अब केंद्र की बारी है, नेताजी से सम्बंधित दस्तावेज अविलम्ब सार्वजनिक किये जाएँ |

(1944 में जापानी प्रधानमंत्री हिदेकी तोजो के साथ आजाद हिन्द फ़ौज की एक परेड में सलामी लेते सुभाष चंद्र बोस)

स्मरणीय है कि अभी तक सरकारी तौर पर यही माना जाता रहा है कि 18 अगस्त, 1945 को ताईहोकू (ताईवान) में हुई एक विमान दुर्घटना में नेताजी का निधन हो गया था। किन्तु शुक्रवार 19 सितम्बर को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के एक बयान ने सनसनी फैला दी है | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से संबंधित 64 वर्गीकृत फाइलों को सार्वजनिक करने के बाद कोलकाता पुलिस संग्रहालय में उन्होंने पत्रकारों के सम्मुख कहा कि इन रिपोर्टों के कुछ पन्नों को पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि अगस्त 1945 के बाद भी नेताजी सुभाष जिंदा थे । स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस का निधन 1945 में ताइवान में हुए कथित विमान हादसे में नहीं हुआ था | 

इसके साथ ही ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन किया है | अब केंद्र को भी चाहिए कि वह नेताजी से सम्बंधित उन 130 फाईलों को भी सार्वजनिक कर दे, जो उनके पास हैं | जब हमारे पास छुपाने को कुछ नहीं है, तो आप रिपोर्टों का खुलासा क्यूं नहीं करते ? मुझे लगता है कि पूरी दुनिया की दिलचस्पी इस रहस्य की तह तक पहुंचने में है । केंद्र के पास जो रिकोर्ड है, उनसे कई और अज्ञात कहानियों का खुलासा हो सकता है ।

जब उनसे नेताजी के लापता होने में जवाहर लाल नेहरू की भूमिका और गांधी परिवार के विषय में पूछा गया तो मुख्यमंत्री ने कहा कि वह किसी भी सबूत के बिना इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहतीं । लेकिन इन दस्तावेजों से इतना साफ़ है कि आजादी के बाद भी बोस परिवार की ख़ुफ़िया पुलिस द्वारा सख्त निगरानी होती रही । राज्य में आजादी के बाद 1967 तक कांग्रेस लगातार सत्ता में रही थी । अतः स्वाभाविक ही बोस परिवार की जासूसी का कलंक कांग्रेस को आज भी परेशान करने जा रहा है |

पिछले 70 सालों में नेताजी को लेकर अनेक प्रकार की अफवाहें उड़ती रही है | लेकिन कोई भी सरकार उनसे जुडी गोपनीय फाईलें सार्वजनिक करने का फैसला नहीं कर पाई | अब जब आयरन लेडी के नाम से ख्यात ममता बैनर्जी यह कर ही दिया है, तो पहले से संकटग्रस्त कांग्रेस के सम्मुख नई मुसीबत खडी हो गई है | 

नेताजी के परिजनों ने आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल के प्रथम मुख्यमंत्री विधान चन्द्र रॉय तथा बाद में मुख्य मंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर रॉय के कार्यकाल में नेताजी से सम्बंधित अनेक फाईलें नष्ट कर दी गईं | इन मुख्यमंत्रियों ने यह कार्य तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के कहने पर किया | इतना ही नहीं तो 1967 तक इंटेलीजेंस ब्यूरो के 14 अधिकारी भी लगातार नेताजी के परिवार की जासूसी करते रहे | जनता इन सब घटनाओं से यही निष्कर्ष निकल रही है कि सत्ताशीन नेता जानते थे कि नेताजी जिन्दा हैं और अगर वे आ धमके तो उनके तेज के सम्मुख सब बौने हो जायेंगे | ऐसे में नेताजी के वंशज चन्द्र कुमार बोस का यह कथन महत्वपूर्ण है कि नेहरू जी को हमेशा यह भय सताता रहा कि कहीं नेताजी लौट न आयें |

कल प्रकाश में आई फाईलों में यह भी विवरण मिला है कि अप्रैल 1937 में हुए कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में दूसरी बार अध्यक्ष चुने जाने के बाद नेताजी ने कहा था, हमें पूर्ण स्वाधीनता चाहिए | इसके बाद ही भारत की जनता तय करेगी कि युद्ध की स्थिति में वह ब्रिटेन का साथ देगी या विपक्ष का | उसके बाद 1941 में सुभाष चन्द्र बोस वेश बदलकर पुलिस की नज़रों से बचाते हुए जर्मनी चले गए और वर्ष 1943 में जर्मनी से जापान पहुंचे | वहां नेताजी की भेंट रासबिहारी बसु से हुई, जिन्होंने लीग ऑफ़ इंडियन इंडिपेंडेन्स की जिम्मेदारी नेताजी को सोंप दी | 

सोशल मीडिया पर इन रहस्योद्घाटनों पर व्यापक प्रतिक्रया देखने में आई है | राजीव चंद्रशेखर कहते हैं – इन फाईलों के सामने आने से वह प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है, जिससे आजादी के संघर्ष में नेताजी की वास्तविक भूमिका सामने आयेगी – एक ऐसा व्यक्तित्व जो संघर्ष से कभी भयभीत नहीं हुआ |

राम शास्त्री की प्रतिक्रिया अत्याधिक तीखी है | वे कहते हैं कि भारत की मुद्रा पर गांधी के स्थान पर सुभाष अंकित होने चाहिए | जबकि स्मिरल पटेल एक फोटो के साथ लिखते हैं कि यह आघात पहुंचाने वाला है कि नेहरू ने सुभाष बाबू को युद्ध अपराधी लिखा –



सुजीत चक्रवर्ती ने सवाल उठाया है कि रूस पाक को जेट विमान देता है, लेकिन उसके कारण हमारे और रूस के सम्बन्ध खराब नहीं होते, किन्तु केंद्र सरकार अगर नेताजी के दस्तावेज सार्वजनिक कर देगी तो हमारे सम्बन्ध खराब हो जायेंगे, कितना घटिया तर्क है |

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