घटते जीवन मूल्यों का प्रतीक - बढ़ते वृद्धाश्रम

कहा जाता है कि माता पिता के चरणों में स्वर्ग होता है एवं माता पिता की सेवा से साक्षात ईश्वर की प्राप्ति होती है ! हमारे देश में जहाँ श्रवण कुमार जैसे पुत्र ने जन्म लिया हो, यह देखकर हैरत होती है कि अत्यंत संपन्न व समृद्ध परिवार के महानुभाव भी अपने बुजुर्गों को भगवान् भरोसे “वृद्धाश्रम” में छोड़ देते है ! 

शारीरिक रूप से सर्वथा अशक्त व असहाय हो चुके वृद्धों को जिस समय अपनों के अपनेपन की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, उस समय वे निराश, हताश, अपनी प्रिय संतानों से दूर, वृद्धाश्रम में एकाकी जीवन व्यतीत करने को बाध्य होते दिखाई देते हैं ! निसंदेह आज के ये वृद्धाश्रम आधुनिक सुविधा संपन्न होते हैं तथा उन्हें सुरक्षा व सुविधा भी प्रदान करते हैं पर अपनी उम्र के इस पड़ाव पर हमारे वृद्धों को ये आश्रम क्या भावात्मक सुरक्षा, आत्मीयता स्नेह दे सकते हैं जो अपनी संतान से और पारिवारिक सदस्यों से प्राप्त हो सकता है ? यह चिंतनीय व विचारणीय बिंदु है !

यदि विचार करें तो लगता है कि कहीं न कहीं हमारी भारतीय संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो रही है, जिसके चलते हमारे जीवन मूल्यों में गिरावट आती जा रही है, और इन वृद्धाश्रमों की संख्या भी बढ़ती जा रही है  !विदेशी भी जिस भारतीय परिवार व्यवस्था के कायल रहे हैं, लेकिन आज वह तानाबाना विखर रहा है ! मृतप्राय होती जा रहीं मानवीय संवेदनाओं व आत्मकेंद्रित मानसिकता ने संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों की बाहुल्यता को जन्म दिया है | आज के परिदृश्य में सच्चाई तो यही है कि परिवार का हर सदस्य अपनी गतिविधियों में इतना अधिक रम गया है कि कोई भी किसी तरह से कहीं भी प्रतिबंधित नहीं होना चाहता है ! युवा पीढ़ी व वृद्ध पीढ़ी के बीच न तो सामंजस्य के लिए कोई स्थान शेष रहा है, और न बुजुर्गों के मार्गदर्शन की कोई आवश्यकता ! लगता है कि आज का युवा वर्ग कुछ अधिक ही योग्य और बुद्धिमान हो गया है ! उसे बुजुर्गों का मार्गदर्शन अपने कार्यों में अकारण का हस्तक्षेप लगता है ! अतः केवल व्यवस्थित भोजन ,अच्छे कपड़े और रहने की सुविधा देकर इन्हें वृद्धाश्रम में रख कर ही वह अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है ! 

विदेशों में जा बसे बच्चे ही नहीं तो भारत में रहकर उच्च पदासीन अधिकारियों के मातापिता भी इन वृद्धाश्रमों में अपने अंतिम दिन गुजार रहे हैं | यह ठीक है कि वे इन आश्रमों को अनुदान राशि नियमित भेजते है, जिससे उनके बुजुर्गों को पूर्णरूपेण सुरक्षा मिलती रहे और ये वृद्धाश्रम भी पलते बढ़ते रहें ! लेकिन क्या कभी किसीने इन बुजुर्गों की मानसिक वेदना को समझने का प्रयास किया ? उनके मन की गहराई में झांकने की कोशिश की ? शायद उनकी मानसिक वेदना, उनकी शारीरिक व्याधियों से कहीं अधिक पीडादाई व कष्टप्रद होती है ! 

कल दिनांक ६ सितम्बर २०१५ को शिवपुरी स्थित वृद्धाश्रम में “सत्यार्थ द वे ऑफ़ ट्रुथ” ग्रुप ने एक कार्यक्रम आयोजित किया | ग्रुप के सदस्यों ने इन वृद्धजनों की सेवा में अहर्निश चौबीसों घंटे तत्पर वृद्धाश्रम के कर्मचारियों व वृद्धजनों को सम्मानित किया | उन्हें तिलक लगाया, उनकी आरती की व उनके पैर धुलाये ! विशेष बात यह है कि यहाँ जो कर्मचारी की भूमिका में हैं, वे भी अपने परिवार द्वारा परित्यक्त ही हैं ! ग्रुप के सदस्यों ने उन्हें भेंट में फल भी अर्पित किये ! 

क्या है यह “सत्यार्थ द वे ऑफ़ ट्रुथ” ग्रुप -

“सत्यार्थ द वे ऑफ़ ट्रुथ” ग्रुप शिवपुरी में व्हाट्स एप्प के द्वारा संचालित एक गैर राजनैतिक संगठन है, जिसका प्रयास केवल और केवल सामाजिक कार्यों के द्वारा समाज के लोगों को जागरूक कर समाज की सेवा के लिए सकारात्मक सन्देश देना है ! 

इस कार्यक्रम के दौरान “सत्यार्थ द वे ऑफ़ ट्रुथ” के सभी सदस्यों ने वृद्धाश्रम पहुंच कर वृद्धजनों के साथ उनका दुःख दर्द बांटा ! ऐसा नहीं है कि वृद्धाश्रम में जीवन यापन करने वाले सभी वृद्ध कमजोर तबके के हों, बल्कि प्रतिष्ठित खानदान के वृद्ध भी यहाँ अपना अंतिम समय व्यतीत कर रहे है ! सत्यार्थ के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में जब वृद्धों के चरण धोकर तिलक लगाकर माला पहना कर उन्हें फल आवंटित किये गए तब वृद्धों की आँखों से अश्रुधारा बह उठी और मन से इन वृद्धों ने सत्यार्थ के सभी सदस्यों को दुआए दी ! 

पहली बार किसी व्हाट्स एप्प ग्रुप द्वारा ऐसा आयोजन किया गया है ! इस कार्यक्रम की प्रेरणास्त्रोत ग्रुप एडमिन कु. प्रज्ञा गौतम है, जिन्होंने ग्रुप मेम्बर्स को सहमत कर शहर में संचालित हजारों व्हाट्स एप्प ग्रुप्स को एक सकरात्मक सन्देश समाज की सेवा के लिए दिया है ! इस अवसर पर “सत्यार्थ द वे ऑफ़ ट्रुथ” के सभी ग्रुप सदस्य उपस्थित थे !

“सत्यार्थ द वे ऑफ़ ट्रुथ” के सभी ग्रुप सदस्य