पूर्ववर्ती कांग्रेसनीत सरकार ने बिगाड़े थे पडौसी देशों के साथ सम्बन्ध |


1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपनी ईसाई धर्मावलम्बी पत्नी सोनिया जी के साथ नेपाल गए | उस समय उन्हें काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश व दर्शनों की अनुमति नहीं दी गई थी, क्योंकि वहां केवल हिन्दू उपासक ही जा सकते हैं | परिणाम स्वरुप भारत ने नेपाल के साथ तेल, गैस, अनाज, परिवहन व आवागमन प्रतिबंधित कर दिया | नेपाल में जनाक्रोश का तीव्र आवेग उमड़ा और चीन ने अवसर को भुना लिया | भारत ने मदद बंद की तो चीन ने प्रारम्भ कर दी और देखते ही देखते विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल हिन्दू वहुल भारत से कटता चला गया |

कुछ ऐसी ही मूर्खता पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार ने भूटान के मामले में भी की थी | पढ़िए उन दिनों 19 जुलाई 2013 को जनजनजागरण में प्रकाशित के.विक्रम राव का एक लेख “दोस्त को दुश्मन ऐसे बनाते हम” |

शुक्र मनाईये कि दो हजार वर्षों से चली आ रही भारत और भूटान की मित्रता बच गई, अन्यथा सरकार ने तो होमवर्क पूरा कर लिया था कि बौद्ध भूटान भी हिन्दू नेपाल की भांति हमसे दूर हो जाए | और विश्व का सबसे छोटा लोकतंत्र सबसे घणी आवादी वाले गणराज्य से कट जाए | फिलहाल चीन से लुकाछिपी खेलने वाले प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले दोरजी को पराजित कर भूटानी जनता ने बता दिया है कि कोई भारत हेतैषी नेता ही इस हिमालयी राष्ट्र पर राज्य करेगा |

यदि वहां संसद के द्वितीय आम चुनाव का जनादेश भिन्न होता तो पूर्वोत्तर की सात बहनों के साथ भारत का जमीनी सम्बन्ध छिन्न होना तय सा हो जाता | तब सिक्किम, अरुणांचल,असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय और नागालेंड पर चीन का दबाब बढ़ जाता | यूं भी माओ जे डाँग का सपना चीन ने जीवित रखा है | माओ ने कहा था कि तिब्बत पर लाल सेना ने 1949 में कब्जा कर चीन से अंग्रेजों द्वारा काटी गई हथेली तो दुबारा जोड़ ली, बस अब पांच उंगलियाँ जोड़ना बाक़ी है | इनमें अंगुष्ठ नेपाल, तर्जनी भूटान, मध्यमा अरुणांचल प्रदेश, अनामिका लद्दाख और कनिष्ठा सिक्किम आते हैं |

भूटान के नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री शेरिंग टोपगे अपने राजनेता पिता के समय से ही भारत के निकट रहे हैं | उन्होंने अमेरिका के पीट्सवर्ग विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा लेते हुए प्रतिष्ठित हार्वर्ड विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन की स्नातकोत्तर डिग्री ली है, मगर अपने पहाडी गाँव में सीखी तीरकमान चलाने की विद्या को संजोये रहे | सेंतालीस वर्षीय प्रधानमंत्री शासकीय कर्मचारी रहे हैं |

सवाल यह है कि आखिर भारत सरकार ने गत मास ऐसा क्या किया कि भारत-भूटान रिश्तों में कटुता आ गई ? दरअसल समझौते के मुताबिक़ भारत भूटान को रियायती दर पर तेल और गैस आदि उपलब्ध कराता है | इस संधि की मियाद इस तीस जून को पूरी हो रही थी | संयोग से भूटान में इसी समय संसदीय निर्वाचन का पहला चरण शुरू हो गया | इस कारण संधि प्रक्रिया का नवीनी करण नहीं हो पाया | फिर क्या था, भारत के प्रधान मंत्री कार्यालय ने तेल मंत्रालय को कह दिया कि चूंकि भारत भूटान संधि नवीनीकृत नहीं हुई है, अतः भारतीय तेल निगम भूटान को तेल और गैस की सप्लाई बंद कर दे | इस मामले में भारत सरकार ने ज़रा भी विचार नहीं किया कि भौगौलिक रूप से नेपाल, तिब्बत और भारत से घिरे सात लाख की आवादी वाले भूटान का नागरिक तानाबाना इससे छिन्न भिन्न हो जाएगा | अतः चुनाव के कारण उसे महीने भर की मोहलत दे दी जाए ताकि नई निर्वाचित सरकार से संधि का नवीनीकरण किया जा सके |

उधर मतदान के समय प्रधानमंत्री थिनले की पार्टी डीपीटी ने अभियान चलाया कि सालाना मात्र पचास करोड़ की कीमत पर तेल और गैस उपलब्ध कराने की आर्थिक शक्ति भारत की नहीं रही, अतः भूटान की जनता त्राहि त्राहि कर रही है | पडौसी चीन तो इस मौके की तलाश में था ही | कोई पूछे भारत से कि एकाध महीने तक चंद करोड़ की मदद के रूप में यदि वह उदारता बरत लेता तो क्या बिगड़ जाता | भूटान की जनता को भड़कने का मौक़ा तो नहीं मिलता, क्योंकि शासकीय प्रवक्ताओं ने कहा भी था कि भूटान को सप्लाई बंद करने का आधार तकनीकी था | 

गौरतलब है कि कुछ इसी तर्ज पर आज से कोई पच्चीस वर्ष पूर्व (1987 में) भारत ने अचानक नेपाल के साथ यात्रा के साथ ही तेल, गैस, अनाज, परिवहन, आवागमन आदि की सप्लाई प्रतिबंधित कर दी थी और काठमांडो में भारतीय दूतावास ने विकराल जनाक्रोश देखा था | ऐसा कदम क्यों उठाया गया ? दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनकी ईसाई धर्मावलम्बी पत्नी सोनिया को काठमांडो के पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवेश और दर्शन की अनुमति नहीं दी गई थी, क्योंकि वहां केवल हिन्दू उपासक ही जा सकते हैं | हालांकि तब नेपाल नरेश वीरेन्द्र मेजबान थे, पर असहाय थे | बहरहाल जब भारत ने नेपाल की मदद बंद कर दी तो पडौसी चीन ने उसे मदद भेजी | भारत तभी से नेपाल से कटता चला गया और हिन्दू राष्ट्र नेपाल हिन्दू बहुल भारत का मित्र नहीं रहा |

गौरतलब है कि तिब्बत, नेपाल तथा सिक्किम के त्रिमार्ग पर स्थित भूटान भारत के लिहाज से बहुत ही संवेदनशील और भौगौलिक महत्व का है | 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान चीनी सेना भारत पर इसी रास्ते आक्रमण कर चुकी है | चीन भूटान नरेश को कई बार पेशकश कर चुका है कि वह बुम्बी घाटी को, जो भारत के सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) के समीप है, चीन को देदे, तो बदले में वह भूटान को पूर्वी तिब्बत का इतना ही भूभाग दे देगा | भारत के लिए बुम्बी घाटी आत्मरक्षा की दृष्टि से अत्याधिक सामरिक महत्व की है | यहीं बांगलादेश से सटी सीमा को चूजे का गला (चिकन नेक) कहते हैं | चीन की नजर इस पर इसीलिए है ताकि उसकी सेना पूर्वोत्तर भारत पर आसानी से कब्जा कर सके | बहरहाल नए प्रधान मंत्री शेरिंग टोपगे को तात्कालिक रूप से कुछ मसले निबटाने होंगे |

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