आन्ध्र प्रदेश स्थित कनिपकम विनायक मंदिर, जहां बड़े से बड़ा अपराधी भी स्वीकार लेता है अपना अपराध

भारत में अलग-अलग धर्मों के अनुयायी रहते हैं। सभी धर्मों का इतिहास चमत्कारिक घटनाओं से भरा हुआ है। ईश्वर कभी तो अवतार लेकर मनुष्य के सामने आते रहे हैं, तो कभी अपने साक्षात रूप के स्थान पर प्रतीकात्मक रूप में भक्तों को अपने होने का एहसास करवाते रहे हैं।

कभी ईश्वर अपने भक्त के स्वप्न में आकर किसी विशेष स्थान पर अपने होने का संदेश देते हैं तो कभी अकस्मात ही किसी को भगवान की ऐसी मूर्ति मिल जाती है, जो जीवित प्रतीत होती है। अब आस्था इतनी प्रबलतम होती है कि उस पत्थर की मूर्ति के सजीव होने पर सवालिया निशान भी नहीं लगता और संबंधित स्थान या वह मूर्ति पूजनीय हो जाती है।

भारत में अधिकांश मंदिर किसी ना किसी चमत्कारी घटना के बाद ईश्वर की मूर्ति के प्रकट होने या स्वयं ईश्वर के कहने के बाद ही स्थापित हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर है आंध्र प्रदेश स्थित कनिपकम विनायक मंदिर। भारत के दक्षिणी प्रांत आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है, जिसका निर्माण चोल वंश ने 11 शताब्दी में करवाया था इसके बाद विजयनगर के शासकों ने वर्ष 1336 में इसका विस्तार किया।

मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक बहुत ही रोचक कथा प्रचलित है जो ईश्वर के होने का एक बड़ा साक्ष्य भी है। कहते हैं एक गांव में तीन विकलांग भाई रहते थे। उनमें से एक बधिर, दूसरा मूक और तीसरा दृष्टिहीन था। भूमि के बहुत छोटे हिस्से पर खेती कर, वे तीनों भाई अपना गुजारा करते थे। जिस कुएं से पानी निकालकर वे खेती किया करते थे उस कुएं का पानी सूख गया, इसलिए वे खेत में पानी नहीं डाल पा रहे थे।

ऐसे हालातों में तीनों में से एक भाई कुएं को और गहरा खोदने के लिए उसमें उतर गया। थोड़ी सी ही खुदाई करने के बाद उस कुएं के अंदर उन्हें पत्थर की मूर्ति दिखी । खोदते समय अनजाने में लोहे की छड़ के हुए वार से उसमें से रक्त निकलने लगा | रक्त से कुएं का पानी भी खून की तरह लाल हो गया। जब गांव वालों को इस घटना का पता चला तो वे भी उस कुएं में मौज़ूद मूर्ति को बाहर निकालने के लिए खुदाई कार्य में जुट गए ।

और देखते ही देखते भगवान विनायक की यह मूर्ति पानी की लहर में से प्रकट हो गई। इस घटना के बाद गांव वालों ने मूर्ति पर नारियल का प्रसाद चढ़ाकर मंगला आरती की। इस अद्भुत दृश्य का साक्षी बनते ही तीनों भाइयों की शारीरिक कमियां भी दूर हो गईं । 

गांववालों ने इस मूर्ति को स्वयंभू विनायक का नाम दिया। आज भी उस स्थान पर यह स्वयंभू मूर्ति विद्यमान है और इतना ही नहीं उस दिव्य कुएं में भी हर मौसम, हर परिस्थिति में पानी रहता है। बारिश के दिनों में उस कुएं में से पानी बाहर भी बहता है। इस मूर्ति की महिमा और इसके चमत्कारिक होने का सिलसिला यहीं समाप्त नहीं होता, मूर्ति का आकार भी लगातार बढ़ता जा रहां है। एक भक्त ने करीब 50 साल पहले इस मूर्ति के नाप का ब्रेसलेट दान किया था, जो पहले इस मूर्ति के हाथ में सही आता था। लेकिन अब वह ब्रेसलेट मूर्ति के हाथ में नहीं आता।

कनिपकम विनायक की यह मूर्ति, दो पक्षों के झगड़े भी सुलझाती है। इस मूर्ति के पास कुएं की ओर मुंह कर विनायक की शपथ लेकर लोग आपसी मसलों को हल करते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यहां ली गई शपथ किसी भी कानून या न्याय से बड़ी है। कहा जाता है कई बार बड़े से बड़ा अपराधी भी इस कुएं में मात्र स्नान कर अपने गुनाह को कुबूल कर लेता है। यही वजह है कि कनिपकम सिद्धि विनायक मंदिर की लोकप्रियता दूरदराज तक फैली हुई है। स्थानीय न्यायालयों में भी मूर्ति की शपथ दिलाकर गवाही लेने का विशेष प्रावधान है।

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