उफ़ ! इतना दबाब ? डॉ. कलाम और अग्नि मिसाईल परीक्षण !


1989 में अग्नि मिसाइल के परीक्षण के कुछ घंटे पहले एक शीर्ष अधिकारी ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को फोन कर कहा – “अमेरिका और नाटो देशों द्वारा प्रक्षेपण में देरी करने के लिए जबरदस्त दबाव है ।“

दूसरी ओर से फोन करने वाले अधिकारी और कोई नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के तत्कालीन कैबिनेट सचिव टी.एन. शेषन थे ।

यह रहस्योद्घाटन डॉ. कलाम द्वारा लिखित अंतिम पुस्तकों में से एक "Advantage India: From Challenge to Opportunity" (चुनौती को अवसर में बदलने से भारत की प्रगति) में किया गया है | पुस्तक जल्द ही मार्किट में आने वाली है । इस पुस्तक के सह लेखक है सृजन पाल सिंह |

हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में डॉ. कलाम कहते हैं कि प्रक्षेपण के केवल कुछ ही घंटे पहले, अलस्सुबह 3:00 बजे आई इस हॉटलाइन कॉल का कोई अच्छा अर्थ नहीं निकाला जा सकता था ।

उनसे पूछा गया – “अग्नि को लेकर हम किस स्थिति में हैं ?”

और फिर जबाब का इंतज़ार किये बिना कहा गया - "किये जा रहे मिसाइल परीक्षण में देरी करने के लिए हम पर अमेरिका और नाटो देशों का जबरदस्त दबाव हैं। बहुत मजबूत राजनयिक चैनल यह काम कर रहे हैं।''

फिर उसके तुरंत बाद उन्होंने अपना पहला प्रश्न फिर दोहराया, 'कलाम, अग्नि को लेकर हमारी क्या स्थिति है '?  

डॉ. कलाम के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल था। "मेरे मन ने अगले कुछ ही सेकंड में लम्बी यात्रा कर ली । मैं जानता था कि खुफिया तौर पर अमेरिकी उपग्रहों की निगाहें हम पर जमी हुई है । मैं यह भी जानता था कि प्रक्षेपण में देरी करने के लिए प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय पर अमेरिका का दबाब बढ़ता जा रहा है । इसके साथ ही जहाँ प्रक्षेपण किया जाना प्रस्तावित था, वहां अर्थात चांदीपुर में अगले कुछ दिनों में मौसम के बदतर होने की भी सूचना मिल रही थी ।

किन्तु दूसरी ओर कड़ी मेहनत कर रही हमारी टीम थी । यह वह टीम थी, जिसमें शामिल नौजवान पुरुष और महिलायें पिछले एक दशक से इस अभियान में जुटी हुई थी । उन्होंने बहुत कुछ देखा और अनुभव किया था । प्रौद्योगिकी की मनाही, अन्य देशों का दबाब, बजट की कमी, मीडिया का दबाव और शुरुआत की हताशा, जिसके चलते यह महत्वपूर्ण परियोजना तंत्र की कमजोरी के कारण बंद होकर अब दोबारा चालू हुई है..., ।

"... मैंने यह सब सोचकर अपना गला साफ़ किया और फिर बोला, 'सर, यह समझ लीजिये कि अब इस बिंदु से यह मिसाइल नहीं लौटने वाली । अब हम परीक्षण नहीं रोक सकते । इसके लिए बहुत देर हो चुकी है।' 

मुझे लगा था कि शायद इस मामले पर शेषन अथवा मेरे बॉस कोई बहस करेंगे | किन्तु मुझे अचंभा हुआ, जब लगभग 04:00 बजे शेषन का जबाब आया “ओके” | सूर्योदय सामने था, गहरी सांस लेकर शेषन ने कहा 'ठीक है, आगे बढ़ो' ।

इसके तीन घंटे बाद, अर्थात 22 मई 1989 को अग्नि मिसाइल प्रणाली का प्रक्षेपण कर दिया गया था।

"यह निर्दोष परीक्षण हमारे युवा वैज्ञानिकों की आशा और आकांक्षाओं का वह पुंज था, जिसे धरती की कोई ताकत बिचलित नहीं कर सकती । हमने इतिहास रच दिया | परीक्षण के अगले ही दिन चांदीपुर में भीषण तूफ़ान आया, जिसने आंशिक रूप से हमारी परीक्षण सुविधाओं को नष्ट कर दिया । लेकिन उसके पहले ही हम अग्नि की दौड़ जीत चुके थे ।

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