भविष्य के खुर्राट नेता - रोवर्ट बाड्रा (नया इण्डिया से साभार)

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सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा द्वारा दिया गया यह बयान है कि चूंकि सरकार उनका नाम विमान यात्रा करने वाले उन यात्रियों की सूची से नहीं हटा रही है जो कि उस वीवीआईपी सूची में शामिल है जिन्हें सुरक्षा जांच से छूट मिली हुई है, इसलिए वे खुद हवाई अड्डे जाकर उस सूची से अपना नाम मिटा देंगे।

उनके इस बयान को एजेंसी ने चला दिया और तमाम अखबारों में वह प्रमुखता के साथ पहले पृष्ठ पर छप भी गया। यह पढ़कर सिर पीटने का मन करने लगा। ऐसा लगा कि जैसे हवाई अड्डा न होकर रेलवे का प्लेटफार्म हो जहां यात्रियों का आरक्षण चार्ट लगा हो जिसमें उनका नाम, क्लास, बोगी व सीट नंबर आदि लिखा हो। वाड्रा उस पर लिखे अपने नाम को पेन से काट देंगे। 

किसी ने यह नहीं सोचा कि यह कितना हास्यास्पद बयान है। ठीक वैसा ही जैसा कि राजीव गांधी के बारे में कहा जाता था। उन्होंने किसी गांव वाले से पूछा था कि तुम लोग चीनी कहां उगाते हो? यह बात सबको पता है कि इस तरह की नामों की जो सूचियां होती हैं उसमें कुछ नाम सार्वजनिक बोर्ड पर लग भी जाए तब भी उसका मूल ठिकाना एसपीजी के सुरक्षा तंत्र का होता है। एसपीजी से लोगों के नाम तो सूचना के अधिकार के तहत भी हासिल नहीं किए जा सकते हैं। यहां तक कि आमतौर पर सरकार एक्स, वाई श्रेणी की सुरक्षा पाने वाले लोगों के नाम तक सार्वजनिक करने से कतराती है। इसकी वजह सुरक्षा कारण बताए जाते हैं।

ऐसे में यह बयान देकर राबर्ट वाड्रा ने लोगों को बेवकूफ ही बनाया हैं। उन्हें लगता है कि हवाई अड्डा तो मानो कलेवा हलवाई की दुकान है जहां लाला की सीट के पीछे मिठाइयों के नाम व दाम लिखे हुए हैं जिसे जाकर वे मिटा देंगे और उनका नाम लिस्ट से कट जाएगा। या फिर सुरक्षा जांच के काउंटर पर लगे उस बोर्ड पर यह सूची भी लगी हुई है जिसमें यह बताया गया है कि यात्री अपने साथ कैंची, बैटरी, रिवाल्वर वगैरह-वगैरह ले जा सकते हैं। आश्चर्य तो उस रिपोर्टर व न्यूज एजेंसी पर होता है जिसने अपनी खबर में यह जानकारी नहीं जोड़ी कि राबर्ट वाड्रा के ऐसा करने से स्थिति नहीं बदलेगी। वाड्रा लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं। अगर वे अपना परिचय दिए बिना ही सिक्योरटी जांच में चले जाए तो उनकी जांच कर ली जाएगी। वे महात्मा गांधी बनने की कोशिश कर रहे हैं कि देखो अब मैं भी आम आदमी की तरह थर्ड क्लास में यात्रियों की तरह आचरण करुंगा। अगर इतना ही था तो आज तक यह सुविधा क्यों लेते रहे? सोनिया गांधी का दामाद होने के अलावा भला उनकी योग्यता क्या है?

उनके बयान से यह आभास होने लगा है कि उनमें एक चतुर नेता बनने के तमाम गुण मौजूद हैं। उनके इस बयान से देवीलाल का वह बयान याद आ जाता है जो कि उन्होंने हरियाणा के किसानों के बीच दिया था कि भाखड़ा बांध में पानी की असली ताकत बिजली निकाल ली गई है। अब यह खोखा पानी किसी काम का नहीं रहा। मानो पानी न होकर दूध हो जिसका मक्खन निकाला जा चुका हो। राजेश पायलट चुनावी सभाओं में किसानों की उस पासबुक का जिक्र किया करते थे जिसमें उसकी जमीन दर्ज होगी व उसे दिखाकर वह बैंक से आसानी से जरुरत पड़ने पर कर्ज ले सकेगा। यह कहानी गैर कांग्रेस शासित राज्यों में सुनायी जाती थी।

इस तरह के तर्क आज भी दिए जा रहे हैं और भविष्य में भी दिए जाते रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि हमने जो रसोई गैस की सब्सिडी लेना बंद कर दी है उससे एक और घर में गैस पहुंच गई हैं। सब्सिडी लेना बंद करने से तेल कंपनी का घाटा तो कम हो सकता है पर किसी के घर में गैस कैसे पहुंच सकती है, क्या जितने लोग सब्सिडी न लेने का फैसला कर रहे हैं, उतनी ही संख्या में सब्सिडी वाले नए कनेक्शन जारी किए जा रहे हैं? केजरीवाल दावा कर रहे हैं चूंकि हमने भ्रष्टाचार व रिश्वत खोरी बंद कर दी है, हम वह पैसा बिजली पर सब्सिडी देने पर खर्च कर रहे हैं। मानो सरकार ने अपनी योजना खर्च पर रिश्वत के लिए कोई राशि निर्धारित कर रखी थी जो कि अब सब्सिडी देने पर खर्च की जा रही है। क्या हमारे नेता जनता को इतना बेवकूफ समझते हैं। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विन्रम उनका लेखन नाम है)

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