दिल्ली में चल रही है 'ऋग्वेद से रोबोटिक्स तक सांस्कृतिक निरंतरता” अनूठी प्रदर्शनी
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नई दिल्ली | 19 सितम्बर 2015 :: ललित कला अकादमी, नई दिल्ली में गुरुवार को 'ऋग्वेद से रोबोटिक्स तक सांस्कृतिक निरंतरता” नामक अनूठी प्रदर्शनी का शुभारंभ हुआ जो 23 सितम्बर तक रहेगी |
ललित कला अकादमी में चल रही इस अनूठी प्रदर्शनी में " खगोलीय संदर्भ और वैज्ञानिक सबूतों" से आर्य आक्रमण सिद्धांत को खारिज करते हुए बताया गया है कि महाभारत और रामायण महज पौराणिक काव्य नहीं हैं, बल्कि वे ऐतिहासिक ग्रंथ हैं |
गुरुवार को वेदों पर वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाली संस्था The Institute of Scientific Research on Vedas (I-SERVE) द्वारा ललित कला अकादमी, नई दिल्ली में आयोजित 'ऋग्वेद से रोबोटिक्स तक सांस्कृतिक निरंतरता’ प्रदर्शनी का शुभारंभ हुआ । भारत सरकार के संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल और शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे |
ललित कला अकादमी में आयोजित इस प्रदर्शनी में खगोल विज्ञान, पुरातत्व, पैलियो-वनस्पति विज्ञान और समुद्र विज्ञान के विस्तृत शोध परिणामों के माध्यम से प्राचीन हिंदू ग्रंथों और आधुनिक विज्ञान के बीच एक तालमेल स्थापित करने की कोशिश की गई है |
प्रदर्शनी में जो अन्य प्रमुख विषय ध्यानआकर्षित करते हैं, वे हैं –
- हाल ही में मेहरगढ़ से प्राप्त ईसा से 7000 पूर्व दंत चिकित्सा के प्रमाण !
- ईसा से 5067 वर्ष पूर्व के खगोलीय चार्ट में "हनुमान जी द्वारा अशोक वाटिका में सीताजी से भेंट के समय का सूर्य ग्रहण" !
- ईसा से 3153 वर्ष पूर्व का चंद्रग्रहण जब "पांडव पासों के खेल में अपना सब कुछ गंवाकर 13 वर्ष के वनवास को गए " !
- साथ ही श्री राम के 63 पूर्वजों व 59 वंशजों का विवरण !
- राम का जन्म कब हुआ ? उसके वास्तविक दिनांक को खोजने का प्रयास किया गया है | ईसा से 5114 वर्ष पूर्व 10 जनवरी को 12.05 पर श्री राम प्रगट हुए ।
- महाभारत का युद्ध 3139 ई.पू. 13 अक्टूबर को प्रारम्भ हुआ ।
- जब हनुमान जी ने अशोक वाटिका में सीता जी से भेंट की, वह तारीख थी 12 सितंबर, 5076 ई.पू.।
हमारे यहाँ और विदेश में भी इतिहासकार जिसे असंभव बताते रहे, उस असंभव को संभव किया है इस एक संस्था ने और वह भी वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा – और वही सब प्रदर्शित किया गया है 'ऋग्वेद से रोबोटिक्स तक सांस्कृतिक निरंतरता’ नामक इस प्रदर्शनी में |
स्वाभाविक ही मन में सवाल उठेगा कि आखिर ये तारीखें निकाली कैसे गईं ? इसका जबाब देते हुए संस्थान की निदेशक सरोज बाला ने बताया कि इसका एक ही जबाब है – “गहन शोध" | यह जानकर हैरत होती है कि महज 7000 रूपए में अमेरिका से प्राप्त एक सॉफ्टवेयर की मदद से यह असम्भव कार्य संभव किया गया | सटीक तिथियाँ खोजने के लिए ऋग्वेद, रामायण और महाभारत से प्राप्त तकालीन ग्रह स्थिति का इस्तेमाल किया गया । प्राप्त जानकारी के अनुसार संस्थान ने अपनी 'निष्कर्षों' से केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को भी अवगत कराया है ।
भारत के संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि उनका मंत्रालय इन जानकारियों पर संज्ञान लेकर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगा । केंद्रीय मंत्री ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मैंने प्रदर्शनी में लगभग डेढ़ घंटा व्यतीत किया है, यहाँ बहुत कुछ ऐसा है, जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है । इस आयोजन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रदर्शनी "वैज्ञानिक तथ्यों" पर आधारित है । अन्यथा तो अगली पीढ़ी यही कहती कि रामायण और महाभारत किसी ने अपने बेडरूम में बैठे बैठे लिखी थी | उनकी ऐतिहासिकता को वैज्ञानिक आधार से प्रमाणित करना बहुत आवश्यक है ।
सोनल मानसिंह ने कहा कि जब मैंने इस प्रदर्शनी के बारे में सुना तो मेरे मन मस्तिष्क में उत्कंठा की हलचल मच गई । "एक व्यवस्थित साजिश के तहत वेंडी डोनिगर जैसे पाश्चात्य विद्वानों ने हमें नीचा दिखाने के लिए हमारे प्राचीन संतों को सेक्स दीवाना घोषित किया हुआ है, और दुर्भाग्य से आज तक हम उनका लिखा इतिहास ही पढ़ते आ रहे हैं ।“
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि ईसाई विद्वान् तो 4000 वर्ष से अधिक समय पूर्व के इतिहास की कल्पना ही नहीं कर सकते | इसलिए बहुतों के लिए ऋग्वेद से लेकर वर्तमान समय तक की निरंतरता बहुतों के लिए अकल्पनीय जैसी है | यहां तक कि मैक्स मुलर भी ईसा पूर्व के 5000 से आगे नहीं जा सके ।
I-SERVE की दिल्ली चेप्टर की निदेशक सरोज बाला ने कहा कि "हमारा इतिहास मुसलमानों और ईसाइयों के आगमन से बहुत पहले का है, कमसेकम 10,000 वर्ष पुराना । हमने रामायण और महाभारत में वर्णित ग्रहों की स्थिति का वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण किया और पाया कि वे यथार्थ परक हैं | हमने वंशावली का अध्ययन किया और पाया कि आर्य स्वदेशी थे ।
ज्यादातर भारतीय अति प्राचीन काल से एक पवित्र नदी के रूप में गंगा की पूजा करते आ रहे हैं | किन्तु हैरत की बात है कि प्राचीनतम वेद ऋग्वेद के दसवें मंडल तक महान नदी गंगा का कोई उल्लेख नहीं है | जबकि एक भी गलती के बिना शेष सभी 22 नदियों का उल्लेख भौगौलिक दृष्टि से एकदम सही प्रकार से किया गया है | किन्तु ऋग्वेद में सबसे विख्यात नदी के रूप में सरस्वती का उल्लेख है जिसे आम तौर पर काल्पनिक पौराणिक नदी माना जाता है |
I-SERVE द्वारा लगाये गए एक पोस्टर मैं दर्शाया गया है कि किस प्रकार ईसा से 6000 वर्ष पूर्व सूर्यवंशी राजा सगर और भगीरथ के प्रयासों से सबसे पवित्र नदी भागीरथी का जल गंगा में सुविधा पूर्वक बारहों महीने प्रवाहित होने में मदद मिली तथा सरस्वती लुप्त हो गई |
आयोजकों के अनुसार, प्रदर्शनी का उद्देश्य आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करके प्राचीन पुस्तकों में बताई हुई घटनाओं की प्रामाणिकता और ऐतिहासिकता सिद्ध करने का अनुसंधान कार्य सार्वजनिक करना है ।
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समाचार
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