भारतीय उप महाद्वीप में स्थाई शान्ति का एक ही उपाय |

सीमा पर लगातार हो रहे संघर्ष विराम के उल्लंघन और पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा भारत के आवासीय क्षेत्र में की जा रही अकारण गोलाबारी की घटनाओं को देखते हुए 1 सितम्बर को भारत के सेना प्रमुख जनरल दलवीर सिंह ने सेना को सीमित और अल्पकालीन युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा |

इस बयान से बौखलाए पाकिस्तानी रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने बडबोलापन दिखाते हुए कहा कि पाकिस्तान सीमित और लम्बे किसी भी प्रकार के युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार है | उन्होंने डींग मारते हुए कहा कि 65 के भारत पाक युद्ध में भी पाकिस्तान ने भारत के लाहौर पर कब्जा जमाने को नाकाम कर दिया था, इसके साथ साथ अब तो विगत 50 वर्षों में पाकिस्तान की युद्ध क्षमता और अधिक बढ़ चुकी है |

जबकि सचाई यह है हर युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा है | 65 के युद्ध में भी भारतीय फौजें कराची के एकदम नजदीक जा पहुंची थीं | अगर अंतर्राष्ट्रीय दबाब में संघर्ष विराम न हुआ होता तो लाहौर फतह हो चुका था | इसी प्रकार ख्वाजा आसिफ 1971 को तो एकदम भूल ही गए जब बंगलादेश में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना नायकों के सम्मुख घुटने टेककर आत्म समर्पण किया था |

इतना ही नहीं तो जब भी पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध किया है, उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हुई है | बैसे तो युद्ध के कारण दोनों ही देशों का आम जनजीवन प्रभावित होता है | महंगाई बढ़ती है | अमीर को और अमीर होने का अवसर मिलता है, तो अमीर और गरीब की खाई और चौड़ी होती है | किन्तु अपनी विराट संरचना के चलते भारत तो इस भार को जैसे तैसे सह लेता है | किन्तु पाकिस्तान ? न पिद्दी न पिद्दी का शोरबा ! अगर इस बार उसने युद्ध का जोखिम उठाया तो उसके कमसेकम तीन टुकडे अवश्य हो जायेंगे | पख्तून आन्दोलन ने इस सुगबुगाहट को पहले ही बढ़ा रखा है |

फिर क्या पाकिस्तानी हुक्मरान एकदम मूर्ख हैं, जो लगातार भारत पाकिस्तान के बीच संघर्ष की आग में घी डालकर युद्ध की बात करते और सोचते हैं ? दरअसल पाकिस्तान में सेना और राजनेता जब भी अपनी कुर्सी पर खतरा महसूस करते हैं, पाकिस्तान की अंदरूनी समस्याओं से आम जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं, उन्हें भारत के साथ युद्ध ही बचाव का एकमेव मार्ग नजर आता है | पाकिस्तान का जन्म ही भारत किंवा हिन्दूओं के प्रति नफ़रत की बुनियाद पर हुआ है | धर्मान्ध और अशिक्षित जन सामान्य को बरगलाने के लिए ही हमेशा युद्ध की दिशा में पाकिस्तान बढ़ता रहा है और एक बार फिर बढ़ता दिखाई दे रहा है |

इसके विपरीत औसत भारतीय शांतिप्रिय भी है और सहिष्णु भी | लेकिन सहन करने की भी एक सीमा होती है | आखिर महाभारत भी तो इसी जमीन पर हुआ था | दुर्योधन ने पांडवों को पांच गाँव क्या, सुई की नोक बराबर भी जमीन न देने की जिद ठानी, तो विवश होकर पांडवों को भी सर संधान करना ही पड़ा | इतिहास फिर करवट बदल रहा है | 

पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने को तैयार नहीं | भारत में लगातार जीवित पकडे जा रहे पाकिस्तानी आतंकी इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि वह छद्मयुद्ध चलाये जा रहा है | और ख्वाजा आसिफ के ताजातरीन बयान से भी स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान एक और युद्ध चाहता है | ऐसी स्थिति में भारत को विवश होकर समवेत स्वर गुंजाना ही होगा – युध्यस्व भारत | और शायद इस ध्वंस से ही सृजन की नव कोंपल जन्म लेगी | भारतीय उप महाद्वीप में स्थाई शान्ति भी तभी आयेगी |


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