हमारे देश का धर्मनिरपेक्ष कुनबा - तुफैल अहमद


लोग बीफ खाने के आरोप के चलते दादरी में हुई मुहम्मद अखलाक की हत्या पर गुस्सा हो रहे हैं। कुछ हैं जो अखलाक की हत्या पर गुस्सा हैं, जबकि कुछ अन्य गाय की हत्या पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। कुछ इस बात पर नाराज हैं कि शिवसेना की धमकी के चलते 9 अक्टूबर को मुम्बई में होने वाला पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम क्यों रद्द हुआ, जबकि दूसरे इस कारण नाराज हैं कि पाकिस्तानी अभिनेताओं और गायकों को भारत में आमंत्रित क्यों किया जा रहा है ।

23 जून को, फैसलाबाद में पाकिस्तानी पुलिस ने एक लड़के को उस समय मार डाला जब वह अपनी खिलौना बंदूक के साथ सेल्फी ले रहा था, लेकिन पाकिस्तानियों ने कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया। लेकिन अगर एक फिलीस्तीनी बच्चा इजरायली पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में घायल हो जाता है, तो वामपंथियों द्वारा वैश्विक विरोध प्रदर्शन होता है और पत्रकार उसका अत्याचार के रूप में वर्णन करते हैं ।

जब अमेरिका ने इराक में युद्ध शुरू किया, तो युद्ध-विरोधी कार्यकर्ताओं द्वारा दुनिया भर में विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया गया । लेकिन अभी हाल ही में जब सऊदी अरब ने यमन पर हवाई हमले शुरू किये, तो युद्ध-विरोधी कार्यकर्ता सोने चले गए । पाकिस्तानी सेना नियमित रूप से बलूचिस्तान में लोगों को मार रही है, लेकिन पाकिस्तानी खड़े नहीं हो रहे । भारत में जो धर्मनिरपेक्ष पत्रकार यह दावा करते हैं कि वे मानव अधिकारों के विषय में चिंतित हैं, वे उस समय गुस्से का इजहार नहीं करते, जब पीड़ित हिंदू हो ।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता colour-blind है।

जो सेकुलर पत्रकार अखलाक की हत्या पर गुस्सा हो रहे हैं, उन्होंने हाल ही में हुई अनेकों हत्याओं पर चुप्पी साधे रखी । पिछले अगस्त में मेरठ के पास हरदेवनगर में कुछ मनचले एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे, सेना के एक जवान वेदमित्र चौधरी ने उन्हें रोकने का प्रयत्न किया, तो उसकी ह्त्या कर दी गई । मार्च में बिहार के हाजीपुर में एक हिंदू नौजवान का अपहरण कर उसकी इसलिए ह्त्या कर दी गई, क्योंकि उसने एक मुस्लिम लड़की से शादी कर ली थी । विगत जून माह में आंध्र प्रदेश में एलुरू के पास एक आदमी को मौत के घाट उतार दिया गया । जून में ही मुंबई के भांडुप पश्चिम क्षेत्र में एक व्यक्ति को भीड़ ने पीटपीट कर मार डाला ।

सेकुलर 'पत्रकारों का यह रंगों का अंधापन उन्हें इन हत्याओं को देखने से रोकता है: उन्हें इनपर गुस्सा नहीं आता; वे केवल तब बोलते हैं, जब हत्या किसी मुसलमान की हुई हो । भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने मुस्लिम खून चख लिया है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता को केवल रंगों का अंधापन ही नहीं है, वह अर्ध पाकिस्तानी भी है ।

सेक्युलर नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शो रद्द होने के बाद गुलाम अली से बात की और अब दिल्ली उनकी मेजवानी करेगा । दूसरे सेक्युलर नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी लखनऊ में गुलाम अली के शो का आयोजन करेंगे ।


लेकिन जब हमारे अपने ऑस्कर विजेता संगीतकार ए आर रहमान का 13 सितंबर को दिल्ली में होने वाला संगीत शो बरेलवी समूह के रजा अकादमी द्वारा दिए गए फतवे के कारण रद्द कर दिया गया, तब न तो केजरीवाल और न ही अखिलेश ने उन्हें आमंत्रित किया। धर्मनिरपेक्षता भारतीय मुस्लिम गायकों को पसंद नहीं करती; यह सलमान रश्दी जैसे भारतीय लेखकों को भी पसंद नहीं करती। दूसरी धर्मनिरपेक्ष नेता ममता बनर्जी ने गुलाम अली का समर्थन करते हुए फ़रमाया कि संगीत की कोई अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं है, लेकिन वह बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन का समर्थन नहीं करेंगी । 

भारतीय धर्मनिरपेक्षता बनाम राष्ट्रवाद प्रतिरोध: 

दोषी करार दिए गए आतंकवादी याकूब मेनन के जीवन को बचाने के लिए तो धर्मनिरपेक्ष वकीलों ने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाया लेकिन आम भारतीयों के मृत्यु दण्ड पर वे सदा मौन रहे । 

सेक्युलर पत्रकार निखिल वागले ने लिखा: "धर्मनिरपेक्षता के बिना भारत एक हिंदू पाकिस्तान है।" 

भारतीय धर्मनिरपेक्षता भारतीय भी नहीं है: यह गोमांस खाए बिना अधूरी है। चूंकि पाकिस्तानी गोमांस खाते हैं, इसलिए इन्हें भी गाय का मांस खाना रुचिकर है । यह निश्चित रूप से पाकिस्तानी है। इनकी पाकिस्तानियों के साथ गलबहियां हैं, सांठगाँठ है । 

1947 में हमारे लोगों ने सोचा था कि भारत के एक भूभाग को देकर वे स्थायी शांति खरीद लेंगे । जनरल परवेज मुशर्रफ जो कि निश्चित तौर पर वर्तमान काल का कारगिल में जिहाद का सबसे बड़ा वास्तुकार था, मनमोहन सिंह की धर्मनिरपेक्ष सरकार उसके साथ वार्ता में कश्मीर का एक भाग पाकिस्तान का मानने के बहुत नजदीक पहुँच गई थी । भारतीय धर्मनिरपेक्षता पाकिस्तान के बिना अपूर्ण है, । 

जर्मन सैन्य रणनीतिकार कार्ल वॉन क्लाउजविट्ज़ ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक “On War” में आंकलन किया है: " राजनीति की निरंतरता युद्ध का एक अन्य तरीका है।" चूंकि पाकिस्तान सात दशकों से व्यावहारिक रूप से लगातार भारत के खिलाफ युद्ध की स्थिति बनाए हुए है, फिर भारतीय पाकिस्तानी गायकों को अपने यहाँ कैसे बर्दास्त कर सकते हैं । 

टीवी और सोशल मीडिया के माध्यम से आम भारतीय पाकिस्तान द्वारा चलाये जा रहे इस युद्ध को समझ सकते हैं। पाकिस्तान ने भले ही औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा नहीं की है, लेकिन पाकिस्तान द्वारा लगातार भारत में जिहादियों को भेजना जारी है, अतः आम भारतीय इस तथ्य को स्पष्ट रूप से समझता है कि हम युद्ध की स्थिति में हैं । आमिर खान की फिल्म सरफरोश से हमें यह पता चलता है कि पाकिस्तान कैसे गजल गायकों की आड़ में हथियारों के सौदागरों को भेजता है । 

भारतीय धर्मनिरपेक्षता इस्लामपरस्त भी है। 

2012 में, धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस सरकार ने सलमान रुश्दी को जयपुर में बोलने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि धर्मनिरपेक्षता और इस्लामपरस्ती में सगोत्र सहवास संबंध है । ममता बनर्जी, तस्लीमा नसरीन का इसलिए समर्थन नहीं करतीं, क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का राज्य में इस्लामवादियों के साथ तालमेल है । 

केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता का इस्लामवादियों के साथ खुला गठबंधन है । 2013 में केजरीवाल ने मुस्लिम वोट मांगने के लिए इस्लामी मौलवी तौकीर रजा खान से मिलने के लिए बरेली का दौरा किया। पिछले साल उन्होंने मुस्लिम वोट मांगने के लिए इमाम बुखारी के भाई से मिलने के लिए अलका लांबा को भेजा। 1986 में राजीव गांधी की धर्मनिरपेक्षता ने शाहबानो मामले में इस्लामी मौलवियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। भारतीय धर्मनिरपेक्षता इस्लामवादियों के साथ वैचारिक सहवास के बिना अधूरा है।

1 अक्टूबर को, धर्मनिरपेक्ष गपशप स्तंभकार शोभा डे ने ट्विटर पर लिखा, "मैंने गौमांस खा लिया। आओ और मुझे मार डालो" | सवाल यह है कि क्या वह गेटवे ऑफ इंडिया पर पैगंबर मुहम्मद का कार्टून बना सकती है? 

दिनांक 4 अक्टूबर को धर्मनिरपेक्ष पत्रकार सागरिका घोष ने एक ट्वीट में लिखा: "हम भारत के नागरिकों को जे सुईस चार्ली की तरह एक अभियान चलाने की जरूरत है। अपना सिर ऊंचा करो और कहो कि हां मैं गौमांस भक्षक हूँ | सवाल यह है कि क्या धर्मनिरपेक्ष पत्रकार दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने वही कार्टून बनाने की हिम्मत करेंगे ? 

आक्रोश बीफ या कार्टून के बारे में नहीं है। भारतीय युवक धर्मनिरपेक्षता के इस दोहरे मापदंड को लेकर चिंतित हैं; वे आपके बीफ खाने के अधिकार का समर्थन करेंगे, बशर्ते आप कार्टून बनाने को भी तत्पर हों । एयरसेल द्वारा समर्थित धर्मनिरपेक्ष एनडीटीवी ने टाइगर बचाओअभियान शुरू किया। वह गाय बचाओ अभियान क्यों नहीं चला सकते ? 

भारत एक महान देश है। इसकी वास्तविकता यह है: बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान फिल्म #PK बनाता है जिसमें हिंदू देवता भगवान शिव को एक बाथरूम में बंद कर धमकाया जाता है, लेकिन वह पैगंबर मुहम्मद पर फिल्म नहीं बना सकते। हमारी राष्ट्रीय चर्चा का यह असंतुलन, भारत की सामाजिक एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा है । इसे पत्रकारों द्वारा बढ़ावा मिल रहा है। 

भारत न्यूज़रूम से फासीवाद का उद्भव देख रहा है, अधिनायकवादी विचारों का यह आंदोलन अपनी जीत के लिए हमें बांटता है । भारतीय पत्रकारों को उनके दोहरे मापदंड के कारण ही, न्यूयॉर्क या दादरी में भारतीयों द्वारा पीटा जाता है। सोशल मीडिया पर उन्हें दल्ला और प्रेस्टीटयूट का संबोधन मिलता है, उन्हें बिम्बों और बाजारू कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने एक बंगला या राज्यसभा सीट के लिए अपनी आत्मा को बेच दिया है। 

इस धर्मनिरपेक्ष फासीवाद का इस्लामी अधिनायकवाद के साथ गठबंधन है, यह हमें विभाजित करके जीतता है, लेकिन पुलिस को हर उस भारतीय से बेरहमी से निपटना चाहिए जो कानून अपने हाथ में लेता है । 



तुफैल अहमद

मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट में बीबीसी उर्दू सेवा और दक्षिण एशिया अध्ययन परियोजना के निदेशक, वाशिंगटन डीसी के पूर्व पत्रकार है। ईमेल आईडी - tufailelif@yahoo.co.uk

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