नंगे पैर दौड़ जूते सिलने वाले की बेटी ने जीता स्वर्ण पदक

मुंबई में जिस वक्त सयाली म्हाइशुने, प्रियदर्शिनी पार्क में गोल्ड मेडल जीतने के लिए नंगे पैर दौड़ लगा रही थी उसी दौरान उसके पिता दादर में बैठे लोगों के जूतों की मरम्मत कर रहे थे। उन्हें क्या पता था कि उनकी बेटी उनका नाम रोशन करने की ओर कदम बढ़ा चुकी है। उसके कदम जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे थे उतनी ही तेजी से उसके पिता जूतों की मरम्मत करने में लगे थे और जैसे ही उन्होंने जूता तैयार करके अपने ग्राहक के पैर के नीचे रखा वैसे ही सयाली के कदम के नीचे वह तमगा आ गया जिसे गोल्ड स्वर्ण पदक कहते हैं।

सोमवार का दिन रोज की तरह ही सयाली के पिता मंगेश के लिए आम दिनों की तरह ही था लेकिन उनके चेहरे पर जो मुस्कान थी वह कुछ और ही बयां कर रही थी। वह खुशी उनके 14 साल की बेटी सयाली की वजह से था जिसने एक दिन पहले ही 3,000 मीटर की अंडर-17 अंतरविद्यालय एथलीट प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। यह रेस उसने नंगे पैर दौड़कर ही जीत लिया क्योंकि उसके पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे। इस रेस को पूरा करने में सयाली ने 12:27:8 सेकेंड का वक्त लिया।

अपनी बेटी की जीत पर मंगेश ने कहा, 'मैं जानता था कि वह प्रतियोगिता में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व कर रही है। मैं जाना भी चाहता था, लेकिन जा नहीं पाया क्योंकि मेरे लिए दौड़ देखने से ज्यादा जरूरी मेरा परिवार है।' मंगेश अपने इस काम (मोची) के काम से महीने में 3,000-10,000 रुपये तक कमाते हैं जिससे उनकी दो बेटियों की पढ़ाई का खर्च और बीमार पत्नी का ईलाज होता है। इसी वजह से वह एक दिन के लिए भी दुकान बंद नहीं कर सकते।

अपनी जीत के बारे में सयाली ने बताया, 'मेरे पिता के पास इतने पैसे नहीं है कि वह मेरे लिए स्पाइक (कांटेदार जूता) खरीद सकें। इसलिए मैंने नाइगांव के पुलिस ग्राउंड के ट्रैक पर नंगे पैर दौड़कर ही अपनी तैयारी शुरू कर दी।' सयाली बताया कि रविवार को ग्राउंड के सिंथेटिक ट्रैक पर दौड़ना काफी मुश्किल था। उसने बताया, 'मैंने मिट्टी पर दौड़कर अपनी तैयारी की थी और कड़े सिंथेटिक ट्रैक पर दौड़ना काफी मुश्किल था। दोपहर होने की वजह से ट्रैक काफी गर्म हो गया था। आधा ट्रैक पार करने के बाद लगा कि मुझे पानी की जरूरत है लेकिन मैं किसी भी तरह दौड़ती रही। मैंने मेडल जीतने के बारे में सोचा भी नहीं था। मेरा लक्ष्य केवल रेस का खत्म करना था।'

उसने यह भी कहा कि अगर मेरे पास स्पाइक होता तो मैं और बेहतर कर सकती थी। मंगेश ने कहा कि जब मुझे उसके मेडल जीतने के बारे में पता चला तो मैं बेहद खुश हुआ। उसको कोई महंगा उपहार तो नहीं दे सकता था इसलिए घर जाते वक्त उसकी पसंदीदा चॉकलेट लेकर गया था।


साभार अमर उजाला

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