समानता नहीं एकत्व है हिन्दू जीवन दर्शन का आधार - श्री मोहन भागवत, सरसंघचालक रा.स्व.संघ


Hindu values that have no scientific

जयपुर, 13 सितम्बर।  "मूल्य आधारित परिवार प्रणाली हिन्दू समाज की ताकत है। क्योंकि इन मूल्यों की दम पर ही भारतीय परिवारों ने सफलतापूर्वक सभी सामाजिक चुनौतियों का सामना किया है । हिंदुत्व की अवधारणाओं के अनुसार, पुरुष और महिला मूलतः एक ही हैं, एक ही सिद्धांत के दो अलग-अलग भाव | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने जयपुर में स्तम्भ लेखकों की दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर रविवार को उक्त विचार व्यक्त किये | कार्यशाला का विषय था - "महिलाओं के मुद्दों पर भारतीय दृष्टिकोण" | 

इस अवसर पर सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने हिंदुओं से अपील की है कि वे परम्परागत और दकियानूसी रूढ़ियों के मकड़जाल से बाहर निकलें | हिंदू धर्म की जो बातें वैज्ञानिक कसौटियों पर खरी नहीं उतरतीं, उन्‍हें छोड़ देना चाहिए | 

श्री भागवत ने कहा कि हिन्दू जीवन दृष्टि में स्त्री-पुरुष एक ही तत्व के दो प्रगटीकरण हैं, इसलिए समानता के बदले एकत्व पर उसका बल है | इसलिए महिला-पुरुषों के बीच भेद करने के बजाय उन्हें एक ही समझा जाना चाहिए | 

श्री भागवत ने आगे कहा कि सारे विषय और सभी समस्‍याओं को हिन्दू जीवन दृष्टि के आधार पर ही देखना चाहिए | इसी के आधार पर उनका समाधान निकल सकता है | श्री भागवत ने कहा कि भारत की परिवार व्यवस्था, मूल्य और महत्व अक्षुण्ण हैं और चुनौतियों के बावजूद अक्षुण्ण रहना हिन्दू समाज की ताकत है | 

संघ प्रमुख ने कहा कि हम अपनी जड़ों को मजबूत करेंगे, तभी पश्चिम का मुकाबला कर पाएंगे | अनेकता में एकता भारत की परम्परा रही है | इसी आधार पर हमारा समाज संगठित है | समन्वय को लेकर सृष्टि को आगे बढ़ाने का सामर्थ्य केवल हिन्दू धर्म में ही है |

श्री भागवत ने कहा कि भारत की परिवार व्यवस्था का मूल्य और महत्व अनेक चुनौतियों के बावजूद अक्षुण्ण टिका हुआ है। यह हिंदू समाज की एक ताकत है। अपनी जड़ों की पहचान के साथ जड़ों को मजबूत करते रहने से पश्चिमीकरण या ऐसे अनेक आक्रमणों का मुकाबला करने की शक्ति समाज में निर्माण होगी।


उन्होंने कहा कि गलत रूढ़ियों को नकारते हुए शाश्वत जीवन मूल्यों के आधार पर दुनिया की अच्छी बातों को स्वीकारना भारत की परम्परा रही है। इसी के आधार पर समाज संगठित होकर खड़ा रहेगा और सम्पूर्ण मानवता को जीवन का उद्देश्य समझाने और जीवन की दिशा देने का कार्य वह सक्षमतापूर्वक करेगा। इसके लिए हमें सनातन मूल्य और आधुनिक परिस्थितियों को जोड़ कर आगे बढ़ना होगा।

सरसंघचालक जी के समापन भाषण के पूर्व प्रो. राकेश सिन्हा, एडवोकेट मोनिका अरोरा, डॉ. सुवर्णा रावल और श्रीमती मृणालिनी नानिवडेकर ने हिन्दू चिंतन में नारी विमर्श, मीडिया, राजनीति एवं कानूनी प्रावधान के क्षेत्रों में महिला के सामने चुनौती विषयों पर अपने विचार रखे।

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