नेताजी को युद्ध अपराधी दर्शाने वाले नेहरू जी द्वारा लिखित पत्र की हकीकत !


पिछले दिनों सोशल मीडिया पर सर्वाधिक प्रचलित हुआ है जवाहरलाल नेहरू द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली को लिखा गया एक पत्र | 27 दिसंबर 1945 को लिखे गए उस पत्र में नेहरू जी द्वारा एटली को सूचना दी गई है कि स्टालिन ने आपके युद्ध अपराधी सुभाष चन्द्र बोस को रूस की सीमा में प्रवेश की अनुमति दी है | अमरीका और ब्रिटेन के सहयोगी रूस का यह कृत्य विश्वासघात है, जो उसे नहीं करना चाहिए था | कृपया इसे संज्ञान में लेकर जो उचित प्रतीत हो वह करें |
अनेक लोगों को इस पत्र के सोर्स को लेकर जिज्ञासा थी | आज सुब्रमण्यम स्वामी ने इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए एक लिंक भी उपलब्ध कराई है –

https://imgur.com/a/rcYw9

इस लिंक पर एक पुस्तक “Mysteries of Bose’s “Life and Death” के पृष्ठ क्रमांक 277 पर लिखित एक विवरण है | नेताजी की मृत्यु के रहस्य की तह तक पहुँचाने के लिए बने खोसला आयोग के समक्ष प्रस्तुत होकर मेरठ के श्यामलाल जैन द्वारा दिया गया बयान इसमें दर्शाया गया है | बयान में श्यामलाल का दावा है कि 26-27 दिसंबर 1945 को जब वे कुछ पत्र टाइप कर रहे थे कि तभी आसफ अली कि घर से नेहरूजी के लिए एक फोन आया | उसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपनी अचकन की जेब में से एक कागज़ निकालकर चार कॉपी टाइप करने को दिया | वह कागज़ हाथ से लिखा हुआ था तथा मुश्किल से ही पढ़ने में आ रहा था | उस कागज़ में लिखा हुआ था कि –

“नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 23 अगस्त 1945 को हवाई जहाज से दोपहर 1.30 बजे डैरेन (मंचूरिया) पहुंचे | वह जहाज जापानी बमवर्षक विमान था | वह विमान पूरीतरह सोने की छड़ों, आभूषणों और जवाहरात से भरा हुआ था | नेताजी के दोनों हाथों में दो अटैचियाँ थीं | प्लेन से उतरकर नेताजी ने केले और चाय ली | 

चाय पीने के बाद नेताजी चार लोगों के साथ, जिनमें जनरल शेडि नामक एक जापानी भी था, पास में खडी एक जीप में सवार होकर रूस की सीमा की ओर बढ़ गई | तीन घंटे बाद जीप लौटी व पायलट को सूचित किया | उसके बाद प्लेन वापस टोक्यो रवाना हो गया |”

मुझे वह कागज़ देने के बाद जवाहरलाल नेहरू आसफ अली के पास गए और 10-15 मिनिट चर्चा में व्यस्त रहे | उस समय तक मैं अपना काम पूरा नहीं कर पाया था, क्योंकि कागज़ में लेखक का नाम समझ में नहीं आ रहा था, अतः मैं नेहरू जी के वापस आने का इंतज़ार कर रहा था | लौटकर जवाहरलाल नेहरू ने वे कागज़ मुझसे वापस ले लिए |

उसके बाद पुस्तक के अंश जो कहते हैं वह बहुत ही महत्वपूर्ण है –

“मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि उसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने मुझे अपने लेटर पेड़ में से निकलकर चार कागज टाइप करने को दिए तथा स्वयं डिक्टेट भी करवाया |”

यह वही पत्र है जो इस समय पूरे देश में सर्वाधिक चर्चित है |

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