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श्री चिंतामण गणेश मंदिर उज्जैन |
उज्जैन के इस प्राचीन चिंतामण गणेश मंदिर में गणेश जी की विराट प्रतिमा स्थित है। ऐसा माना जाता है कि महाराज दशरथ के स्वर्गारोहण के पश्चात पिण्डदान हेतु भगवान श्री रामचन्द्र जी ने भी यहां आकर पूजा अर्चना की थी। आस्था और विश्वास है कि यहाँ आकर व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं। प्रथम पूज्य गणनायक श्री गणेश के दर पर जो भी आया उसे कभी खाली हाथ नहीं लौटना पड़ा। सर्वहारा भी हैं, सुरक्षा कवच भी हैं, श्री गणेश अपने भक्तों के लिए सबकुछ हैं। यही कारण है कि आजीवन अपनी हिफाजत की जिम्मेदारी भक्तों ने श्री गणेश को ही सौंप दी है और हर रक्षा बंधन पर बहिनें यहाँ रक्षा सूत्र बांधती हैं।
मंदिर में भगवान को राखी बांधने की परंपरा कब शुरू हुई। ये कोई नहीं जानता। लेकिन बरसों पुर्व प्रारम्भ हुई इस परंपरा का निर्वहन आज भी होता है। राखी बांधने की शुरूआत इसी मंदिर से होती है। भगवान गणेश जी को राखी बांधने के बाद ही बहने अपने भाइयों को राखी बांधती हैं।
आलम ये है कि देश के विभिन्न प्रांत तो एक तरफ विदेशों से भी रक्षा बंधन पर भगवान गणेश के लिए राखी आती हैं । मंदिर प्रबंधन भी हर वर्ष लंबोदर के लिए एक नई और अनोखी राखी बनवाता है। बहने पूरी आस्था के साथ गणेश जी को पहनाती हैं राखी। इस यकीन के साथ भगवान गणेश ताउम्र उनकी हिफाजत करेंगे। हर विपत्ति से हर अनहोनी से बताएंगे। भगवान गणेश ने रक्षा का बंधन का ये भरोसा कभी नहीं तोड़ा। इसलिए अनवरत जारी है, राखी का ये अनोखा बंधन।
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित भगवान महाकालेश्वर के इस भव्य दिव्य मंदिर का मनोहारी वर्णन पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में भी मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति मुक्ति का अधिकारी हो जाता है, । महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है।
१२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा प्राचीन मंदिर का विध्वंस कर दिए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।
केवल भगवान महाकाल ही क्यों अन्य अनेकों प्रमुख देवस्थलों, मंदिरों की भी नगरी है उज्जयिनी | प्रस्तुत है चित्रमय झांकी -
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52 शक्तिपीठों में से एक, महाराज विक्रमादित्य की कुलदेवी माँ हरसिद्धि |
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दीप स्तम्भ: हरसिद्धि मंदिर उज्जैन |
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बाबा श्री मन कामेश्वर महादेव सांध्य श्रगार |
काल भैरव मंदिर महाकाल से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर है। वाम मार्गी संप्रदाय के इस मंदिर में काल भैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि प्रतिमा के मुँह से मदिरा का कटोरा लगाने के बाद मदिरा धीरे-धीरे गायब हो जाती है।मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है।
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गुमानदेव हनुमान मंदिर में हनुमान जी का स्वाधीनता दिवस श्रृंगार |
गढ़कालिका मंदिर - कालजयी कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे। कालिदास के संबंध में मान्यता है कि जब से वे इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे, तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा। कालिदास रचित ‘श्यामला दंडक’ महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है। ऐसा कहा जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। यहाँ प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व माँ कालिका की आराधना की जाती है।गढ़ कालिका के मंदिर में माँ कालिका के दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है।
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जय श्री मंगलनाथ |
माना जाता है कि मंगलवार को उज्जैन स्थित श्री मंगलनाथ महादेव के दर्शनों से मंगल से सम्बंधित सब दोष समाप्त हो जाते है। साथ ही मंदिर के बाहर लगे शिलालेख के अनुसार भगवान मंगलनाथ के दर्शनों से ऋण मुक्ति भी होती है | यह भी मान्यता है कि यह स्थान पृथ्वी का नाभिकीय केंद्र है तथा मंगल ग्रह का जन्मस्थान भी | कीजिए भगवान के अन्नकूट दर्शन -
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भर्तहरी गुफा
महाराज भर्तरिहरि उज्जैन के प्रसिद्ध राजा थे जो बाद में गुरु गोरखनाथ के शिष्य बने और राज पाट छोड़कर अलवर के सरिस्का की पहाड़ियों में आकर तपे थे.उनके द्वारा चिमटे से अमर गंगा निकाली गयी...उनकी धूनी अखंड प्रज्वलित रहती है...सारे देश से उनके भक्त यहाँ उनके दर्शन को आते हैं.!
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