मार्क जुकेरबर्ग व प्रधान मंत्री की चर्चा के बाद चर्चा में आये बाबा नीम करौली |


पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी से अमेरिका में मुलाकात के दौरान जुकरबर्ग ने भारत में एक मंदिर का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि वे एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स की सलाह पर भारत के इस मंदिर में गए थे। जुकरबर्ग ने इस मंदिर का नाम नहीं बताया था। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह मंदिर नैनीताल से 65 किलोमीटर दूर स्थित बाबा नीम करौली का आश्रम ही है | जॉब्स 1974 में आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में अपने कुछ दोस्तों के साथ नीम करौली बाबा से मिलने भारत आए थे। तब तक बाबा का निधन हो चुका था। लेकिन जॉब्स कुछ दिन आश्रम में ही रुके रहे। हॉलीवुड एक्ट्रेस जुलिया रॉबर्ट्स भी यहां एक बार आ चुकी हैं। 

गूगल के कोफाऊंडर स्टीव जॉब्स की सफलता की कहानी उनकी ही जुबानी -

जिन स्टीव जॉब्स की सलाह पर जुकेरबर्ग भारत आये, वे महज 19 वर्ष की उम्र में भारत आये थे | १९७४ की शुरुआत में जॉब्स बड़ी शिद्दत से पैसा कमाना चाहता था. उसका एक दोस्त रॉबर्ट फ्रीडलैंड भारत की यात्रा पर गया था और उसने नीम-करौली बाबा से दीक्षा ग्रहण की थी, जो साठ के दशक के अधिकतर हिप्पियों के गुरु थे, जॉब्स ने यह तय कर लिया था कि उनको भी यही करना चाहिए. जॉब्स वहां केवल रोमांच की खातिर नहीं जाना चाहते थे. वह उनके लिए गंभीर खोज की एक यात्रा थी.’ ‘अपने अंदर यह ज्ञान पा लेना कि मैं कौन हूँ और मुझे किस तरह आगे बढ़ना है. जॉब्स की खोज के पीछे कहीं न कहीं यह बात काम कर रही थी वह अपने जन्म देने वाले माता-पिता को नहीं जानता था. उसके अंदर एक शून्य पैदा हो गया था, जिसे वह भरना चाहता था.’

आश्रम की यात्रा के बाद जॉब्स ने लिखा कि भारत के गाँव के लोगों से उन्होंने तर्कबुद्धि के स्थान पर व्यवहार-बुद्धि(इन्ट्यूशन) को महत्व देना सीखा. पश्चिम में लोग तर्कबुद्धि या रीजन को महत्व देते हैं, जबकि पूरब में इन्ट्यूशन को अधिक महत्व दिया जाता है. इन्ट्यूशन के महत्व की इस समझ ने उनकी सोच की दिशा बदल दी, उसने उनकी कल्पनाशीलता को नए-नए आविष्कारों की दिशा में प्रेरित किया. 

होलिबुड अभिनेत्री जूलिया रोबर्ट और बाबा नीम करौली -

2010 में जूलिया रोबर्ट ने अकस्मात् हिन्दू धर्म अपनाकर विश्व को चोंका दिया था | और विचित्र बात जो उन्होंने अमेरिका के एबीसी न्यूज़ चेनल को बताई वह यह कि हिंदुत्व के प्रति उनका रुझान बाबा नीम करौली का फोटो देखने के बाद जागा, जबकि बाबा का देहांत बहुत पहले हो चुका था | एक बुजुर्ग आदमी अधलेटा सा. कंबल लपेटे हुए. चेहरे पर मस्ती की चमक, मुस्कुराते हुए. मानों अभी रोककर पूछ लेंगे- कैसी हो? 

कैथलिक माँ और बैप्टिस्ट पिता की संतान आस्कर विनर जूलिया जूलिया अब योग करती हैं, श्लोक पढ़ती हैं, नियमित पूजन और ध्यान उनकी दिनचर्या का अंग है |

आश्रम का इतिहास -

बात बहुत पुरानी है। अपनी मस्ती में एक युवा योगी लक्ष्मण दास हाथ में चिमटा और कमंडल लिये फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) से टूण्डला जा रही रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में चढ़ गए। गाड़ी कुछ दूर ही चली थी कि एक ऐंग्लो इण्डियन टिकट निरीक्षक वहां आया। उसने बहुत कम कपड़े पहने, अस्त-व्यस्त बाल वाले बिना टिकट योगी को देखा, तो क्रोधित होकर अण्ट-सण्ट बकने लगा। योगी अपनी मस्ती में चूर था। अतः वह चुप रहा।

कुछ देर बाद गाड़ी नीब करौरी नामक छोटे स्टेशन पर रूकी। टिकट निरीक्षक ने उसे अपमानित करते हुए उतार दिया। योगी ने वहीं अपना चिमटा गाड़ दिया और शांत भाव से बैठ गया। गार्ड ने झण्डी हिलाई, पर गाड़ी बढ़ी ही नहीं। पूरी भाप देने पर पहिये अपने स्थान पर ही घूम गये। इज्जन की जांच की गयी, तो वह एकदम ठीक था। अब तो चालक, गार्ड और टिकट निरीक्षक के माथे पर पसीना पर आ गया। कुछ यात्रियों ने टिकट निरीक्षक से कहा कि बाबा को चढ़ा लो, तब शायद गाड़ी चल पड़े।

मरता क्या न करता, उसने बाबा से क्षमा मांगी और गाड़ी में बैठने का अनुरोध किया। बाबा बोले- चलो तुम कहते हो, तो बैठ जाते हैं। उनके बैठते ही गाड़ी चल दी। इस घटना से वह योगी और नीबकरौरी गांव प्रसिद्ध हो गया। बाबा आगे चलकर कई साल तक उस गांव में रहे और फिर नीम करौरी बाबा या बाबा नीम करौली के नाम से विख्यात हुए। बाबा ने अपना मुख्य आश्रम नैनीताल (उत्तराखण्ड) की सुरम्य घाटी में कैंची ग्राम में बनाया। यहां बनी रामकुटी में वे प्रायः एक काला कम्बल ओढ़े भक्तों से मिलते थे।

बाबा ने देश भर में 12 प्रमुख मंदिर बनवाये। उनके देहांत के बाद भी भक्तों ने 9 मंदिर बनवाये हैं। इनमें मुख्यतः हनुमान जी के प्रतिमा है, जो उन्हीं के द्वारा 1915 के आस पास माटी और गोबर से बनायी गयी थी. किन्तु आज करीब सौ साल बाद भी यह मूर्ति जस की तस है. यहां एक वृक्ष है, एक गुफा है, एक कुंआ है और राख से भरा एक ऐसा ढेर है जो संभवत: नीम करौली बाबा की यज्ञशाला थी. या कि शायद वे यहां बैठकर आग तापते थे. कौन जाने? और जो कोई कुछ देता था वे इसी यज्ञशाला में डाल दिया करते थे. कहते थे कि अग्नि को दे दिया सुरक्षित रखने के लिए, जब जरूरत होगा तो वापस ले लेंगे. यह कोई मजाक नहीं है. इसे चमत्कार मानें तो मानें लेकिन वे अग्नि देवता से वस्तुएं मांगते भी थे. जो जरूरत होती थी वह अग्निदेवता से मिल जाता था. आग में हाथ डालकर वे जो इच्छा करते थे, वह उनके हाथ में आ जाती थी. आग से निकालकर कई बार कई सारी चीजें उन्होंने लोगों को दे दी थीं. संभवत: जिस विशाल कुंड को ढंक दिया गया है उसमें वही अक्षय निधि आज भी सुरक्षित है.

आगे तो नीम करौली बाबा चमत्कार के ही दूसरे नाम हो गये. देश में जहां भी जाते कोई न कोई चमत्कार हो जाता. जो लोगों के लिए चमत्कार होता था वह नीम करौली बाबा के लिए सामान्य कर्म था. कोई ऐसा सामान्य कर्म जिसके बारे में जानने के लिए विज्ञान को अभी न जाने कितने लार्ज हार्डन कालिडर टनल बिछाने होगे. पंचमहाभूत को भेदने की वैज्ञानिक विधियां ही हमारी नजर में चमत्कार हो जाती हैं. भौतिक पदार्थ में ही अगर इतने सारे चमत्कार भरे पड़े हैं तो कल्पना करिए कि अभौतिक जगत कितने सारे रहस्यों को अपने में समेटे हुए होगा? नीम करौली बाबा ऐसे ही अभौतिक रहस्यों में से कुछ को प्रकट कर देते थे. लेकिन इसका मतलब यह शायद बिल्कुल नहीं है कि इन चमत्कारों के जरिए वे अपना भौगोलिक विस्तार कर रहे थे. हकीकत तो यह है कि अपने जीते जी उन्होंने नैनीताल के कैंची आश्रम के अलावा और कोई आश्रम नहीं बनने दिया. वे जानते थे कि वे क्या हैं शायद इसीलिए उन्होंने अपनी ओर से अपना विस्तार करने की कोई चेष्टा नहीं की.

बाबा चमत्कारी पुरुष थे। अचानक गायब या प्रकट होना, भक्तों की कठिनाई को भांप कर उसे समय से पहले ही ठीक कर देना, इच्छानुसार शरीर को मोटा या पतला करना, आद कई चमत्कारों की चर्चा उनके भक्त करते हैं। बाबा का प्रभाव इतना था कि जब वे कहीं मंदिर स्थापना या भंडारे आदि का आयोजन करते थे, तो न जाने कहां से दान और सहयोग देने वाले उमड़ पड़ते थे और वह कार्य भली भांति सम्पन्न हो जाता था।

जब बाबा को लगा कि उन्हें शरीर छोड़ देना चाहिए, तो उन्होंने भक्तों को इसका संकेत कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने समाधि स्थल का भी चयन कर लिया था। 9 सितम्बर, 1973 को वे आगरा के लिए चले। वे एक कापी पर हर दिन रामनाम लिखते थे। जाते समय उन्होंने वह कापी आश्रम की प्रमुख श्रीमां को सौंप दी और कहा कि अब तुम ही इसमें लिखना। उन्होंने अपना थर्मस भी रेल से बाहर फेंक दिया। गंगाजली यह कह कर रिक्शा वाले को दे दी कि किसी वस्तु से मोह नहीं करना चाहिए।

आगरा से बाबा मथुरा की गाड़ी में बैठे। मथुरा उतरते ही वे अचेत हो गये। लोगों ने शीघ्रता से उन्हें रामकृष्ण मिशन अस्पताल, वृन्दावन में पहुंचाया, जहां 10 सितम्बर, 1973 (अनन्त चतुर्दशी) की रात्रि में उन्होंने देह त्याग दी।

बाबा का मूल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म ग्राम अकबरपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनकी समाधि वृंदावन में तो है ही, पर कैंची, नीब करौरी, वीरापुरम (चेन्नई) और लखनऊ में भी उनके अस्थि कलशों को भू समाधि दी गयी। उनके लाखों देशी एवं विदेशी भक्त हर दिन इन मंदिरों एवं समाधि स्थलों पर जाकर बाबा का अदृश्य आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।

लेकिन चमत्कारों के सरकार नीम करौली बाबा को अगर सिर्फ चमत्कार मान लेंगे तो भारत का आध्यात्म हमें कभी समझ में नहीं आयेगा जो बुद्धि से गहरे भाव जगत पर तैरता है. प्रकृति को जानने, समझने और उपलब्ध हो जाने की जो विद्या भारत में अभी भी मौजूद है | साढे तीन हाथ का शरीर संसार की सबसे बड़ी और कीमती प्रयोगशाला है. इस प्रयोगशाला में पहुंचने और पिंड से ब्रह्मांड को भेदने का विज्ञान ही भारत का वह चमत्कार है जिससे खुद भारतीय अनजान है जो इसके वंशज हैं.

यह छोटा सा गांव नीब करौली भी कुछ उसी तरह की प्रयोगशाला रहा है जैसा यूरोप में बनाई गई वह टनल जिस पर अरबों डालर खर्च किये गये. लेकिन हाय से हमारी फूटी किस्मत कि हम उस प्रयोगशाला को देख पाने की दृष्टि भी खोते जा रहे हैं जिससे सृष्टि का उद्भव और विकास हुआ है. इस नीब करौरी में आने पर यही महसूस होता है कि अतीत के ऋषियों, महर्षियों, वेदों और उपनिषदों में ही अटके रहने की जरूरत नहीं है. हमारे वर्तमान में भी इतना अंधेरा नहीं है कि छोटी छोटी जानकारियों के लिए भी हम बार बार घूम कर पश्चिम की ओर ही निहारते रहें. स्टीव जाब्स ने जिस तकनीकि का प्रयोग करके मानवता को सभ्यता के अगले पायदान पर जा खड़ा किया, उस तकनीकि और इस तकनीकि में कोई अंतर नहीं है. नीम करौली बाबा ने जो किया और अमूर्त रूप में अभी भी जो कुछ कर रहे हैं, कम से कम उनके प्रभाव क्षेत्र में रहनेवाले लोग तो इसे अनुभव कर ही रहे हैं.

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें