सितम्बर 2015 को भारत सरकार ने यह निर्णय ले ही लिया कि बंगलादेश, पाकिस्तान आदि पडौसी मुल्कों से आये हिन्दू शरणार्थी और मुस्लिम घुसपैठियों में स्पष्ट अंतर है | हिन्दू इन पडौसी देशों में पीड़ित होकर जान बचाकर भारत आते है, क्योंकि उनको भारत से प्यार है, वे भारत को अपना मानते हैं | जबकि घुसपैठिये मुस्लिम भारत को नुक्सान पहुंचाने, उपद्रव करने, यहाँ के संसाधनों पर कब्जा जमाने की नीयत से आते हैं | 

भारत सरकार ने आज बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये अल्पसंख्यक शरणार्थियों को मानवीय आधार पर, उनके वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी इस देश में रहने की अनुमति देने का फैसला किया।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि “केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आये वहां के अल्पसंख्यक वर्ग के इन बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिकों को मानवीय आधार पर छूट देने का फैसला किया है | वे भले ही बिना उचित दस्तावेजों भारत आये हों, अथवा वीसा की अवधी समाप्ति के बाद भी यहाँ रह रहे हों |”

पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946 के तहत सरकार ने इस सम्बन्ध में राजपत्र में दो अधिसूचनाएं जारी की हैं | 

pbi

इन अधिसूचनाओं से ऐसे हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, पारसी और बौद्ध समुदाय के लोगों को लाभ होगा, जो धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न के डर से भारत में आने को विवश हुए हैं | समाचारों के अनुसार बांगलादेश और पाकिस्तान में नारकीय जीवन जी रहे, वहां के ये अल्पसंख्यक नागरिक बड़ी संख्या में भारत में शरण लिए हुए हैं | या तो वे बिना किसी पासपोर्ट अथवा अन्य वैधानिक दस्तावेज के भारत में प्रविष्ट हुए थे, अथवा उनके दस्तावेज की वैधता समाप्त हो जाने के बाद भी भारत में रुके हुए थे ।

अधिकारियों का कहना है कि इन देशों से इस प्रकार भारत आये अल्पसंख्यक शरणार्थियों की सही संख्या का तो अनुमान करना कठिन है, किन्तु मोटे तौर पर माना जा रहा है कि कमसेकम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से करीब दो लाख हिंदू और सिख शरणार्थी भारत में रह रहे हैं ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पिछले साल मई में सत्ता में आने के बाद से ही, इन शरणार्थियों के लिए लॉन्ग टर्म वीजा (एलटीवी) जारी करने सहित कई कदम उठाए गए हैं।

पिछले साल नवंबर में भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इन शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने के नियमों को सरल करने वाले कई कदमों को मंजूरी दी थी | इनमें एक हलफनामे के आधार पर ही नागरिकता छोड़ने की घोषणा को मान्य करना, और भारत का नागरिक बनने का आवेदन प्रस्तुत करना भी शामिल था | ऐसे बच्चों को नागरिकता प्रदान करने का भी निर्णय लिया गया था, जिनके माता पिता पासपोर्ट के आधार पर भारत में आये थे ।

इस वर्ष अप्रैल में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आवेदन करने व विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इन आवेदनों का त्वरित निराकरण करने के लिए ओनलाईन एलटीवी सिस्टम भी प्रारम्भ किया था | यह निर्णय पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में स्थायी रूप से बसने के इरादे से आए हिंदुओं और के सिखों के सम्मुख आई कठिनाईयों को ध्यान में रखकर उठाये गए हैं ।

Hindu Refugees from Pakistan.

जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और जयपुर जैसे शहरों में 400 पाकिस्तानी हिन्दू परिवार “शरणार्थी बस्तियों” में रह रहे हैं। बांग्लादेश से आये हिन्दू शरणार्थियों ज्यादातर पश्चिम बंगाल, असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में रहते हैं।

बंगाली हिंदू शरणार्थियों और बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम घुसपैठियों पर शोध करने वाले संगठन Campaign Against Atrocities on Minorities in Bangladesh (CAAMB) के प्रमुख व्यक्ति तथा पश्चिम बंगाल भाजपा के राज्य शरणार्थी सेल के कार्यकारी सदस्य प्रो मोहित रॉय ने इसे मोदी सरकार का लेंड मार्क निर्णय बताया है | भारतीय नागरिकता मिल जाने से हिंदू शरणार्थियों की दुर्दशा का अंत होगा | उन्होंने मांग की कि भारत के सभी मुस्लिम घुसपैठियों को तत्काल उनके मूल देशों को वापस भेजा जाना चाहिए ।

हिन्दू शरणार्थी के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठनों के अनुसार बांग्लादेश से असम और पश्चिम बंगाल में आये लगभग एक करोड़ बंगाली हिंदू शरणार्थियों को इस समय अत्यंत कष्टकर परिस्थितियों में “नजरवंदी शिविरों” में रहना पड़ रहा है | इन संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि अब इन बंगाली हिंदू शरणार्थियों को निश्चय ही लाभ होगा, तथा उन्हें अपमानजनक 'डी' मतदाता नहीं माना जायेगा ।

भाजपा विधायक दिलीप पॉल का कहना है कि एक ओर तो हिंदू बंगाली बांग्लादेश में सामाजिक अन्याय और धार्मिक उत्पीड़न के शिकार होकर जान बचाकर भारत आये थे, किन्तु यहाँ भी उन्हें 'डी' ब्रांडेड (संदिग्ध) मतदाता बताकर गिरफ्तार कर लिया जाता था | उन्हें नजरबंदी शिविरों में भेजकर वही बर्ताव किया गया जो कभी नाजी हिटलर ने यहूदियों के साथ किया था । असम में सत्ता पक्ष हो या विपक्ष किसी ने भी घुसपैठियों और शरणार्थीयों के बीच के भेद पर ध्यान नहीं दिया । यहाँ तक कि 10 वर्ष सत्ता में रही अगप द्वारा भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया, जोकि उनकी महान भूल थी । जबकि कांग्रेस तो सदा से घुसपैठियों के साथ ही खडी नजर आई है । 

इसके परिणामस्वरुप, शरणार्थी पुलिस उत्पीड़न का शिकार होते रहे । दिसपुर से कोई स्पष्ट दिशा निर्देश के अभाव में हिंदू बंगाली निशाना बनते रहे और नजरबंदी शिविरों में भेजे जाते रहे | मनमर्जी से पुलिस कार्यवाही का संचालन कर अनेक भारतीय नागरिकों को भी बराक घाटी में नजरबंदी शिविरों में डाल दिया गया । हैलाकांडी के भाजपा नेताओं के पास पुलिस कार्रवाई की निंदा करने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था | लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती के समान ही थी | 

एक 102 वर्ष के वृद्ध रेपाती दास और उनकी पत्नी तितिलाबाला दास को भी 'डी' मतदाता बताकर राताबरी पुलिस स्टेशन ले जाया गया और फिर शिविर में डाल दिया गया । कारण केवल इतना था कि उनके 1966 विरासत दस्तावेज में Repati das के स्थान पर तकनीकी त्रुटिवश Rebati अंकित हो गया था । 

ऐसा ही एक और उदाहरण देखिये -

'D – voter' means 'Doubtful Voter' – for which Bengali Hindus are kept in detention and next stage is deportation to Bangladesh.

आशा की जाना चाहिए कि केंद्र सरकार के इस नए कदम से इन दुखियारों के दुःख भरे दिन समाप्त होंगे |

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें